Tag: समाज

स्त्रियाँ और पुरुष, दोनों रोज़गार करते हैं मगर घर के कामों की ज़िम्मेदारी सिर्फ स्त्रियों की ही होती है – 10 दिसंबर 2015
स्वामी बालेंदु बता रहे हैं कि कैसे लैंगिक भूमिकाओं को स्त्रियाँ और पुरुष, दोनों ज़िंदा ... Read More

जी नहीं, घर की सफाई करना सिर्फ स्त्रियों का काम ही नहीं है! 9 दिसंबर 2015
स्वामी बालेंदु बता रहे हैं कि किस प्रकार परंपरागत लैंगिक भूमिकाएँ आज भी सिर्फ भारत ... Read More

उन्मुक्त सेक्स संबंध बनाना गलत नहीं है परन्तु मुझे लगता है, वे सफल नहीं हो पाते – 3 दिसंबर 2015
स्वामी बालेंदु स्पष्ट कर रहे हैं कि वे यह नहीं समझते कि खुले, स्वच्छंद संबंधों ... Read More

एक से अधिक सेक्स पार्टनर के साथ आपसी संबंधों में रोमांच, थ्रिल, उत्तेजना और असफलता – 1 दिसंबर 2015
स्वामी बालेंदु खुले संबंधों में आने वाली एक और समस्या के बारे में लिख रहे ... Read More

भारतीय स्कूलों में बच्चों के साथ होने वाली क्रूरतापूर्वक शारीरिक प्रताड़ना का वीडियो सहित पर्दाफाश – 18 सितंबर 2015
स्वामी बालेंदु इस ब्लॉग के ज़रिए पवन के स्कूल में दिए जा रहे शारीरिक दंड ... Read More

पश्चिमी महिला के लिए क्यों भारत में सामाजिक जीवन बनाने में दिक्कतें पेश आ सकती हैं – 2 जुलाई 2015
स्वामी बालेंदु उन दिक्कतों के बारे में लिख रहे हैं, जो एक पश्चिमी महिला के ... Read More

जब भगवान भी बलात्कार करते हैं – हिन्दू मिथकों का भारतीय समाज पर असर – 3 नवंबर 2014
स्वामी बालेंदु आज मनाए जा रहे त्योहार के पीछे की कथा का वर्णन करते हुए ... Read More

दो इंच की बिकनी से क्या फर्क पड़ता है? 22 अक्टूबर 2014
स्वामी बालेंदु गलतफहमियों, गलत नतीजों और कम कपड़ों से पड़ने वाले बड़े अंतर के बारे ... Read More

पूरब और पश्चिम में स्तनपान कराना और स्तनपान छुड़ाना – एक तुलनात्मक चर्चा – 27 अगस्त 2014
स्वामी बालेंदु जर्मनी और भारत में स्तनपान कराने और दूध छुड़ाने की परम्पराओं के बीच ... Read More

‘आइए, सेक्स के बारे में बातें करें’ का अर्थ ‘आइए, अश्लील चित्र देखें’ नहीं है! 7 अगस्त 2014
स्वामी बालेंदु बहुत से भारतीयों की संकीर्ण, बीमार मानसिकता का वर्णन करते हुए बता रहे ... Read More

ग्रान कनारिया में सुखद पारिवारिक जीवन – 1 जुलाई 2014
स्वामी बालेन्दु ग्रान कनारिया के पारिवारिक जीवन पर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं: यहाँ ... Read More

महज भ्रम बनाए रखने के लिए दुखद सम्बन्ध को न ढोएँ – 16 जून 2014
स्वामी बालेंदु लोगों से कह रहे हैं कि दुख को यूं ही स्वीकार न करें ... Read More

जर्मनी की चुनाव-प्रक्रिया भारत की तुलना में अधिक न्यायपूर्ण और जनतान्त्रिक क्यों है! 21 मई 2014
स्वामी बालेंदु भारत और जर्मनी की मतदान प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन करते हुए बता रहे ... Read More

जनतंत्र का अतिरेक – 20 मई 2014
स्वामी बालेन्दु बता रहे हैं कि हालाँकि जनतंत्र निस्संदेह सबसे अच्छी राज्य-व्यवस्था है-मगर कभी-कभी इसका ... Read More

महिलाओं के मुकाबले पुरुषों के लिए अपनी समलैंगिकता को स्वीकार करना ज़्यादा कठिन क्यों होता है! 18 मई 2014
सन 2006 में स्वामी बालेन्दु ने बहुत से महिला और पुरुष समलैंगिकों के साथ काम ... Read More

पुरुषों के साथ अनुभव लेने के बाद बहुत सी महिलाएँ समलैंगिक क्यों हो जाती हैं! 11 मई 2014
स्वामी बालेन्दु उन कारणों की विवेचना कर रहे हैं, जिनके चलते बहुत सी चालीस-पार महिलाएँ ... Read More