मैं भी उनमें से एक हूँ. 7 साल पहले भारत छोड़ के चला गया. वहाँ व्यापार करता था और टैक्स देता था. हालाँकि पिछले 23 सालों से विदेशों में काम करता और कमाता था परन्तु निवेश भारत में ही करता था. विदेशों से चंदा लाकर भारत में गरीब बच्चों के लिए मुफ्त स्कूल चलाता था. अहर्ता थी, चाहता तो सोलह साल पहले ही जर्मनी, आस्ट्रेलिया, अमेरिका या इंग्लैण्ड कहीं भी बस सकता था परन्तु भारत के मोह में ऐसा न कर पाया. जिन अपनों के मोह में ऐसा नहीं किया उन्होंने ही लात मारी.
वो कहते हैं न कि बिना ठोकर खाये कोई कुछ सीखता नहीं, 6 साल पहले मुझे भी जब ठोकर लगी तभी अकल आई और भारत ही नहीं बल्कि भारत की नागरिकता भी छोड़ दी. विदेशों से पैसा लाकर करोड़ों की जायदाद भारत में बनाई परन्तु वहाँ से कुछ भी लेकर नहीं आया. न कोई पैसा पास में था न ही कोई सोना चाँदी, सब कुछ गँवा कर यहाँ फिर जीरो से जिंदगी शुरू करी.
मैंने यहाँ मजदूरी करनी शुरू करी, जोकि भारत में रहते हुए कभी नहीं करी थी. जी हाँ सही पढ़ा आपने, मजदूरी का मतलब शारीरिक (बौद्धिक नहीं). आज भी करता हूँ.
हाँ ये बात भी माननी पड़ेगी कि इस देश में शारीरिक मजदूरी की कीमत अच्छी मिलती है. बल्कि कई मामलों में बौद्धिक मजदूरी से भी ज्यादा अच्छी। वैसे थोड़ा दिमाग और अनुभव भी था तो काम अच्छा चल निकला. अब काम बहुत है परन्तु शरीर में उतनी क्षमता नहीं है इसलिए आवश्यक हो गया है कि और लोगों को काम पर रखूं.
पिछले 6 सालों में ही मेहनत और मजदूरी करके अपने बूते पर ही यहाँ तक पहुंचा हूँ कि ये कह सकता हूँ अपनों के दिए गम बहुत मिले, ठोकर और चोट बहुत तगड़ी खाई पर इतना खुश पहले कभी नहीं था जितना कि आज हूँ. और हाँ केवल खुश ही नहीं आर्थिक रूप से भी इतना सम्पन्न पहले कभी नहीं था जितना कि आज हूँ. सब कुछ गँवा कर और अपनों से ही चोट खाकर ये समझ आया कि पैसा होना और अपनी जेब में होना बहुत महत्वपूर्ण है.
पिछले साल ही अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए एक बड़ी जगह ली और कुछ लोगों को काम पर भी रखा। ह्यूमन रिसोर्स तो हमेशा ही मैनेज करना पड़ता है इसलिए काबिल और योग्य लोगों की जरूरत और खोज हमेशा ही चलती रहती है।
डेढ़ महीने पहले गिर गया था और बाएं पैर के घुटने का लिगामेन्ट फिर से टूट गया और सर्जरी करानी पड़ी। अभी भी बैसाखी के सहारे ही चल रहा हूँ। खुद काम नहीं कर पाता पर एम्प्लोयीज के सहारे काम चल रहा है। सोचता हूँ कि कितना अच्छा हुआ कि तब नहीं गिरा जबकि अकेले काम करता था नहीं तो दो महीने काम बंद हो जाता। दिन पर दिन ठीक हो रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ कि दो – तीन हफ्ते में काम भी करने लग जाऊंगा।
पिछले दिनों जब मैंने अपनी कुछ पोस्ट में मेरे पिता और भाइयों के द्वारा किये गए विश्वासघात के विषय में लिखा तो बहुत लोगों को आश्चर्य हुआ और बहुत सारे मित्रों ने सवाल किए कि आखिर क्या, क्यों और कैसे हुआ और अब मैं क्या करने जा रहा हूँ? कुछ लोगों ने ये भी पूछा कि मैं यहाँ ये सब क्यों लिख रहा हूँ?
