प्रेमसंबंध में सफलता के चार सोपान – 20 मार्च 08
आज हमने स्कूल के नन्हे- मुन्नों के साथ होली खेली। सबके हाथों में पिचकारियां थी और सब बाल्टियों से रंगीन पानी पिचकारियों में भर रहे थे। हम सब के पास रंगीन पानी और अबीर – गुलाल था जो हम एक दूसरे के ऊपर डाल रहे थे। सबने बहुत मस्ती की। एंड्रीया , मेली , सुसी और रमोना तो अभी तक गुलाबी रंग में रंगे हुए हैं। यह रंग इतना पक्का होता है कि जल्दी से उतरता नहीं है। वैसे भी इसे रगड़ – रगड़्कर उतारने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि अभी हम कल और परसों भी एक दूसरे पर रंग डालेंगें।
मैंने पहले भी कहा है कि किसी के प्रेम पड़ना आसान होता है लेकिन उस रिश्ते को परवान चढ़ाना और निभाना बहुत ही मुश्किल। मैं तो कहूंगा कि सभी को प्रेम के वशीभूत होना चाहिए। यह आवश्यक नहीं कि आप किसी पुरुष या स्त्री के साथ ही प्रेम करें। आप किसी सुगंध, किसी रंग या फिर किसी एक खास पल के साथ भी प्रेम में डूब सकते हैं। आप किसी व्यक्ति की वाक् कला की तरफ आकर्षित हो सकते हैं, पड़ोसी का दस्ताना व्यवहार आपको लुभा सकता है। इस बात पर भी मुग्ध हो सकते हैं कि आप स्वस्थ महसूस कर रहे हैं। ये सभी बातें आपके जीवन में सकारात्मकता लाती हैं।
हमारी आदत होती है कि सदैव बुरी बातों की तरफ हमारी दृष्टि जाती है। बेहतर होगा कि अच्छी बातों में ध्यान लगाएं और जीवन का आनंद लें। किसी व्यक्तिविशेष के बारे में बात करते समय यह महत्वपूर्ण होता है कि हम उसकी अच्छाई और बुराई दोनों पर नज़र डालें। दरअसल किसी भी प्रेमसंबंध की चार सीढ़ियां होनी चाहिए : सबसे पहले उस व्यक्ति से आपका परिचय हो, उसके बाद आप उस पर विश्वास करें, तीसरी सीढ़ी है प्रेम होना और आखिर में उसके साथ एक रिश्ता कायम होना । किसी व्यक्ति को जाने बिना आप उस पर विश्वास नहीं कर सकते। और यह विश्वास ही प्रेम का आधार होता है। रिश्ते की इमारत प्रेम की नींव पर खड़ी होनी चाहिए!
अकसर मैंने देखा है कि लोग इससे उल्टा करते हैं : वे पहले एक रिश्ता कायम कर लेते हैं और फिर उसके बाद प्रेम के उत्पन्न होने का इंतज़ार करते हैं या उसे उत्पन्न करने की कोशिश करते हैं। देखा जाए तो ऐसा संबंध आयोजित विवाह (अरेंज्ड मैरिज) से बहुत भिन्न नहीं होता। इस विवाहों में भी स्त्री – पुरुष एक दूसरे से अपरिचित होते हैं और फिर कुछ समय बाद, कई बार तो वर्षों के बाद, सही मायनों में उनके बीच प्रेम प्रस्फुटित होता है। कई बार तो ऐसे विवाहों में प्रेमभावना कभी उत्पन्न ही नहीं होती। जाहिर है कि कहीं कुछ गड़बड़ है । पहले एक दूसरे को जानें , तभी विश्वास पैदा होगा। विश्वास के बाद प्रेम और उसके बाद रिश्ता कायम होना लाजिमी है। इस प्रकार एक ठोस बुनियाद पर खड़ा हुआ आपका रिश्ता चिरस्थाई बना रहेगा।
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