कल मैंने इस बारे में लिखा था कि कैसे आजकल बहुत से लोग काम के दबाव और उसके तनावों के कारण शारीरिक और मानसिक क्षय से पीड़ित होकर टूट जाते हैं और अंततः गहरे अवसाद में डूब जाते हैं। आज मैं संक्षेप में ऐसी क्षरण की स्थितियों से उबरने की प्रक्रिया के बारे में लिखना चाहता हूँ।
अपने व्यक्तिगत परामर्श-सत्रों में और अपने आश्रम में मैं कई क्षयग्रस्त लोगों से मिलता रहा हूँ और मैंने कई मनोचिकित्सकों के साथ भी इस विषय पर काम किया है, इसलिए ऐसी स्थितियों में फंसे व्यक्तियों की मानसिक हालत और उनकी भावनाओं की मुझे काफी हद तक ठीक-ठीक समझ है-और इस बात की भी कि अब उन्हें क्या करना चाहिए, जिससे वे सामान्य जीवन में वापस आ सकें।
कल मैंने यह भी लिखा था कि दरअसल उन्हें ‘वापस उसी अवस्था’ में आने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनकी क्षय से पहले की, तथाकथित सामान्य जीवन-पद्धति, उनका जीने का तरीका, उनकी सोच और व्यवहार ने ही मिलकर उन्हें इस हालत में पहुंचाया था! अब तो उन्हें सब कुछ नए सिरे से और नए तरीके से शुरू करना होगा!
जो शारीरिक और मानसिक रूप से क्षयग्रस्त है उसे सबसे पहले किसी पेशेवर की मदद लेनी होगी क्योंकि वह बीमारी की अंतिम अवस्था में पहुँच चुका है। कई लोगों को चिकित्सालय में कुछ दिन रहना भी पड़ सकता है क्योंकि वे अभी यह भी नहीं समझ पाते कि कैसे जिएँ, क्यों जिएँ?-उनके जीवन का मूल उद्देश्य ही अर्थहीन हो चुका होता है! अक्सर अपने अस्तित्व को वे अपनी नौकरी, अपने पद, अपने काम से पूरी तरह जोड़ चुके होते हैं और उन्हें यह एहसास ही नहीं होता कि अपने आप पर उन्होंने असीमित दबाव डाला हुआ है। इस पतन ने उनके पैरों के नीचे से ज़मीन खींच ली है। उनका शरीर अब जवाब दे गया है और कह रहा है कि इसे अब और चलते रहने नहीं दिया जा सकता, कि वे अब अपनी, खुद की जरूरतों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।
आम तौर पर डॉक्टर ऐसे क्षयग्रस्त लोगों को दवाइयाँ खिलाते हैं-अवसाद-रोधी, नींद की गोलियां और कुछ अन्य दवाइयाँ। शुरुआत में या आपातकाल में ये दवाइयाँ अच्छा असर दिखाती हैं, लेकिन कुछ समय बाद, और यह समय कुछ महीने हो सकता है, उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना सीखना होगा और खुद शारीरिक और मानसिक स्थिरता की तलाश करनी होगी। यही वह समय है, जब वे अपनी भीतरी खोज शुरू कर सकते हैं और इसी हालत में हमारे आश्रम में कुछ दिन विश्राम लेना कई लोगों को लाभ पहुंचा चुका है।
जब आप ऐसी हालत में होते हैं तो सबसे मुख्य बात आपको यह करनी होती है कि आप अपने आपको खोजें। पैसे और सफलता की दौड़ में आपने अपने आपको पूरी तरह खो दिया है, आपको खुद अपना कोई एहसास नहीं होता। आप कौन हैं? अपने जीवन में आप क्या करना चाहते हैं? क्या करके आप प्रसन्न होते हैं? ये और ऐसे ही कुछ और प्रश्न हैं, जिनका जवाब आपको देना होगा। उसके बाद ही कोई क्षयग्रस्त मरीज अपने जीवन के टुकड़ों को बटोरकर पुनः स्थिरचित्त हो सकता है। कई लोग अपनी नौकरी या कार्यक्षेत्र बदलने का निर्णय लेते हैं, क्योंकि जो वे इतने दिन करते रहे थे, अब नहीं कर सकते क्योंकि वैसा करने पर वे अपने शारीरिक दबाव और मानसिक तनाव से उबर नहीं पाएंगे।
