आपका समय अमूल्य है, उसे टीवी सीरियल देखकर बरबाद न करें! 17 सितंबर 2014
हम लोग इस वक़्त जर्मनी में एक सुखद और भावुक कर देने वाला सप्ताह गुज़ारकर भारत की ओर उड़ान भरने वाले हैं। दुर्भाग्य से अपरा को सर्दी और खाँसी हो गई है और बहुत छींकें आ रही हैं, बल्कि मामूली बुखार भी है। वैसे कोई ख़ास बात नहीं है और हमें विश्वास है कि हम बगैर किसी परेशानी के भारत पहुँच जाएँगे। पिछली बार लगभग पूरे सफ़र में वह सोती रही थी-और मैं भी उसके साथ सोता रहा था। और इस बीच रमोना कोशिश करती रही कि समय गुज़ारने के लिए कोई टीवी कार्यक्रम देखे मगर आखिर उसका मन नहीं हुआ। जब मेरी नींद खुली तो हम टीवी पर चर्चा करते रहे कि किस तरह वह एक व्यसन की तरह चिपक जाता है और यह भी कि क्यों मैं टीवी सीरियलों पर समय बरबाद करने को बहुत बुरा समझता हूँ। तो, ये रहे वे कारण, जिनके चलते मैं समझता हूँ कि आपको टीवी नहीं देखना चाहिए:
1) टीवी देखना समय की बरबादी है!
यह बड़ी सहज, स्वाभाविक तर्कपूर्ण बात है: इस दृश्य-यंत्र के सामने बिताए जाने वाले समय का उपयोग आप बहुत से दूसरे कामों को निपटाने, जैसे, घर की सफाई और उसे व्यवस्थित करने में कर सकते हैं। अगर इन कामों को निपटाने के बाद ही आप टीवी देखने बैठे हैं तो उसकी जगह आप मित्रों से मेल-मुलाक़ात कर सकते हैं, कुछ रचनात्मक कर सकते हैं, चित्रकारी सीख या कर सकते हैं, खेल सकते हैं, तैरने जा सकते हैं या किसी बेहतर काम में अपनी ऊर्जा खपा सकते हैं। टीवी के सामने बैठना आपको कुछ भी प्रदान नहीं करता। वह सिर्फ आपका समय गुज़ारने का काम करता है। अगर आप टीवी पर चल रहे कार्यक्रम में दिमागी तौर पर शामिल हो जाते हैं, उसमें डूब जाते हैं तो दो-तीन घंटे इस तरह गुज़ारना कोई बड़ी बात नहीं है! अगर आपके पास बहुत सारा फालतू समय है तो उसके सामने अवश्य बैठिए लेकिन अगर नहीं है तो इस चीज़ से दूर ही रहें!
2) आप इस समय का उपयोग कुछ नया सीखने में कर सकते हैं मगर करते नहीं!
लेकिन इस पर ईमानदारी के साथ सोचा जाए: जी हाँ, दुनिया को देखने-समझने के लिए टीवी से बढ़कर कुछ नहीं है। वह आपको डॉक्यूमेंटरीज़ देखने की सुविधा प्रदान करता है, दुनिया के बारे में अधिक से अधिक जानने का अवसर। दूसरी संस्कृतियों को गहराई से समझने के लिए, महत्वपूर्ण विषयों पर हो रही चर्चाओं से अपनी ज्ञान-वृद्धि के लिए या रोज़मर्रा जीवन में काम आने वाली वस्तुएँ कैसे काम करती हैं, जानने के लिए आप उनसे सम्बंधित टीवी कार्यक्रम देख सकते हैं। आप ऐसा कर तो सकते हैं मगर अक्सर 90% मामलों में आप ऐसा नहीं कर रहे होते।
आप टीवी का उपयोग निरर्थक मनोरंजन के लिए करते हैं। जी हाँ, ईमानदारी की बात यही है। इसलिए जब आप कोई ताज़ा सीरियल (soap opera) या रियलिटी शो देखते हैं तो यह मत कहिए कि आप अपने सोच-विचार की सीमाओं का विस्तार कर रहे हैं! आप सिर्फ यह चाहते हैं कि मस्तिष्क को कुछ सोचना न पड़े, टीवी आपका शुद्ध मनोरंजन करे और आपके मन को हल्का सा स्पर्श करता हुआ निकल जाए!
3) वह आपको-और आपके बच्चों को और ज़्यादा- आक्रामक बनाता है!
यह कोई नयी बात नहीं है और मैं जानता हूँ कि बहुत से लोग यह बात नहीं मानते। लेकिन मैं मानता हूँ! ख़ासकर आपके बच्चों के सम्बन्ध में! वे आपको टीवी के सामने बैठा हुआ देखते हैं तो वे भी देखने लगते हैं। और आजकल के टीवी कार्यक्रम, ख़ास बच्चों के लिए तैयार कार्यक्रम भी, इस कदर हिंसा से भरे होते हैं कि मैं कभी नहीं चाहूँगा कि मेरी बेटी ये कार्यक्रम देखे! जो वे देखते हैं उस पर सहज ही विश्वास कर लेते हैं, सोचने लगते हैं कि जो टीवी पर दिखाया जा रहा है वही उचित है, वैसा ही होना चाहिए भले ही उसमें लोगों को आपस में लड़ता-झगड़ता, मार-काट करता दिखाया जा रहा हो या निरुद्देश्य अति-हिंसा दिखाई जा रही हो! इसमें टीवी के कारण शारीरिक गतिविधियों में स्वाभाविक ही आ जाने वाली कमी को जोड़ लें, व्यायाम हेतु समयाभाव को जोड़ लें तो ये सब मिलकर ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करते हैं जिसमें स्वाभाविक रूप से बच्चों के कोमल मस्तिष्क में हिंसा प्रवेश कर जाती है-और आप भी इससे अछूते नहीं रहते!
इस बारे में अपने कुछ और विचार मैं कल के ब्लॉग में लिखूँगा!