कल मैंने बताया था कि कैसे बहुत से भारतीय पुरुष अपने घर की स्त्रियों को तो शालीन व्यवहार की और अपने आपको ढँककर रखने की हिदायत देते हैं लेकिन खुद नेट पर अर्धनग्न महिलाओं की तस्वीरें देखते हैं, उसकी उत्तेजना का मज़ा लेते हैं। वे यह पसंद करते हैं मगर तुरंत ही इस आनंद को लेकर अपराधबोध से ग्रसित हो जाते हैं। खुद अपनी यौनिकता के लिए अपराधबोध-इसे सही तरीका नहीं कहा जा सकता!
मुझे लगता है कि मैं पहले एक बार इस अपराधबोध की अभिव्यक्ति की चरमावस्था के बारे में लिख चुका हूँ: जब लोग सिर्फ और सिर्फ प्रजनन के उद्देश्य से यौन सम्बन्ध स्थापित करते हैं। जी हाँ, ऐसा भी होता है। कुछ हिन्दू समूह और सम्प्रदाय मौजूद हैं, जो इस नियम का सख्ती के साथ पालन करने की कोशिश करते हैं। वे तभी आपसी प्रेम का आनंद लेते हैं, जब वे संतान उत्पन्न करना चाहते हैं। अन्यथा पति-पत्नी अन्तरंग रूप से एक दूसरे को छुए बगैर साथ-साथ रहने के कर्तव्य का पालन भर करते रहते हैं। क्यों? क्योंकि हिन्दू धर्म कहता है कि सिर्फ मज़े के लिए यौन सम्बन्ध स्थापित करना गलत है, यौन आनंद में लिप्त होना पाप है!
जब आप अपने साथी के साथ सेक्स करते हैं तो स्वाभाविक ही, उसका आनंद लेते हैं-उस सुख से बचना मुश्किल है। लेकिन उसका आनंद लेना तो पाप कर्म है इसलिए आप सेक्स करते ही नहीं हैं। और जब सेक्स करना आपकी मजबूरी ही बन जाए, क्योंकि यह बच्चा पैदा करने का एकमात्र तरीका है, तो आप सिर्फ उन दिनों में ही सेक्स करते हैं, जब पत्नी गर्भधारण के योग्य होती है और उसे भी जल्द से जल्द निपटा दिया जाता है, जिससे कम से कम आनंदप्राप्ति सुनिश्चित की जा सके, आप कम से कम पाप के भागी बनें!
आपको बधाई कि आपने धर्म को पाप-पुण्य, अपराध और लज्जा के जंजाल में आपको फाँसने की इजाज़त दे दी!
प्रसंगवश यह कि यह दकियानूसी मान्यताएँ सिर्फ हिन्दू धर्म की बपौती नहीं हैं! इस्लाम में तो सेक्स और शारीरिक सुख के प्रति बहुत विकृत नजरिया है ही मगर ईसाइयत में भी इसी तरह की कहानियाँ मैंने सुनी हैं। बूढ़ी औरतें और दादियाँ घर की युवा लड़कियों को जीवन का बहुमूल्य पाठ इस तरह पढ़ाती हैं: जो स्त्रियाँ अपने अंगों को छूती हैं, पति के बिस्तर पर सोने का आनंद लेती हैं और यहाँ तक कि खुद स्वतःस्फूर्त, अपने प्रयास से चरम सुख का आनंद प्राप्त कर लेती हैं, वेश्याओं के सादृश्य हैं। सेक्स करना हर धर्म में एक गन्दा और शर्मनाक काम है-विशेष रूप से, लड़कियों और महिलाओं के लिए!
मेरे विचार से, महिला और पुरुष दोनों के लिए इसमें किसी शर्म या अपराधबोध की बात ही नहीं है! इसी तरह आप जीवन का सम्पूर्ण सुख उठा सकते हैं! सेक्स कौन पसंद नहीं करता? लेकिन धर्म के प्रभाव में, आप उसे पसंद करने के बाद भी उसके बारे में बुरा ही महसूस करते हैं।
मैं तो सेक्स पसंद करता हूँ-उससे संबन्धित हर बात मुझे प्रिय है!
आशा करता हूँ कि आप भी ऐसा ही महसूस करते होंगे!
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