जब चुनाव, विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को धर्म सीमित करता है – 16 सितंबर 2015

स्वामी बालेंदु बता रहे हैं कि किस तरह धर्म स्वतंत्रता की उनकी परिकल्पना से बहुत अलग है: वह लोगों पर पाबंदी लगाता है, उनका मत-परिवर्तन करना चाहता है और यहाँ तक कि, जो प्रतिरोध करते हैं, उनकी हत्या करता है।

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मुझे सेक्स पसंद है- और यह पसंदगी भी मुझे पसंद है! 6 अगस्त 2014

स्वामी बालेंदु बता रहे हैं कि सेक्स का ज़िक्र आते ही बहुत से लोग अपराधबोध से ग्रसित हो जाते हैं और शर्मिंदगी महसूस करने लगते हैं। वे यह भी बता रहे हैं कि इसके लिए भी अंततः धर्म ही जिम्मेदार है!

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एक मित्र, जो धर्म पढ़ाता है मगर उस पर विश्वास नहीं करता – 17 जुलाई 2014

स्वामी बालेन्दु अपने एक जर्मन मित्र के बारे में बता रहे हैं जो अपने स्कूल में एक विषय के रूप में धर्म पढ़ाता है मगर ईसाइयत पर उसका कोई विश्वास नहीं है। उनके बीच हुई बातचीत यहाँ पढ़िए।

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मुक्ति की आकांक्षा में मृत्यु कि प्रतीक्षा करने के स्थान पर जीवित रहते हुए अपने आपको धर्म के बंधन से मुक्त कीजिए और खुश रहिए! 16 जुलाई 2014

स्वामी बालेंदु बता रहे हैं कि कैसे हिन्दू दर्शन लोगों को उन अपराधों के लिए अपराधी ठहराता है, जो उन्होंने जीवन में कभी किए ही नहीं होते। इसका समाधान क्या है, उनके शब्दों में पढिए!

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