क्या योग सीखने वाले छात्रों की मुद्राएँ ठीक करना आवश्यक है? 29 सितंबर 2015
हाल ही में उच्चतर योग-विश्रांति शिविर में भाग लेने आश्रम आए एक मेहमान द्वारा प्रेरित कुछ पंक्तियों को आज मैं अपने ब्लॉग का विषय बनाना चाहता हूँ। यशेंदु के साथ अपने दो घंटे के दैनिक सत्र में एक ऐसा विषय उभरकर सामने आया जो सदा से योग शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए रोचक रहा है: क्या योग-शिक्षकों को अपने छात्रों की योग-मुद्राओं को सुधारना चाहिए?
स्वाभाविक ही, इस विषय में विभिन्न शिक्षकों के विचार भिन्न-भिन्न होंगे। मैं यहाँ अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहा हूँ और वह एक पंक्ति में यह है: कम से कम करना चाहिए- उतना ही, जितना अनिवार्य रूप से आवश्यक हो।
जब मैं योग सिखाता था तब मैं हमेशा इस सिद्धान्त का पालन करता था और यशेंदु और रमोना भी इसी नियम का पालन करते हैं। सामान्य कार्यशालाओं में आप शायद ही कभी हमें किसी व्यक्ति को ठीक करता सुनते होंगे-कि हमने किसी से कहा हो कि यह मुद्रा ऐसी नहीं, वैसी होनी चाहिए या जिस मुद्रा में वे बैठे या खड़े हैं, वह गलत है।
क्यों? यह प्रश्न, स्वाभाविक ही हर वह योग-शिक्षक या योग-छात्र पूछेगा, जो मुद्राएँ ठीक करने या कराए जाने का आदी है। आप कैसे जानेंगे कि जो आप कर रहे हैं, वह ठीक कर रहे है या गलत?
पहली बात तो यह कि योग किसी तरह की कोई प्रतियोगिता नहीं है जिसमें हार या जीत का प्रावधान हो या यह कि कोई एक सर्वश्रेष्ठ हो। योग में आप अपनी मुद्राओं को सुधारने की कोशिश करते हैं लेकिन किसी जीत के लिए नहीं बल्कि अपने भले के लिए, इसलिए कि वैसा करने से आपको अच्छा लगता है। इतना समझने के बाद, स्वाभाविक ही, किसी मुद्रा में रहते हुए आपको कुछ गतिविधियों से बचना चाहिए। लेकिन अक्सर ऐसी स्थिति पेश नहीं आएगी अगर आप खुद प्रदर्शन करके दिखा दें कि किसी मुद्रा में आने और उससे बाहर निकलने का ठीक तरीका क्या है। प्रदर्शन करते समय ही बोलकर बताएँ और आपके छात्र आपके इस प्रदर्शनात्मक उदाहरण से पूरी तरह समझ जाएँगे। शुरू में ही आपको बता देना चाहिए कि हर एक अपनी शारीरिक क्षमता के अनुपात में ही आगे जा सकता है और किसी भी स्थिति में हमें अपनी सीमा नहीं लांघना है।
एक बार यह ढाँचा तय हो जाने के बाद मुझे लगता है कि कक्षा में बार-बार सुधार के निर्देशों का योग-छात्रों पर नकारात्मक असर पड़ता है। मुझे कई लोगों ने बताया कि कुछ शिक्षकों ने यह कह-कहकर कि वे जो कर रहे हैं, गलत है, उन्हें योग से विमुख कर दिया। इससे इस बात की भी पूरी संभावना बनती है कि आप योग के सिर्फ बाहरी पहलू पर फोकस करने लगें और सिर्फ नकारात्मक बातों पर ज़ोर देने लगें जब कि वे अपनी मुद्राओं, व्यायामों और मांसपेशियों में खिंचाव पैदा करने वाली दूसरी यौगिक गतिविधियों से भीतर से भी अच्छा महसूस कर रहे होते हैं।
इसके अलावा आप दूसरों के शरीरों की क्षमता नहीं जानते। विशेष रूप से कुछ घंटों की योग कार्यशालाओं या तब, जब आपको किसी छात्र के साथ कुछ दिनों तक के लिए अभ्यास का मौका मिलता है, आप, उसका चिकित्सकीय इतिहास जानते हुए भी यह नहीं समझ सकते कि मसलन, वह पूरा पैर क्यों नहीं उठा पा रहा है या अपनी पीठ को अपने बगल वाले छात्र की तरह मोड़ क्यों नहीं पा रहा है! अब अगर आप उसके पास जाकर उसे अपना घुटना फर्श से चिपकाकर रखने के लिए कहेंगे-जब कि शारीरिक रूप से ऐसा करने में वह अक्षम है तो उसके लिए यह बड़ा असुविधाजनक होगा। बल्कि यह उसके लिए यह बेहद निराशाजनक होगा!