लेकिन बाहरी चीजों और वातावरण के बदलाव से ही बात नहीं बनेगी, बहुतेरे आंतरिक प्रतिमानों और विचारों से भी आपको मुक्ति पानी होगी! और शुद्धिकरण की इस प्रक्रिया को कार्यान्वित करने के लिए अपने सामान्य और उबाऊ वातावरण से बाहर निकलकर बिल्कुल नई और अलग जगह पर कुछ दिन बताने से बढ़कर क्या बात होगी! ऐसी परिस्थितियों में हमारे आश्रम आकर आयुर्वेदिक-योग-अवकाश लेने वाले लोगों के साथ हमारा अनुभव बहुत सुखद, प्रेरणास्पद और आशाप्रद रहा है।
उन्होंने हमें बताया है कि रोजाना नियमित आयुर्वेदिक मालिश किस तरह इसमें सहायक रही क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि कोई है, जो पूरे एक घंटे उन पर और उनके शरीर के छोटे-छोटे अंगों पर पूरा ध्यान केन्द्रित किए हुए है। कई सालों से उनका शरीर अपने प्रति उनकी लापरवाही झेल रहा था। वह उनके ध्यान से वंचित था और ठीक यही पाने के लिए वह बेताब था! यह उपचार उन्हें, शारीरिक और मानसिक रूप से विष-मुक्त करने में बहुत सहायक रहा। दैनिक योग-सत्रों में आप शरीर के प्रति अपने प्रेम को पुनर्जीवित करते हैं। खुद से ऊंची से ऊंची अपेक्षाओं के दबाव में, एक नियुक्ति से दूसरी की तरफ भागने-दौड़ने की मजबूरी में आप अपने शरीर के प्रति यह प्रेम-भावना भूल ही चुके थे!
और फिर, और शायद सबसे महत्वपूर्ण भी, आप यहाँ ऐसा वातावरण और परिवेश प्राप्त करते हैं, जहां आप इस खोज को ज़्यादा अच्छी तरह अंजाम दे सकते हैं कि आप कौन हैं और आपके जीवन का उद्देश्य क्या है, आप क्या चाहते हैं? आप अपने आप में मगन रह सकते हैं-स्वतंत्र, बच्चों के साथ, हमारे परिवार और आश्रम के बच्चों के बीच या विश्रांति के लिए आए दूसरे मेहमानों के साथ। आप विश्राम कर सकते हैं या हमारे कामों में हमारे सहभागी हो सकते हैं, आप पढ़-लिख सकते हैं, ध्यान में लीन हो सकते हैं, दिल जो कहे, वह सब कुछ आप करने के लिए स्वतंत्र हैं। और यह बहुत बड़ा मौका है:आप अपने दिल की आवाज़ सुनना शुरू कर सकते हैं। यही तो आपने आज तक नहीं किया था कि अपने दिल की तनावपूर्ण, चीखती आवाज़ को आप कभी सुन लेते और जिसका खामियाजा आप आज भुगत रहे हैं!
मानसिक रूप से पूरी तरह ध्वस्त होने के बाद, धीरे-धीरे, बहुत धीरे-धीरे लोग अपनी पूर्वावस्था में लौट पाते हैं और अधिकतर लोग यही कहते हैं कि यह बाद की अवस्था उनकी पिछली अवस्था से बहुत बेहतर है! मैं कामना करता हूँ कि उन सभी लोगों को, जो ऐसी स्थिति को प्राप्त हुए हैं, यह शक्ति प्राप्त हो कि वे अपने वास्तविक स्वत्व को प्राप्त कर सकें और उनके लिए, जो अब भी पैसे और सफलता की अंधी दौड़ के चलते शारीरिक दबाव और मानसिक तनाव से ही जूझ रहे हैं, यह कि वे यह समझ सकें कि जो वे कर रहे हैं वह उन्हें बड़ी गहरी पीड़ा पहुंचा सकता है।
और जब कभी भी आप अपने परिवेश और वातावरण से दूर कहीं जाना चाहें, हमारे आश्रम के दरवाजे आपके लिए सदा खुले हैं।