कल मैंने आपको शिव की एक कहानी सुनाते हुए बताया था कि किस तरह हिंदुओं ने शिवलिंग के रूप में उनके लिंग की पूजा शुरू की। लेकिन बहुत से हिन्दू यह स्वीकार नहीं करना चाहते कि वे लिंग की पूजा करते हैं।
कल के ब्लॉग में मैंने जो कहानी लिखी थी वह जस की तस धर्मग्रंथों में लिखी हुई है। शिव का लिंग धरती पर गिरा और लोगों ने उनके शरीर के ठीक उसी हिस्से की पूजा करने का वचन दिया। अब अगर आप कहें कि यह लिंग की मूर्ति है और आप उसे ब्रह्मांड का प्रतीक मानना चाहते हैं तो मानते रहें। कोई समस्या नहीं है। लेकिन आप यह नहीं कह सकते कि वह लिंग नहीं है। जी हाँ, धर्मग्रंथों में यह जननांग हैं और आप रोज़ उनकी पूजा करते हैं और अगर आप धार्मिक हैं तो आपको यह बात स्वीकार करनी चाहिए।
शिव और उनके शरीर के सबसे गुप्त हिस्से के विषय में एक और कहानी है, जो आप पसंद करेंगे:
एक बार शिव ने एक बेहद सुंदर स्वर्ग की एक अप्सरा जैसी मोहिनी स्त्री को देखा। वे तुरंत उत्तेजित हो उठे और उसके पीछे दौड़ पड़े। उस सुन्दर स्त्री ने जब देखा कि शिव उनके पीछे भागे चले आ रहे हैं तो वह भी घबराकर भागने लगी मगर शिव से भला कौन मुक़ाबला कर सकता था लिहाजा उन्होंने उसे पकड़ लिया और आलिंगनबद्ध करने की कोशिश करने लगे। वह पूरी शक्ति से उनके चंगुल से निकलने की कोशिश करने लगी कि किसी तरह उनसे बच सके। और आश्चर्य! अनहोनी हो गई और वह किसी तरह उनके बाहुपाश से मुक्त हुई और भागने में कामयाब हो गई!
इस संक्षिप्त मगर उत्तेजक संघर्ष के चलते शिव का लिंग स्खलित हो गया। जी हाँ, और जहाँ-जहाँ यह वीर्य गिरा वहाँ-वहाँ उसने सोने और चांदी की खदानें निर्मित कर दीं।
मैंने जानता हूँ कि कुछ लोग मुझसे इस बात के प्रमाण पूछने के लिए बेताब हो रहे होंगे; तो उनके लिए निवेदन है कि श्रीमद भागवत महापुराण के स्कन्ध 8, अध्याय 12 के 24 से 34 तक के श्लोक पढ़ लें।
जब मैंने ये कहानियाँ अपनी पत्नी को सुनाईं तो उसने मुसकुराते हुए कहा कि ये कहानियाँ तो किसी खराब, अरुचिकर पॉर्न की तरह लग रही हैं या अधिक से अधिक किसी मज़ाकिया कॉमिक की विषयवस्तु जैसा कुछ-धार्मिक ग्रन्थों जैसा तो इसमें कुछ भी नहीं है। सच बात है-और स्पष्ट ही, अतीत में, जब उन्हें लिखा गया होगा तब लोगों का दिमाग जैसा रहा होगा, उसी के अनुसार कल्पना करते हुए उन्हें लिखा गया होगा! यही सब चीज़ें उस समय लोग सुनना चाहते रहे होंगे और इसलिए अपनी कहानियों में ईश्वर और धर्म का घालमेल करते हुए इन ग्रन्थों की रचना की गई होगी!
मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि इसमें कुछ भी गलत है! मेरा अर्थ यह नहीं है कि धर्मग्रंथों में यौन विषय नहीं होने चाहिए! लेकिन दिक्कत यह है कि धार्मिक लोग तथाकथित ‘पवित्रता’ का दिखावा करते हुए कहते हैं धर्म का सेक्स से कोई संबंध नहीं है। उन्हें मानना चाहिए कि यह उनके धर्म का हिस्सा है, उनके धर्मग्रंथों का हिस्सा है! जब आपकी पूजा का एक प्रमुख पात्र लिंग है तो फिर आपको जननेन्द्रियों को वर्जना के साथ नहीं संयुक्त नहीं करना चाहिए!
एक समय जब मैं धार्मिक हुआ करता था, इन सभी धर्मग्रंथों को जानता था और उनका अध्ययन किया करता था। मैं जानता था कि यह लिंग ही है-और उसमें मुझे कुछ भी अजीब नहीं लगता था। मैं इन सब कि बीच बड़ा हुआ हूँ और आज, जब कि दूसरे गैर हिंदुओं को यह बताते हुए मुझे इन पर हँसी आती है, पहले भी मैं इन कहानियों के बारे में पूरी तरह स्पष्ट था।
मैंने सुना है और फोटो भी देखे हैं, जिनके अनुसार स्पष्ट है कि जापान और नेपाल में भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो लिंग की पूजा करते हैं। गजब! और भी ऐसे लोग होने चाहिए! जीवन को गले लगाने वाले और जीवन के-और शरीर के भी-महत्वपूर्ण हिस्सों पर अपना ध्यान केन्द्रित करने वाले!
शर्त यह है कि आप यह दावा न करें कि ऐसा करते हुए आप लिंग की पूजा नहीं कर रहे हैं! क्योंकि यह सरासर पाखंड होगा!