मैंने पहले आपको बताया था कि सन 2005 की शुरुआत में जिस संगीतकार को मैं यूरोप दौरे पर अपने साथ ले गया था, उसने मुझे अपने रवैये से बहुत निराश किया। बाद में मैंने निर्णय किया कि भविष्य में उसे अपने साथ कभी नहीं ले जाऊंगा। लेकिन मैं जानता था कि अपने कार्यक्रमों में किसी संगीतकार का साथ होना लाभप्रद है-आखिर संगीत से कार्यक्रम की शोभा बढ़ती ही है-इसलिए 2005 के आखिरी महीनों में जब दोबारा यूरोप प्रवास का अवसर आया तो मुझे पुनः किसी संगीतकार की तलाश थी।
शायद आप लोग अनभिज्ञ होंगे कि ऐसा अवसर किसी भी संगीतकार के लिए बड़ा सुनहरा मौका होता है। पश्चिमी देशों में कार्यक्रम प्रस्तुत करने का, दुनिया घूमने का और भारत के बाहर प्रसिद्धि प्राप्त करने का अवसर मिलना किसी भी संगीतकार का एक स्वप्न होता है! उन्हें लगता है कि पश्चिम की धरती पर पाँव रखते ही उन्हें सड़कों पर पड़ा सोना मिल जाएगा, सफलता उनके कदम चूमेगी, आसमान से धन बरसेगा और चारों ओर सुख-सुविधा होगी। इसलिए जब भी ऐसा कोई मौका दिखाई दे, लपक लो, छूटने न पाए!
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि संगीतकार ऐसा सोचते हैं और मुझे लगता है कि यह बहुत हद तक सही भी है। भारत में असंख्य औसत दर्जे के, बहुत से अच्छे और कुछ बेहतरीन संगीतकार हैं। यह बहुत विशाल देश है और हर योग्य संगीतकार को उसकी प्रतिभा और रियाज़ के अनुपात में स्वीकृति और मान्यता प्राप्त नहीं हो पाती। लेकिन अगर पश्चिम में किसी दूसरे संगीतकार, गुरु या वक्ता के साथ आपको स्टेज साझा करने का मौका मिलता है तो तुरंत ही आपको अपनी योग्यता प्रदर्शित करने का अवसर प्राप्त हो जाता है, वह भी एक ऐसे बाज़ार में, जहां आज भी भारतीय संगीत की बड़ी मांग है। इसके अलावा आपका संपर्क भी तेज़ी के साथ विस्तार पाता चला जाता है। किसी भी संगीतकार के लिए पश्चिमी देशों की उनकी पहली यात्रा उनके सफल अंतर्राष्ट्रीय कैरियर की पहली सीढ़ी होती है।
लेकिन बहुत से लोगों के लिए ऐसी यात्रा उनकी पहली और आखिरी विदेश यात्रा सिद्ध होती है क्योंकि वे दूसरी संस्कृतियों के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते या क्योंकि रुपया सड़क पर पड़ा नहीं मिलता कि झुके और उठाकर जेब में रख लिया या क्योंकि वे इतने प्रतिभाशाली और योग्य नहीं होते, जितना उन्हें साथ ले जाने वाले ने शुरू में समझा था।
फिर भी कोशिश वे करते ही हैं और इस तरह मुझसे परिचित सभी भारतीय संगीतकार मुझसे हजारों बार पूछ चुके हैं कि क्या मैं उन्हें अपनी विदेश यात्राओं में साथ ले जाऊंगा। इसलिए जब मैं 2005 में किसी संगीतकर की तलाश में था तब मेरे पास संगीतकारों के चुनाव के लिए बहुत से विकल्प मौजूद थे। मैं कई बार पहले भी विभिन्न वाद्य-यंत्र बजाने वाले साज़िंदों और संगीतकारों को अपनी विदेश यात्राओं में साथ ले जा चुका था इसलिए इस बार उनके चुनाव में अपने उन अनुभवों का उपयोग करने का प्रयास करना चाहता था।
आखिर मैंने एक संगीतकार का चुनाव किया, जो पहले भी भारत में मेरे साथ यात्राएं कर चुका था, जिसे मैं व्यक्तिगत रूप से जानता था और जिसके विषय में मैं विश्वासपूर्वक कह सकता था कि वह मेरे काम के लिए पर्याप्त प्रतिभाशाली और पारंगत था। जब उसे अपने चुनाव के विषय में पता चला, वह खुशी से उछल पड़ा और तुरंत अपनी योजना बनाकर मेरे साथ आने के लिए तैयार हो गया। और उसके वीसा, टिकिट की व्यवस्था करने में जादा समय नहीं लगा और सूटकेस तो तैयार ही रखा था।
अब मेरे पास एक नया संगीतकार था-और स्वाभाविक ही एक बार फिर मुझे एक नया अनुभव प्राप्त होने वाला था, मगर उसके बारे में अगले हफ्ते आपको बताऊंगा!