दैवी शक्तियों की मार्केटिंग – पवित्र शहर, वृंदावन के विज्ञापन – 13 सितंबर 2015

स्वामी बालेंदु बता रहे हैं कि वृंदावन और पवित्र ब्रज भूमि को नामों और नारों के ज़रिए किस तरह बहुत सूझ-बूझ के साथ और बड़े रचनात्मक तरीके से विज्ञापित किया जाता है।

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वृन्दावन में ओलावृष्टि – 5 अप्रैल 2015

स्वामी बालेन्दु हाल ही में हुई ओलावृष्टि के बारे में बता रहे हैं, जिसके चलते वृन्दावन को विशाल आकार के ओलों की मार झेलनी पड़ी। उसके आगमन और फिर उसकी मार की तकलीफ के बारे में बालेंदु जी के शब्दों में यहाँ पढिए!

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यमुना आरती – अन्धविश्वास, भोजन की बरबादी, प्रदूषण और मस्ती भरा माहौल – 3 दिसम्बर 2014

स्वामी बालेन्दु उनकी पत्नी को वृन्दावन के केशी घाट पर यमुना आरती के दौरान हुए अनुभव का वर्णन कर रहे हैं-बहुत सी त्यागने योग्य बुरी बातें भी देखनी पड़ीं मगर उसके बावजूद उसने हर पल का आनंद लिया।

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बाढ़ प्रवण क्षेत्र में दो कमरों में छः वयस्क और दो बच्चे – हमारे स्कूल के बच्चे- 30 अगस्त 2013

स्वामी बालेंदु अपने चैरिटी स्कूल के एक लड़के, मुरारी, से आपका परिचय करवा रहे हैं। देखिये कि वह कैसे रहता है और उसकी मदद कीजिये!

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जब मानसून की बारिश बहुत खतरनाक हो जाती है – हमारे स्कूल के बच्चे- 16 अगस्त 2013

स्वामी बालेंदु अपने चैरिटी स्कूल के एक विद्यार्थी, संजू का परिचय करवा रहे हैं। सन 2010 में उसका घर मानसून की बाढ़ में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था-और अब भी वह पूरी तरह ध्वस्त होने की कगार पर है।

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गुरु से दीक्षा लेने से मना करना यानी मुसीबत मोल लेना!- 21 जुलाई 2013

स्वामी बालेंदु बता रहे हैं कि कैसे उनके मित्र 2005 में भारत आए और एक गुरु से मिले, जिनके पास कोई काम नहीं था-बिना नाराजी मोल लिए वे कैसे उसे मना करें और उससे पीछा छुड़ाएँ?

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दिव्यता का दिखावा या धार्मिक शोर-शराबा – 9 नवंबर 2012

स्वामी बालेंदु अपने और दूसरे शहरों और कस्बों के शोर के बारे में बता रहे हैं। साथ ही इस शोर के अतिरेक के विरुद्ध अपना प्रतिरोध भी दर्ज करा रहे हैं जिसमें तीखे स्वरों में धार्मिक गाने बजाए जाते हैं और जो सिर्फ ध्वनि-प्रदूषण को बढ़ाते हैं।

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धर्म की सूक्ष्म चालबाज़ियाँ आपको पागलपन की सरहद पर ला पटकती हैं! 11 सितंबर 2012

स्वामी बालेंदु धार्मिक समर्पण के विषय में लिख रहे हैं जो लोगों को ऐसे-ऐसे काम करने पर मजबूर कर देता है, जिसे वे स्वयं पागलपन कहेंगे, बशर्ते वे धर्म की चालबाज़ियों को समझ सकें। उदाहरणार्थ प्रस्तुत है उनकी, स्वयं की आपबीती!

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