कुछ हफ्ते पहले एक पत्रकार ने मुझसे सम्पर्क करके मुझे आमंत्रित किया। आमंत्रण मुम्बई में आयोजित एक पुरस्कार वितरण समारोह का था: मेहमान के रूप में नहीं, 'साल के सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक व्यक्ति' शीर्षक पुरस्कार के लिए नामित और विजेता के रूप में!
खैर, मैंने सोचा, यह बड़ी मज़ेदार बात है क्योंकि उसे एक मीडिया कम्पनी आयोजित कर रही थी, जिसका ख़ासा नाम था और जिसके बारे में मैंने भी सुन रखा था। फिर मैंने एक बार और निमंत्रण पत्र की तारीख पर नज़र डाली: आयोजन अगले तीन दिनों बाद ही होने वाला था और वह भी मुंबई में, मेरे गृह नगर से 1500 किलोमीटर दूर!
उस समय आश्रम में बहुत से विदेशी मेहमान आए हुए थे और इतनी त्वरित सूचना पर वहाँ जाना मेरे लिए बड़ा मुश्किल था लेकिन निमंत्रण का तरीका बड़ा नम्र और शालीन था, लिहाजा मैंने जाने का निर्णय किया। परिवार वालों के साथ चर्चा में भी सबका यही कहना था कि ऐसे निमंत्रण को ठुकराना बदसुलूकी होगी।
मैंने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया और कहा कि वहाँ आकर मुझे प्रसन्नता होगी। मैंने पूछा कि क्या समारोह के आयोजक दिल्ली से मुम्बई के दो हवाई टिकिट जल्द से जल्द भेज देंगे, जिससे हम आयोजन के दिन मुंबई पहुँच सकें और फिर वापसी के टिकिट भी, जिससे दूसरे दिन हम वापस लौट जाएँ। मुंबई में मेरे बहुत से मित्र हैं इसलिए वहाँ रहने और खाने-पीने की व्यवस्था के लिए मैंने उनसे नहीं कहा क्योंकि मैं जानता था कि मुंबई में मेरे आराम की अच्छी व्यवस्था करने वाले बहुत से मित्र मौजूद होंगे। मुझे लगा कि आने-जाने के खर्च की मांग जायज़ थी क्योंकि आखिर मुझे वहाँ उन्होंने बुलाया था, मेरा सम्मान करने वाले थे और आयोजन भी देश के कुछ सबसे बड़े पाँच सितारा होटलों में से एक में होने जा रहा था। मुझे लगा, यह बहुत ही सामान्य पूछताछ है।
मुझे जवाब मिला कि कंपनी की नीतियों के अनुसार वे यात्रा खर्च नहीं देते बल्कि दूसरी सभी व्यवस्थाएँ करते हैं-लेकिन फिर भी उनका संपर्क-प्रतिनिधि उच्चाधिकारियों से पूछकर आपसे बात करेगा। मेरे लिए मामला पूरी तरह स्पष्ट था:आने-जाने का खर्च देंगे तो ही मैं जाऊँगा। इस बीच मैं उनके द्वारा की जाने वाली रहने-खाने की व्यवस्था के बारे में सोचता रहा कि अगर मैं उनके द्वारा नियत स्थान पर रहता हूँ तो मुझे आयोजन स्थल पहुँचने में आसानी होगी अन्यथा मुझे विमानतल से किसी दोस्त के घर तक और फिर वहाँ से आयोजन स्थल तक आने-जाने के समय का हिसाब-किताब रखना होगा।
लेकिन आखिरकार मुझे पता चला कि उन्होंने पी डब्ल्यू डी के सरकारी मेहमानखाने (रेस्ट हाउस) में हमारा इंतज़ाम तो करवाया था मगर अब उन्होंने समय की कमी के कारण आध्यात्मिक वर्ग के पुरस्कार को स्थगित ही कर दिया है। यात्रा खर्च तो वैसे भी देय नहीं था क्योंकि यह कोई प्रायोजित कार्यक्रम नहीं था कि उससे कुछ कमाई की जाए बल्कि योग्य लोगों का सम्मान करने की एक पहल मात्र था।
मैंने जवाब भेजा: "मुझे यह अच्छा विचार लगा। पुरस्कारों के बारे में आपके द्वारा दी गई वैबसाइट मैं देख रहा था और वहाँ भी मुझे यह वर्ग या उसमें मेरा कोई मनोनयन नज़र नहीं आया। इससे ऐसा लगता है कि सारी पुरस्कार योजना को अंतिम समय में कामचलाऊ ढंग से संशोधित कर मेरा नाम उसमें जोड़ा गया था।
आपके कार्यक्रम के लिए मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार कीजिए और जब भी आप उत्तर भारत की यात्रा पर हों तो हमारे यहाँ पधारकर हमें स्वागत का मौका अवश्य दीजिए।"
इस बिन्दु पर मेरे लिए मामले का अंत हो चुका था। वास्तव में मुझे लग रहा था कि इतनी अल्प सूचना पर यह सब संभव हो पाना आसान नहीं था और कुछ भी हो, मेरी तरफ से मैंने इस प्रकरण का शालीन अंत किया है। कोई बात नहीं, उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं होंगे और मुझे बुलाने का निर्णय वास्तव में अंतिम समय में लिया गया निर्णय रहा होगा। मैंने शुभकामना व्यक्त करते हुए और उन्हें अपने यहाँ निमंत्रित करते हुए इसका समापन किया था और अपनी तरफ से संतुष्ट था!
