जब पिता कह दे कि मैं मर गया तेरे लिए!
कल्पना करें मेरी उस मानसिक दशा की जबकि मैं बाप के जीवित रहते ही अनाथ हो गया, और मालूम है क्यों?
क्यों कि मैं अपने भाइयों और बाप की अय्याशियों और धन की हवस को पूरा करने के लिए लोगों से बच्चों की चेरिटी के नाम पर लिया गया चन्दा नहीं भेजना चाहता था।
क्यों कि मैंने अपने पिता के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि हम व्यापार के नाम पर लिए गए कर्ज को बच्चों के लिए आए दान के पैसे से चुकाएं!
परन्तु फिर मैंने भी निश्चय किया कि मैं बाप का प्यार पैसे से नहीं खरीदना चाहता!
ये मेरे वही पिता हैं, जिन्होंने मेरे ठीक से जवान होने के पहले ही काम करना बंद कर दिया था और चौदह पंद्रह साल की उमर से बाल कथाकार (कलाकार) के रूप में केवल मेरी ही कमाई से घर और परिवार का खर्च चलता था।
ये मेरे वही पिता हैं, जिन्होंने मुझे तब से बेटे से ज्यादा यजमान समझा जबसे मैंने अच्छे से पैसा कमाना शुरू किया!
ये मेरे वही पिता हैं, जिनके हाथ में हमेशा सोना, चाँदी, पैसा, जायदाद, मैंने जो कुछ भी कमाया वो रख दिया।
ये मेरे वही पिता हैं, जिनकी सारी गलतियों को मैंने केवल अपनी माँ की वजह से ही नहीं बल्कि इसलिए भी माफ कर दिया क्यों कि वो कहते थे कि इस दुनिया में ऐसा कोई भी अपराध नहीं होता जिसे माफ न किया जा सके!
ये मेरे वही पिता हैं, जिन्होंने फोन पर मेरा मजाक उड़ाया कि अब तू पछता रहा है न कि तूने हमारे (पिता और भाइयों) पर (संपत्ति और जायदाद के मामले में) विश्वास किया!
ये मेरे वही पिता हैं, जिनकी पैसे की हवस ने हम तीनों भाइयों के बीच में जहर घोल दिया!
ये मेरे वही पिता हैं, जिनसे मैं भाइयों से मिले धोखे, अपमान और दुत्कार की कहानी बताकर सालों तक रोता रहा परन्तु वो मुझे झूठ बोलकर ठगते रहे!
ये मेरे वही पिता हैं, जिन्हें पिछले सालों में मैंने सैकड़ों बार फोन करने का प्रयास किया, न जाने कितने मैसेज भेजे परन्तु मुझे कभी कोई जवाब न मिला क्योंकि मेरा बाप तो जीते जी मर चुका था मेरे लिए!
फिर मैंने पिछले साल जुलाई में आखिरी वॉयस मैसेज भेजा कि आपके मरने के पहले केवल एक बार जीवित देखना चाहता हूँ आपको, आँखों मे आँखें डाल कर! मैंने कहा कि आपके कन्धों पर सिर रख कर रोना चाहता हूँ केवल एक बार! परन्तु फिर भी कोई जवाब नहीं मिला! क्योंकि मेरा बाप तो जीते जी मर चुका था मेरे लिए!
फिर जब पिछले साल सितंबर में मेरे दोस्त ने बताया मुझे कि तुम्हारे पिता दिल्ली अस्पताल में भर्ती हैं तो मैं रोता हुआ तुरन्त अगली फ्लाइट लेकर जर्मनी से दिल्ली आ गया। क्यों कि मैं अपने पिता को केवल एक बार मरा हुआ नहीं जीते जी देखना चाहता था! पिता ठीक भी होने लगे, मैंने जर्मनी भी वापिस आ गया और वो घर भी वापिस चले गए परन्तु मैंने यही पाया कि सचमुच ही मेरे पिता मेरे लिए मर चुके थे।
रोते हुए ही गया था, दुख, पीड़ा, अपमान और तिरस्कार सह कर रोते हुए ही वापिस आ गया। किसी और के लिए नहीं, अपने लिए ही गया था, केवल एक बार बाप को जिन्दा देखना चाहता था और देख कर वापिस आ गया।
परन्तु ईमानदारी की बात ये है कि इन सब बातों का मतलब ये नहीं है मैं अपने पिता को प्यार नहीं करता या वो मुझे प्यार नहीं करते! वो चाहे जैसे भी हों उन्होंने मुझे पिता का और मैंने उन्हें एक बेटे का प्यार दिया है। हमने बहुत खूबसूरत समय भी साथ में बिताया है और मैं उनकी वो मजबूरी भी जानता हूँ जिसने कि उन्हें मेरे प्रति इतना निष्ठुर कर दिया!
ऐसा भी नहीं है कि मैं भूल गया अपने पिता को! मैं आज भी अपने बाप के लिए रोता हूँ। ये पंक्तियाँ लिखते हुए भी रो रहा हूँ और शायद जीवन भर रोऊँगा, परन्तु अब जीवन में कभी उसे देखने, मिलने की इच्छा नहीं है। उसके लिए मेरी श्रद्धा पूरी हो गई।
अब तो केवल इतनी ही इच्छा रह गई है कि वो सब कुछ कहने का साहस रख सकूँ जो मेरे दिल में है।