अनपढ़ ग्रामीण और आम मध्यमवर्गीय आदमी के बाद आज मैं अंधविश्वासियों की तीसरी किस्म के बारे में चर्चा करूंगाः
अंधविश्वासी, सफल व्यवसायी
मैं इस श्रेणी के लोगों को बखूबी जानता हूं क्योंकि अपने जीवन के पिछले हिस्से में, जब मैं भारत में एक गुरु हुआ करता था, इनमें से बहुतों के साथ मेरा काफी नज़दीकी संपर्क रहा था। जब कभी भी मैं लैक्चर या प्रवचन देता था तो वहां हमेशा बड़ी तादाद में दौलतमंद लोग उपस्थित रहते थे। अकसर वे ही मेरे कार्यक्रमों के आयोजक होते थे और इसी वजह से मैं इन सफल व्यवसाइयों की सोच को समझ पाया। धनवान होने के साथ ये सभी धार्मिक और अंधविश्वासी भी होते हैं।
यहां भी भीरुता की वजह से अंधविश्वास पनपता है। जितनी बड़ी सफलता, उतना बड़ा भय। शुभमुहूर्त पर ही इनकी सफलता का दारोमदार टिका रहता है। अशुभ मुहूर्त में किया गया काम यानी असफलता की गारंटी। हो सकता है कि आप दिवालिया हो जाएं। दीवालिया होने का मतलब आप अब दुनिया के लिए किसी काम के नहीं रहे।
अंधविश्वासी व्यवसायी जमकर व्यापार करते हैं लेकिन इस बात का खास ध्यान रखते हैं कि सभी महत्वपूर्ण मीटिंग 'शुभ समय' पर हों। यदि यह संभव नहीं हो पाता है तो उस अशुभ समय का संतुलन बैठाने के लिए पूजापाठ करवाते है। समय के साथ उनकी यह धारणा बलवती होती जाती है कि उनकी सफलता अंधविश्वासों पर निर्भर करती है। अंधविश्वासों की परिधि से बाहर जाकर काम करने के ख्याल से ही उनकी रूह कांपने लगती है। यदि उन्हें लगता है कि उनकी सफलता कि पीछे किसी बाहरी शक्ति, उसके आशीर्वाद या किसी अन्य ऊर्जा का हाथ है तो उन्हें हर पल यह भय सताता रहता है कि यदि उन्होंने उसका अनादर किया तो वह शक्ति अपना वरदहस्त वापिस खींच लेगी।
आखिर ये लोग ऐसा क्यों करते है? सीधी सी बात है – उन्हें स्वयं पर और अपनी क्षमताओं पर भरोसा नहीं है। उनमें आत्मविश्वास की बेहद कमी होती है और वे यह मानकर बैठे हैं कि उनकी सफलता के पीछे उनके कठिन परिश्रम या कौशल का कोई हाथ नहीं है, यह तो किसी रहस्यमयी शक्ति के चमत्कार का परिणाम है। निश्चय ही वे असुरक्षा की भावना से घिरे रहते हैं क्योंकि उन्हे हर वक़्त यही भय सताता रहता है कि पता नही कब सौभाग्य उनका साथ छोड़कर चला जाए। उन्हें अपनी काबिलियतों पर भरोसा नहीं होता और इसीलिए वे अंधविश्वास की बैसाखियों का सहारा लिए रहते हैं। वह अदृश्य शक्ति उनका साथ छोड़कर न चली जाए इसके लिए दिनरात उसे मनाने का प्रयास करते रहते हैं।
यदि आप इस बात में विश्वास नहीं कर पा रहे हैं कि एक सफल उद्योगपति इतना अंधविश्वासी हो सकता है तो मैं आपको विश्वास दिलाने के लिए एक सटीक उदाहरण देता हूं। मुकेश अंबानी, जो खरबों डॉलर की दौलत के साथ भारत का सबसे अमीर और दुनिया में नौवे नम्बर का सबसे दौलतमंद शख्स है, ने एक अरब डॉलर की लागत से मुम्बई में एक सत्ताईस मंजिला घर बनाया। गृहप्रवेश से पहले उसे लगा कि घर में कोई वास्तुदोष है और परिवार के लिए इसकी ऊर्जा हितकर नहीं रहेगी। इसी बात पर गॄहप्रवेश स्थगित कर दिया गया। महीनों तक उस वास्तुदोष के निवारण के लिए यज्ञ, हवन और अन्य पूजापाठ चलते रहे। अंततः उस दोषमुक्ति के बाद ही उन्होंने अपने नए घर में पैर रखा। तो आपने देखा भारत का सबसे धनवान व्यक्ति, जिसकी बहुत अधिक आलोचना हुई थी इतना बेशकीमती घर बनाने के लिए, ने भी पंडितों, ज्योतिषियों और धर्मगुरुओं का आशीर्वाद लेने के बाद ही गृहप्रवेश किया।