यह ब्लॉग मैं कभी नहीं लिखता अगर पिछले हफ्ते मैंने उनके द्वारा लिखा का एक आलेख न पढ़ा होता, जिसने मुझे आमंत्रित किया था। मेरा नाम लिए बगैर उसने आरोप लगाया था कि किस बेशर्मी से नामित व्यक्ति ने आयोजन में शामिल होने के लिए हवाई यात्रा का किराया और पाँच सितारा होटल में रहने और खाने का खर्च मांग लिया था! इससे मुझे तकलीफ पहुँची। इसके कारण मुझे आवश्यकता महसूस हुई कि अपने ब्लॉग में मैं भी अपना पक्ष रखूँ, भले ही उस संगठन का, पुरस्कारों का या उस व्यक्ति का नाम लिए बगैर!
हाँ, मैंने यात्रा खर्च की मांग की थी। अपना सम्मान करवाने के लिए मैं एक पैसा भी खर्च करने के लिए तैयार नहीं हूँ-भले ही वह ऑस्कर जैसा कोई मशहूर पुरस्कार ही क्यों न हो! उन्हें लगता है कि मैं वह पुरस्कार पाने के काबिल हूँ-लेकिन वहाँ जाने में मेरी क्या रुचि हो सकती है? 500 यूरो अर्थात् लगभग 35000 रुपए आखिर मैं किस चीज़ पर खर्च कर रहा हूँ?
और हाँ, यह पूरे 500 यूरो भी सिर्फ एक दिन के लिए! इतनी अल्प सूचना पर वहाँ पहुँचना था, अर्थात रेल यात्रा का विकल्प भी खुला हुआ नहीं है। इसके अलावा पिछले आठ साल से, जब से मेरा अपनी पत्नी से परिचय हुआ है, हमने एक रात भी अलग रहकर नहीं गुज़ारी है। हर जगह हम दोनों साथ जाते हैं और अकेले यात्रा करने का मेरा दौर पीछे छूट चुका है। इसलिए मैंने दो टिकिटों की मांग की थी-वैसे अगर वे मेरे टिकिट का पैसा अदा कर देते तो पत्नी का खर्च मैं स्वयं उठा लेता।
निश्चित ही संगठन के पास इतने संसाधन तो थे ही कि इतना बड़ा कार्यक्रम आयोजित कर रहे थे और वह भी मुंबई के सबसे बड़े पाँच-सितारा होटल में, यानी आपने कार्यक्रम-स्थल के लिए तो काफी बड़ी रकम खर्च की होगी। अगर उन्हें लगता है कि मैं वहाँ उपस्थित होऊँ, तो वे मेरे यात्रा खर्च का इंतज़ाम भी कर सकते थे। या, अगर वे मानते थे कि पुरस्कार के काबिल हूँ लेकिन अपना यात्रा खर्च पाने के काबिल नहीं हूँ तो वे यह पुरस्कार मुझे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए भी दे सकते थे। या खुद आते और यहाँ आकर मुझे दे जाते। या सिर्फ मेरा नाम वहाँ घोषित भर कर देते। मुझे वहाँ उपस्थित होने की ज़रूरत ही क्या थी?
यह पुरस्कार मेरे आध्यात्मिक कार्यों के लिए होता, जिसमें गरीब बच्चों के लिए किए जा रहे हमारे चैरिटी कार्य भी शामिल हैं, क्योंकि मेरी सभी परियोजनाओं का लाभ इसी चैरिटी कार्य में खर्च होता है। अपने लिए पुरस्कार प्राप्त करने मुंबई जाऊँ और वहाँ जाने के लिए इतना पैसा हवाई यात्रा पर खर्च करूँ इससे बेहतर मेरे लिए यह होगा कि मैं एक और बच्चे के भोजन पर या उसकी किताब-कापियों पर यह पैसा खर्च करूँ!
