आज मैं आपको एक ऐसी सत्यकथा सुनाने जा रहा हूँ, जिस पर विश्वास करना आपके लिए बड़ा मुश्किल होगा। प्रथमदृष्ट्या यह कहानी आपको अविश्वसनीय लग सकती है मगर भारत में यह घटना वास्तव में घटित हुई है। और हाँ, शायद दुनिया में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां ऐसी मूर्खतापूर्ण बात संभव हो सकती है।
कुछ सप्ताह पहले एक साधु, शोभन सरकार ने अपने आसपास के लोगों को बताया कि उसने एक खजाने का सपना देखा है और वह खजाना कहीं दूर नहीं, वहीं, उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में, एक परित्यक्त किले में ज़मीन के नीचे गड़ा हुआ है। उसने दावा किया कि यह महज सपना नहीं है बल्कि वास्तव में उन्नीसवीं शताब्दी के इस किले में धरती के नीचे 1000 टन सोना-चाँदी गड़ा हुआ है, जिसे निकालने के लिए सिर्फ वहाँ थोड़ी सी खुदाई करने की ज़रूरत है! लेकिन उसमें एक पेंच भी था: अगर खुदाई ठीक से नहीं हुई तो सारा सोना मिट्टी हो जाएगा!
भारत एक ऐसा देश है, जहां लोग किसी भी बात पर विश्वास कर लेते हैं। साधारण लोगों में ही ऐसे विश्वासु नहीं पाए जाते बल्कि कई राजनेता और मंत्री भी इसके शिकार हैं, जो बेसिर-पैर की हास्यास्पद बातों पर भी विश्वास कर लेने की क्षमता रखते हैं! संयोग से इस सपने की खबर एक केंद्रीय मंत्री तक पहुंची और उनकी सहायता से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को यह मानने पर मजबूर होना पड़ा कि यह कहानी सच भी हो सकती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग एक सरकारी उपक्रम है, जिस पर स्मारकों और ऐतिहासिक स्थानों की देखरेख का जिम्मा होता है और जो पुरातात्विक महत्व के स्थानों की खोज और उससे जुड़ी खुदाई आदि के काम करता है। तो, इसी सरकारी संस्था का उपयोग किले में खुदाई के लिए किया गया।
जल्द ही यह खबर सारे मीडिया जगत में छा गई। यह एक चटपटी और सनसनीखेज खबर थी और इसके विरोध में भी कई स्वर उभर रहे थे। एक तथाकथित पहुंचे हुए महात्मा के स्वप्न के आधार पर जनता का इतना रुपया इस खुदाई में बरबाद किया जा रहा था इसलिए मेरे जैसे संदेही लोग भी बड़ी तादात में थे, जो सरकार की इस कार्यवाही का मज़ाक बना रहे थे। कुछ लोग उस काल्पनिक सोने पर अपना दावा भी पेश करने लगे: जैसे उस राजा के कई वारिस निकल आए जो उसे अपनी अपने पूर्वजों की मिल्कियत मानते थे और कम से कम कुछ प्रतिशत हिस्सा प्राप्त करना चाहते थे! इसके अलावा शोभन सरकार के शिष्य भी अपना कमीशन चाहते थे!
खैर, फिर टीवी चैनल्स बड़ी-बड़ी वैन में कैमरे और दूसरे उपकरण लेकर किले में पहुँच गए और वहाँ का विवरण लाइव टेलिकास्ट करना शुरू कर दिया! उनकी बातों का लब्बोलुआब यह था कि अगर यह खजाना मिल जाए तो भारत आर्थिक रूप से दुनिया के अग्रणी मुल्कों में शामिल हो जाएगा क्योंकि वह खजाना दुनिया में आज तक खोजा गया सबसे बड़ा सोने का भंडार होगा! अचानक वह गाँव नींद से जाग उठा था, दूर-दूर से लोग आ रहे थे और जैसे जैसे भीड़ बढ़ती थी, सुरक्षा के इंतज़ाम भी कड़े होते जाते थे! रात-दिन पहरा देने के लिए हजारों की संख्या में पुलिस बल और सुरक्षा कर्मी लगाए गए। गाँव वाले भी मौका देखकर थोड़ा बहुत कमाने के जुगाड़ में लग गए। उन्होंने बाहर से आने वाले लोगों के लिए भोजन की और चाय, समोसों, पकौड़ों की दुकानें खोल लीं। गाँव को जोड़ने वाले रास्तों के किनारे भी कई ऐसी दुकानें नज़र आने लगीं।
इधर पुरातत्व विभाग की खुदाई को कई दिन बीत गए! जब तीन-चार दिन में उन्हें कुछ नहीं मिला तो धीरे-धीरे लोग निराश होने लगे। सबसे पहले अखबारों और टीवी के रिपोर्टर्स बिदा होने लगे और उनके साथ बहुत से दूसरे लोगों ने भी घर का रुख किया, हालांकि साधु अब भी लोगों का उत्साह बढ़ाने में लगे हुए थे। जब छह या सात दिनों बाद कुछ नहीं मिला तो प्रकल्प से जुड़े हुए सरकारी अधिकारी चिंतित होने लगे। उनके लिए मुंह छिपाना मुश्किल हो गया। अब उन्होंने कहना शुरू किया कि किसी व्यक्ति के स्वप्न के आधार पर वे खुदाई नहीं कर रहे थे बल्कि मेटल डिटेक्टर ने धरती के नीचे वास्तव में किसी धातु के होने की सूचना दी थी। एक और व्यक्ति ने ज़ोर देकर कहा कि भले ही उन्हें सोना न मिला हो मगर यदि उन्हें कुछ पुरानी मूर्तियां या पुरातात्विक अवशेष भी मिल जाते हैं तो भी वह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। लेकिन साधारण जनता हतोत्साहित हो रही थी क्योंकि उन्हें मूर्तियों से कोई मतलब नहीं था और कुछ दिन बाद धीरे-धीरे उनकी संख्या कम से कमतर होने लगी। और फिर उनके साथ खाने-पीने की दुकानें भी उठने लगीं। आखिर खुदाई के 12वें या 13वें दिन पुरातत्व विभाग ने अपना प्रोजेक्ट बंद कर दिया। उन्हें खजाना नहीं मिला था।
वाकई अविश्वसनीय! चर्चित होने को लालायित उस बूढ़े साधु के स्वप्न पर न जाने कितना रुपया और समय व्यर्थ बरबाद किया गया। और साधु ने भी अपना निर्णय सुना दिया: खुदाई ठीक से नहीं की गई; अगर आप उसके प्रति गंभीर होते तो आपको खजाना अवश्य मिलता! न जाने कैसे देश में हम रह रहे हैं!?
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