भारतीय पति या साथी के साथ भारत में बसने आई पश्चिमी महिलाओं के सामने आने वाली समस्याओं और चुनौतियों के बारे में लिखने के बाद आज और शायद अगले कुछ दिनों तक मैं बाज़ी पलटकर उन भारतीय पुरुषों के बारे में लिखूँगा, जो अपनी पश्चिमी पत्नियों या साथी के साथ पश्चिम में बसना चाहते हैं। अपने संबंधों में सामंजस्य पैदा करने के अलावा भी बहुत कुछ बाकी रह जाता है! और एक बहुत बड़ी बात होती है संयुक्त परिवार में सारा जीवन बिताने के बाद अचानक आप अपने आपको ऐसे समाज में पाते हैं, जहाँ वैयक्तिकता का बोलबाला है। पश्चिम में मैं जहाँ भी गया हूँ मैंने इसे सामान्य रूप से हर जगह मौजूद पाया है।
पहली बात- आप यह मानकर चलिए कि आप अपने साथी के माता-पिता या किसी दूसरे परिवार वाले के साथ रहने नहीं जा रहे हैं। अगर आपने इसके बारे में पहले सुन नहीं रखा है तो आपको यह बड़ा अजीब सा लग सकता है लेकिन 18 या 20 साल की उम्र में घर से बाहर निकल पड़ना पश्चिम में सामान्य सी बात है। इसलिए नहीं कि उनके घर में कोई समस्या है या उनकी आपस में पटती नहीं है- बल्कि यही वहाँ का रिवाज है। और जबकि भारत में भी युवक दूसरे शहरों में पढ़ने जाते हैं लेकिन वे सामान्यतया घर वापस लौट आते हैं, जिससे जहाँ तक हो सके, अपने माता-पिता और संयुक्त परिवार के साथ रह सकें।
पश्चिम में बिल्कुल शुरू से ही बच्चों को अपना काम भरसक खुद करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह एक तरह का व्यक्तिवाद है, 'मेरा' 'तुम्हारा' वाली सोच, जो कभी-कभी आपको बड़ा अजीब और औपचारिक लग सकती है। अधिकतर भारतीयों को यह एकाकी लगता है।
एक ऐसे व्यक्ति के रूप में, जो अपने भाई-बहनों, चाचा-चाचियों और दादा-दादी के साथ रहकर बड़ा हुआ है, अचानक एक खाली फ्लैट में पहुँचना बड़ा आश्चर्यजनक अनुभव हो सकता है। न बच्चों की खिलखिलाहटें, न परिवार के सदस्यों की शोरभरी बातचीत, न रसोई में बर्तनों का खड़कना! पूरे घर में ज़्यादा से ज़्यादा आपके एकमात्र साथी का स्वर- वह कितना हो सकता है? खैर, भारत में हर जगह मौजूद शोर की तुलना में पश्चिमी दुनिया के अधिकतर भागों में बेहद कम शोर होता है- लेकिन अपने घर में आप इस कमी को सबसे अधिक महसूस करते हैं। इस तथ्य का, कि घर में बस आप दो प्राणी ही हैं, आपको बहुत जल्दी आदी होना पड़ेगा या फिर तुरत-फुरत एक बच्चे के बारे में निर्णय लेना होगा!
इसके अलावा आपको यह भी समझना होगा कि इसका अर्थ है, पारिवारिक लोग भी आपस में उतने निकट नहीं होते जितने भारत में होते हैं। सामान्यतया वे भारतीयों जैसे जबरदस्त रूप से भावुक नहीं होते! भारत में परंपरागत रूप से पत्नी के घर में दामाद का स्वागत किसी राजकुमार की तरह किया जाता है। अगर आप अपने ससुर के यहाँ ऐसे किसी स्वागत की अपेक्षा कर रहे हैं तो, माफ़ कीजिए, वहाँ आपको बुरी तरह निराश होना पड़ेगा- सिर्फ इसलिए कि वे उतने भावुक नहीं होते कि भारत की तरह अपने रिश्तेदारों की आमद को किसी बड़े त्यौहार की तरह समारोह पूर्वक मनाएँ!
निश्चय ही, परिवार के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम भी होता है और अलग-अलग परिवारों में आपसी निकटता की मात्रा ज़्यादा या कम हो सकती है। कहा जाना चाहिए कि यह संबंधित लोगों के अलग-अलग स्वभावों पर निर्भर करता है।
लेकिन अगर आप अकेलापन महसूस करने लगें तो हमेशा इस बात का स्मरण करें कि आप यहाँ, इस अजनबी मुल्क में क्यों आए हैं- उसके साथ जीवन बिताने के लिए, जिससे आप सबसे अधिक प्यार करते हैं! इसलिए उठिए और अच्छे विचार मन में लाइए और साथी के साथ अपने संबंधों पर मन को एकाग्र कीजिए! या इस बात का आनंद लीजिए कि अब आप एक भिन्न देश और भिन्न सांस्कृतिक वातावरण में जीवन बिता रहे हैं! इस पहलू पर मैं अधिक विस्तार से कल लिखूँगा।
Related posts

कृपया ग्लानि न करें यदि किसी की कल्पना करके आपका खड़ा अथवा गीली हो जाए

Bitte haben Sie kein schlechtes Gewissen, wenn Sie eine Erektion bekommen oder nass werden, weil Sie sich jemanden vorstellen

Please don’t feel guilty if you get erection or wet by imagining someone
Meine Beziehung zu meinem Vater
My relationship with my father
पिता के साथ मेरा सम्बन्ध

Neues Kapitel im Leben, Herausforderungen und Lektionen

New chapter in life, challenges and lessons