मैंने पिछले पाँच सालों में कई सारे तरीकों से बहुत बार अपने पिता और भाइयों से सुलह संवाद के प्रयास किए, परंतु असफल रहा। इन्होंने मेरे नाम का मिस यूज करके बच्चों की चैरिटी के नाम पर दान के पैसे का गलत इस्तेमाल अपनी अय्याशियों में किया और मेरे तथा मेरी बेटी के हिस्से की संपत्ति को गैर कानूनी तरीके से फर्जी कागज बना कर अपने नाम किया।
दोस्तों मैंने बहुत प्रयास किए, आप कल्पना नहीं कर सकते कि मैं कितना रोया और पिछले पाँच सालों में कितनी बार मैंने अपनी पीड़ा इनसे कही परंतु मुझे दुत्कार और अपमान के सिवाय और कुछ नहीं मिला। हमेशा मुझे यह सुनने को मिला कि जा, जो करना है कर ले!
आखिरी बार भी करीब दो – तीन महीने पहले जब मैंने मेरे भाई को भारत में फोन किया तो उसने मुझे कहा कि “बकचोदी मत कर, जा, जो करना हो कर ले, जेल भेज दे हम तीनों को!” (तीनों का मतलब मेरे पिता और दोनों छोटे भाई)
ये वो भाई है जिसे मैंने पाला पोसा था। उसकी बात को रिकॉर्ड करके रख लिया है मैंने। जब भी मोटिवेशन कम होता है तो सुन लेता हूँ उसके ये शब्द कि “जा, जो करना हो कर ले” और फिर से जान आ जाती है मुझमें!
मेरे पास भारत मे कोई भी ऐसा नहीं है जिससे मैं अपने दिल की बात कह सकूँ! पिछले कुछ सालों से मैं घुट कर रहा। मैंने निश्चय किया है कि यहाँ जर्मनी से लेकर भारत तक केवल कानून की अदालत में ही नहीं बल्कि जनता की अदालत में भी जाऊंगा। मुझे अब इसका भी फर्क नहीं पड़ता कि मुझे कुछ मिले या नहीं! चिंता जीत या हार की नहीं है। परंतु मैं अपने और अपनी बेटी के हक की लड़ाई जरूर लड़ूँगा। मैं इन्हें बेनकाब जरूर करूंगा। मेरी जीत तो इसमें भी होगी अगर इनके दिल में कभी ये एहसास भी आया कि इन्होंने मेरे प्रेम और विश्वास को धोखा देकर अच्छा नहीं किया।
कोई और मुझसे बात करने वाला नहीं है वहाँ तो दिल की भड़ास निकालने के अलावा और भी कारण है यहाँ लिखने का!
क्योंकि ये दस्तावेज है मेरे जीवन का!
क्योंकि भारत में पारिवारिक दुराचार, भ्रष्टाचार, झूठ और धोखे की कहानी एक आम बात है!
ये कहानी बहुत लंबी है, मैं क्रमशः सब कुछ लिखूंगा। ये गलती है मेरी कि मैं घुट कर रहा परिवार के झूठे सम्मान की खातिर बहुत कुछ छुपा कर रखा। परंतु जब जागे तभी सवेरा! ठोकर खा कर ही कोई जागता है!
इसलिए भी लिखूंगा कि बहुत से लोगों को इससे कुछ प्रेरणा ही मिलेगी, सीख ही मिलेगी।
मैं अपना दिल हल्का करने के लिए लिखूंगा। क्रमशः …………