अगर आपको वाकई लगता है कि सामने वाला पूरी तरह नहीं समझ पाया है कि अपने किसी अंग को कहाँ रखना है या किन बातों का उन्हें विशेष ध्यान रखना है, तो यह बताने का कोई भिन्न तरीका भी हो सकता है! यह कहने की जगह कि ‘सांड्रा, तुम्हारी पीठ झुकी हुई है, उसे सीधा करो’ या ‘टिम, अपने कूल्हे ज़रा और झुकाओ’, आप कह सकते हैं, ‘इस मुद्रा में मुख्य फोकस रीढ़ की हड्डी को सीधा रखने पर होना चाहिए’ या ‘हर बार साँस छोड़ते हुए कूल्हों को थोड़ा और नीचे झुकाना है’। वे खुद की ओर देखेंगे और अगर उनके लिए संभव हुआ तो स्वयं अपनी मुद्रा ठीक कर लेंगे।
निश्चित ही, अगर आप किसी को लंबे समय तक सिखा रहे हैं, अगर सामने वाला खुद चाहता है कि उसकी मुद्राओं को सुधारा जाए या अगर आप किसी योग-शिक्षक को ही सिखा रहे हैं कि वह खुद भी योग की शिक्षा दे सके तब तो सीधे उसकी मुद्राएँ ठीक करना उचित है-लेकिन सामान्य सत्रों में आम तौर पर ऐसा नहीं होता!
इसके अलावा एक बात आप हमारी कक्षा में कभी नहीं देखेंगे: किसी व्यक्ति को शारीरिक रूप से सही मुद्रा में आने के लिए मजबूर करना या आगे क्षमता से ज़्यादा अपनी मांसपेशियों को खींचने के लिए प्रोत्साहित करना! अगर आप ऐसा करते हैं तो इसका अर्थ यही है कि आप उस व्यक्ति के शरीर को खुद उससे बेहतर जानते हैं। समस्या यह है: आप ऐसा करके उस व्यक्ति को शारीरिक नुकसान पहुँचा सकते हैं, बल्कि गंभीर चोट पहुँचा सकते हैं! भले ही आपने मनुष्य की शरीर रचना का अध्ययन किया हो, भले ही आप सामने वाले के चिकित्सकीय इतिहास से वाकिफ हों और तदनुसार उसे सलाह दे रहे हों, फिर भी अगर आप उसे तेज़ी और सख्ती से या बहुत ज़ोर देकर योगासन कराएँगे तो उसे नुकसान पहुँचा सकते हैं!
अंत में यही कि आप नहीं जानते कि उसके शरीर के साथ आपकी नजदीकी से आपका छात्र किस हद तक सुविधा महसूस करता है! हो सकता है कि आपका उसके बहुत करीब खड़ा होना न भा रहा हो, आपका नीचे झुककर ताकना उसे अच्छा न लग रहा हो और आपका छूना उसे नापसंद हो! आप पूछ भी तो सकते हैं लेकिन दस लोगों के बीच उसे प्रतिवाद करने में भी संकोच होगा-और वह अगली बार कक्षा में न आना ही उचित समझेगा।
मुझे लगता है कि कक्षा में किसी दूसरे को छूने की आपको कोई ज़रूरत नहीं है और सलाह दूँगा कि मौखिक निर्देशों को भी कम से कम रखा जाना चाहिए।