सच बात तो यह है कि अगर आप वास्तव में चाहते थे कि मैं वहाँ उपस्थित होऊँ तो आपको मुझे यह अग्रिम सूचना काफी पहले, पर्याप्त समय रहते देनी चाहिए थी। तब आपके इरादे की गंभीरता नज़र आती, मुझे भी वहाँ पहुँचने का कार्यक्रम बनाने में आसानी होती, मैं अपने कुछ कार्यक्रमों या कार्यशालाओं की योजना बनाकर वहाँ आता। या फिर, मैं मुंबई में ही अपने लिए छुट्टियों का कोई कार्यक्रम बनाकर कुछ अधिक दिन रुक लेता और एक शाम आपके कार्यक्रम में भी पहुँच जाता। तब, दोनों ही स्थितियों में, मैं आपसे यात्रा खर्च मांगता ही नहीं। लेकिन मैं अपने पहले से तयशुदा कार्यक्रम स्थगित करके, यहाँ आश्रम के सारे ज़रूरी काम छोड़कर और इतना पैसा खर्च करके एक ऐसा पुरस्कार प्राप्त करने, जिसके लिए आप मुझे योग्य समझते हैं, इतनी अल्प सूचना पर क्यों दौड़ता-भागता मुंबई जाऊँ?
लेकिन, यह भी सच है कि अगर वह आलेख नहीं पढ़ा होता तो यह ब्लॉग भी मैं नहीं लिख रहा होता!
मैंने पहले भी आपको बताया है कि बहुत से टीवी चैनल मुझसे संपर्क करते रहते हैं कि मेरे भाषण उनके चैनल पर प्रसारित करेंगे-लेकिन जितने समय मैं टीवी पर रहूँगा, उसकी कीमत मुझे अदा करनी होगी! अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोग बड़ी-बड़ी रक़में इस टीवी स्लॉट के लिए अदा करते हैं-लेकिन मैंने इसके लिए हमेशा इंकार किया है! अगर आप चाहते हैं कि मैं आपके चैनल पर भाषण करूँ तो आपको मुझे पारिश्रमिक देना चाहिए न कि उल्टा होना चाहिए कि मैं आपको पैसे दूँ!
लेकिन मैं जानता हूँ कि बहुत से लोग हैं, जो इन टीवी चैनलों पर दिखाई देने के लिए, सम्मान या पुरस्कार पाने के लिए बड़ी-बड़ी धनराशियाँ खर्च करते हैं। माफ कीजिए, मैं इस तरह का व्यक्ति नहीं हूँ। मुझे पुरस्कार की आवश्यकता नहीं है- विशेष रूप से, अगर मुझे पुरस्कृत करने के लिए आप मुझसे ही पैसे भी खर्च करने को कहें!
अगर आप मुझे अपने घर आमंत्रित करें, परिवार से मिलने या किसी घरेलू कार्यक्रम में शामिल होने के लिए, तो मुझे आपके यहाँ आने में खुशी होगी और निस्संदेह मैं खुद अपना पैसा खर्च करके आपके यहाँ आऊँगा। मैं आपके साथ मित्रता करके प्रसन्न होऊँगा और मुझे पता होगा कि आपने इस प्रेम में सहभागी होने और आनंद प्राप्त करने के लिए मुझे आमंत्रित किया है। लेकिन जब आप किसी बड़े पाँच सितारा होटल में कोई सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं तो मुझे लगता है कि कम से कम वहाँ आने-जाने का खर्च मांगना एक जायज़ बात है। उसके लिए आप मना कर देंगे तो भी मुझे कोई दिक्कत नहीं है! लेकिन इस खर्च की मांग करने के कारण मैं इतना बुरा व्यक्ति बन गया कि आपने मुझे अपने आलेख में नकारात्मक रूप से चित्रित कर दिया, इस तरह जैसे मैंने कोई गुनाह किया हो। निश्चित ही अपने ब्लॉग में इस तरह उस पर प्रतिक्रिया लिखना उसे और बुरा बना देता है।
अंत में मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि अपने लिए ये पंक्तियाँ और उनमें लगाए गए आरोपों को पढ़कर मुझे बहुत दुःख हुआ है, जैसे मैं कोई गैर वाजिब चीज़ मांग रहा हूँ, कोई ऐसी चीज़, जिसे पाने की पात्रता मुझमें नहीं है और जिसे पाने के लिए मुझे खुद अपनी गाँठ से पैसे खर्च करने चाहिए। मैं तो खुद दूसरों को कुछ देकर खुश होता हूँ-और फिर से कहता हूँ कि अगर आपका कभी वृंदावन आना हो तो मुझे आपका स्वागत करके बहुत ख़ुशी होगी। लेकिन अगर आप मुझे कोई पुरस्कार देना चाहें तो कृपया सुनिश्चित करें कि मुझे उसके लिए कोई खर्च न करना पड़े क्योंकि वह धनराशि मैं गरीब बच्चों पर खर्च करना चाहता हूँ!