आज मैं आपका परिचय एक लड़के से करवाना चाहता हूँ, जो पिछले तीन साल से हमारे स्कूल में पढ़ रहा है। उसका नाम ईशु है। वह ग्यारह साल का है और अपने भाई-बहनों में सबसे छोटा है।
शुरू में ईशु का घर काफी बड़ा सा लगता है। प्रवेशद्वार एक हाल में खुलता है, जिसमें उससे लगे हुए कमरों में जाने के लिए कई दरवाज़े हैं। लेकिन इनमें से सिर्फ एक कमरा ही ईशु और उसके परिवार का है! दूसरे कमरे ईशु के चाचा ने किराए पर उठा रखे हैं। और रसोई को सभी साझा कर लेते हैं।
एक तरह से ईशु संयुक्त परिवार में रहता है लेकिन दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो संयुक्त परिवार में नहीं रहता: सभी परिवारों की आमदनी अलग है, वे खाना अलग-अलग पकाते हैं और अलग-अलग ही खाते हैं-लेकिन वे एक ही मकान में रहते साथ-साथ हैं। सभी परिवारों ने अपने परिवार का परंपरागत व्यवसाय अर्थात नाई का व्यवसाय चुना है और शहर की एक ही गली में उनकी अलग-अलग दुकाने हैं।
पैसे तो वे कमाते हैं- किन्तु तीन-तीन बच्चों को पालना, कमरे का किराया अदा करना और परिवार के दूसरे आवश्यक मदों के खर्चे भी कम नहीं होते! इसलिए उनका सबसे बड़ा लड़का, जो स्नातक की पढ़ाई कर रहा है, अपनी पढ़ाई का खर्च पूरा करने के लिए देवताओं की मूर्तियों के कपड़ों पर कढ़ाई का काम करता है। ईशु की बहन यानी परिवार की बीच की सन्तान अभी सातवीं कक्षा में पढ़ती है और ईशु हमारे स्कूल की पहली कक्षा में।
वह पिछले तीन साल से हमारे स्कूल में पढ़ रहा है अर्थात नियमित स्कूल की पढ़ाई से पहले की दो के जी कक्षाओं से शुरू करके अभी प्राथमिक स्कूल की पहली कक्षा में है और यहाँ बड़ा प्रसन्न रहता है। उसके चचेरे भाई भी हमारे स्कूल में पढ़ने आते हैं लेकिन उनके अतिरिक्त भी उसने बहुत से दूसरे मित्र बना लिए हैं।
हमारे स्कूल में ईशु की मुफ़्त पढ़ाई परिवार के लिए बहुत बड़ी राहत है क्योंकि यहाँ न सिर्फ उसे फीस नहीं भरनी पड़ती बल्कि भोजन, किताब-कापियाँ पेन्सिल इत्यादि लिखने-पढ़ने का सामान भी मुफ़्त प्राप्त होता है-और सबसे बड़ी बात, स्तरीय शिक्षा प्राप्त होती है, जो उसे भविष्य में अपने पैरों पर खड़ा करेगी और अपने परिवार की वर्तमान स्थिति के विपरीत वह एक नियमित और पर्याप्त पैसे कमाने के काबिल बन सकेगा।
ईशु जैसे बच्चों की आप भी मदद कर सकते हैं-किसी एक गरीब बच्चे को या बच्चों के एक दिन के भोजन को प्रायोजित करके।