जब आप अभिभावक बन जाते हैं तो आपके जीवन में और आपकी दिनचर्या में बहुत बड़ा परिवर्तन आ जाता है। समझिए, दुनिया ही बदल जाती है! आपका बच्चा हर वक़्त आपके सोच में मौजूद होता है और इसलिए मैं समझता हूँ कि जीवन के बारे में मेरे चिंतन-मनन और सोच-विचार के केंद्र में अक्सर अपरा मौजूद होती है। आज मैं इस विषय में एक उदाहरण देना चाहता हूँ: अगर हम दुनिया को उस तरह देखें, जिस तरह एक बच्चा देखता है तो हम वास्तव में अपने तनाव को बहुत कुछ कम कर सकते हैं!
अपनी बच्ची को खेलता हुआ देखकर मैं इस बिन्दु पर पहुँचा हूँ। क्या कभी आपने ऐसा होते हुए देखा है कि बच्चा खेल रहा है और तभी अचानक कुछ गलत हो जाता है और जैसे उसका सारा संसार ही भरभराकर कर ढह गया हो? एक कागज का सितारा अपरा का प्रिय खिलौना था और वह अक्सर उससे खेलती रहती थी। अभी कुछ दिन पहले उसका एक कोना टूटकर अलग हो गया और जैसे प्रलय आ गया हो! लेकिन तब तक ही जब तक रमोना ने एक रंगीन, चमकता, भड़कीला पीला टेप उस पर चिपकाने के लिए ढूँढ़ नहीं निकाला। फिर तो वह पहले से भी ज़्यादा बढ़िया हो गया!
अब एक वयस्क बन जाइए और मान लीजिए कि चीज़ें उस तरह नहीं हो रही हैं, जैसी उन्हें होना चाहिए। बच्चे की तरह निराशा में हाथपैर मत पटकिए- बल्कि उसे तुरत-फुरत ठीक करने की जुगत भिड़ाइए! मामले को लंबा मत खींचिए और आगे बढ़िए! समस्या का निदान ढूँढ़िए और भूल जाइए! क्या गलत था यह सोचते हुए अपने निर्णयों पर पछताने से कोई लाभ नहीं है क्योंकि उन्हें आप अब वापस लौटा नहीं सकते और यह बहुत से व्यर्थ तनावों का मुख्य कारण होता है!
एक बात और नोट कीजिए: बच्चे एक साथ बहुत से काम नहीं करते बल्कि एक काम पर ही पूरा ध्यान केन्द्रित करते हैं। वयस्क इस मामले में बच्चों से इस तरह अलग हैं कि वे हर वक़्त भूत और भविष्य के बारे में ही सोचते रहते हैं, बहुत सी योजनाओं के बारे में, तरकीबों, तिकड़मों के बारे में, जब कि कर कुछ और रहे होते हैं। नतीजा यह होता है कि आप कोई काम पूरा करना चाहते हैं लेकिन ध्यान-भंग की ऐसी हालत में आप उसे उचित समयावधि में या ठीक तरह से निपटा नहीं पाते। ये विचार पहले ही आपकी ऊर्जा नष्ट कर रहे होते हैं और फिर काम में होने वाली देर आपका तनाव और बढ़ाती जाती है। बच्चा बनने की कोशिश कीजिए- एक बार में सिर्फ एक पैर आगे बढ़ाइए!
लचीलापन लाइए, खोजबीन कीजिए। बच्चे हर वक़्त कुछ नया करने के लिए तैयार रहते हैं। वे जानते हैं कि किसी समस्या के और भी कई हल हो सकते हैं जिन्हें वे अभी तक आजमा नहीं सके हैं। आपके पास एक लाभ है- बच्चों के मुक़ाबले आप बेहतर स्थिति में हैं: आपके पास अनुभव है। लेकिन ज़्यादातर लोग इस अनुभव का नकारात्मक उपयोग करते हैं और उन्हीं, सैकड़ों बार आजमाई हुई बातों को दोहराते हैं जब कि उन्हें नए तरीकों को खोजने और उन्हें आजमाने के लिए सदा तैयार रहना चाहिए! बच्चे की तरह सोचिए- आप चकित रह जाएँगे!
और सबसे बड़ी बात- वही कीजिए, जो आप करना चाहते हैं। बच्चे कभी भी कोई ऐसा काम नहीं करते, जिसमें उन्हें मज़ा नहीं आता। जो काम उन्हें नहीं करना है, वे साफ मना कर देते हैं और उन्हें मनाते-मनाते आपकी हालत खराब हो जाती है। वयस्क के रूप में आपको कई काम ऐसे भी करने पड़ते हैं जो आपको पसंद नहीं हैं लेकिन अगर आप ठीक तरह से उनके बारे में सोचें तो आपको पता चलेगा कि वास्तव में उन्हें करने की ज़रूरत भी आपको नहीं थी। कई दूसरे तरीके भी मौजूद हैं। भरसक ऐसे कामों से दूर रहिए- और एक बच्चे की तरह जीवन का आनंद लीजिए!