ग्रान कनारिया में जिनसे भी हम मिले, स्वाभाविक ही सबके बीच अपरा बहुत लोकप्रिय हो गई थी। बातें करने में वह बहुत तेज़ है और वहाँ अधिकतर लोग हिन्दी या जर्मन नहीं जानते थे फिर भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। थोड़े बहुत अंग्रेज़ी के शब्दों के बल पर, जिन्हें वह जानती थी, और वहाँ के कुछ नए स्पैनिश शब्द लेकर, जिन्हें उसने बहुत शीघ्र सीख लिया था, वह सबसे बातचीत करने की कोशिश करती थी। उसकी इस करामात से जो लोग मंत्रमुग्ध रह गए थे उनमें एक महिला भी थी, जिसका एक दो साल का भतीजा भी था। वह बिल्कुल बोल नहीं पाता था। इसका जो कारण उसने बताया वह बड़ा दिलचस्प था!
यह बच्चा सिर्फ कुछ आवाज़ें ही निकाल पाता था और अभी हाल ही में माँ और पिता के लिए उपयोग में आने वाले शब्द और ‘हाँ’ और ‘ना’ बोलना सीख पाया था। और इतना भी तब, जब उसके अभिभावक उसे एक डॉक्टर को दिखाने ले गए और फिर उस डॉक्टर की सलाह पर चले! स्वाभाविक ही, अगर किसी का बच्चा दो साल की उम्र तक एक शब्द न बोल पाए तो माँ तो चिंतित होगी ही। उसने डॉक्टर से हर तरह की जाँच कारवाई। परिणाम: बच्चे में कोई खराबी नहीं पाई गई, न तो उसके कानों में, न उसकी अक्ल में और न ही उसके वोकल कोर्ड्स (वाकतंतुओं) में। उससे जो कुछ भी कहा जाता था, वह अच्छी तरह समझ रहा था। प्रतीत होता था कि बोलने के लिए जो कुछ भी आवश्यक था, उसके पास मौजूद था। तो फिर डॉक्टर ने उन्हें क्या सलाह दी?
उसने उस महिला से सिर्फ इतना कहा कि वह बच्चे के साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय व्यतीत करे।
जी हाँ, उसका कहना था कि यही कारण है कि उसका बच्चा बोलने में बहुत धीमी प्रगति कर पा रहा है। दोनों अभिभावक रोज़ काम पर चले जाते थे, बच्चा एक क्रेच में चला जाता था और उसकी दादी या उसकी चाची उसे वहाँ से ले आती थी और उसके साथ बाकी का दिन समय बिताती थी। सिर्फ शाम को और सप्ताहांत में सारा परिवार इकट्ठा हो पाता था। धंधे की यात्राओं के कारण अक्सर यह अवसर भी नहीं मिल पाता था, कोई एक होता था और कुछ रिश्तेदार।
डॉक्टर ने कहा कि दादी या चाची दोनों से और क्रेच में दूसरे लड़कों से बात करना और बोलने के लिए वहाँ के शिक्षकों से मिलने वाला प्रोत्साहन भी बच्चे के विकास के लिए विशेष मानी नहीं रखता। बच्चे के लिए अपने माता-पिता के साथ समय बिताना बेहद आवश्यक है! उनसे बेहतर शिक्षक कोई नहीं हो सकता, उसके विकास में माता-पिता की भूमिका का कोई विकल्प या पर्याय नहीं है! अपने बच्चे के लिए समय निकालिए, उसके साथ अधिक से अधिक सक्रिय रहिए, उसे नई नई चीज़ें दिखाइए और प्रोत्साहित कीजिए कि वह उनके बारे में कुछ कहे, बात करे और ढाढ़स बंधाइए कि आप सिखाने के लिए उसके पास मौजूद हैं!
उस महिला पर मुझे दया आ रही है कि एक डॉक्टर को यह सब बताना पड़ा! शायद उसे बहुत बुरा लगा होगा, अपराध बोध भी हुआ होगा-कोई बच्चे के लालन-पालन के बारे में आपकी आलोचना करे यह अच्छा नहीं लगता लेकिन यह सुनना कि आप अपने बच्चे के प्रति लापरवाह हैं, उसकी उपेक्षा कर रही हैं, जबकि आप समझ रही हैं कि आप उसके लिए हर संभव अच्छा से अच्छा कर रही हैं, आपके लिए निश्चय ही बहुत असुविधाजनक और दुखद होगा! लेकिन आखिर उसका डॉक्टर के पास जाना ठीक ही रहा और यह भी कि डॉक्टर ने भी उससे सब कुछ साफ-साफ समझाकर कह दिया। यही उस बच्चे के लिए बहुत अच्छी बात थी!
अब यह महिला अपने काम पर कम समय बिताती है और बच्चे की हालत में सुधार दिखाई दे रहा है। दूसरे सभी अभिभावकों को इस कहानी से यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि उनके लिए बच्चों के साथ ज़्यादा और उपयोगी, सकारात्मक, सार्थक, अच्छा समय बिताना कितना आवश्यक है! अधिक से अधिक, जितना संभव हो उनके साथ रहें! दूसरी कोई भी बात इससे अधिक महत्वपूर्ण नहीं है!