मैंने हाल ही में लिखा था कि अपने आसपास की दुनिया को सकारात्मक रूप से देखना चाहिए लेकिन क्योंकि यह एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है-विशेष रूप से, जब आप इस बात का विचार करते हैं कि बड़ी संख्या में लोग अवसाद और मानसिक तथा शारीरिक थकान से ग्रसित दिखाई देते हैं-मैं आज इसी विषय पर एक बार फिर कुछ विस्तार से लिखना चाहता हूँ। अपने आसपास की विसंगतियों के बीच अच्छाइयाँ तलाश करने के हुनर के बारे में!
यथार्थ को हम सब अलग-अलग नज़रिए से देखते हैं। किसी भी मनोवैज्ञानिक अध्ययन का यह मूल तत्व है: आपका कोई भी अनुभव दूसरे को भी वैसा ही अनुभव के बावजूद ठीक वैसा ही नहीं होता क्योंकि आपकी और उसकी पृष्ठभूमि अलग-अलग होती है। यहाँ तक कि जुड़वाँ बच्चों का ग्रहण-बोध भी भिन्न होता है क्योंकि वे अलग-अलग अनुभवों से गुज़रे होते हैं।
इस मामले में आपके लालन-पालन का तरीका एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आपके अभिभावकों ने आपको किस तरह बड़ा किया, किन मूल्यों को वे ज़्यादा महत्व देते हैं और उन्होंने दुनिया को देखने का कौन सा नजरिया आपको दिया, इत्यादि? इन प्रश्नों के उत्तर, मुख्य रूप से, आपको यह बता देते हैं कि आप किस तरह दुनिया को देखते हैं।
आप पर दूसरा बड़ा प्रभाव होता है, आपकी संस्कृति का। जिस देश में आप रहते हैं, आपके आसपास के लोग जिन मूल्यों और जिन आदर्शों को साधारणतया मानते हैं। ये बातें आपके अभिभावकों द्वारा सिखाई गई बातों से अधिक व्यापक होती हैं और ये बातें आपके नज़रिए को एक ख़ास दिशा में मोड़ देती हैं और आपके यथार्थ को परिवर्तित करती हैं। रमोना और मैं इसे अक्सर देखते हैं और और कई मामलों में इसे घटित होता हुआ पाते हैं! ज़्यादा विस्तार में न जाते हुए अब खबरों को हम अपने-अपने भिन्न नज़रियों के अनुसार ग्रहण करते हैं क्योंकि हम लोग मूलतः इस धरती के भिन्न और सुदूर इलाकों के रहने वाले अलग अलग व्यक्ति हैं! निश्चय ही हर व्यक्ति अपने आप में अलग और विशिष्ट होता है लेकिन संस्कृति आप पर ऐसा गहरा प्रभाव डालती है, जिससे आप आसानी के साथ मुक्त नहीं हो सकते!
अंत में, एक क्षणिक स्थिति में, उस वक़्त जिस खास पल में आप व्यवहार कर रहे हैं, वह भी आपके आसपास होने वाली घटनाओं के बारे में आपके ग्रहण-बोध को प्रभावित करता है। मैं कुछ उदाहरण आपके सामने रखता हूँ: गर्भवती होने की इच्छा रखने वाली या स्वयं कोई गर्भवती महिला अचानक अपने आसपास मौजूद गर्भवती महिलाओं को दूसरों से ज़्यादा नोटिस करने लगती है। वे पहले भी उसके आसपास मौजूद थीं-लेकिन अब वह उन्हें नोटिस करती है क्योंकि वह स्वयं उसी स्थिति से गुज़र रही है और उसका मन उसी बात पर लगा हुआ है!
मान लीजिए अगर आप अपने काम में व्यस्त हैं और अधिकतर काम के बारे में ही सोचते रहते हैं और आपके पास इस बात की फुर्सत नहीं है कि अपने शहर की सुंदरता को देख सकें, उसका आनंद ले सकें या इस बात का आपको पता नही हो पाता कि आपके आसपास के लोग क्या कर रहे हैं। यह सब पहले भी मौजूद था लेकिन जब आपका काम पूरा हो जाता है और आपको उन्हें देखने का अवसर मिलता है तो आपको लगता है, जैसे आप उन्हें पहली बार देख रहे हैं!
जब आप पहले-पहल प्रेम में पड़ते हैं तो सारी दुनिया आपको खूबसूरत, शानदार, आश्चर्यजनक और अत्यंत सुखद नज़र आती है! आपको लगता है, आपके आसपास का हर शख्स सुंदर और भला है और दुनिया में प्रेम के सिवा कुछ भी नहीं है।
लेकिन जब आप मुश्किल में होते हैं तो आपको अपने चारों ओर बुरी चीजें ही दिखाई देती हैं। क्योंकि आप बुरे विचारों से घिरे हुए हैं, आपको कोई चीज़ सुंदर नज़र ही नहीं आती!
मैं इनकी ओर इशारा क्यों कर रहा हूँ? मेरे ख़याल से यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि आपके पास एक और संभावना भी मौजूद है! कि आप दूसरे नज़रिए से भी चीजों को देख सकते हैं! आपको अपने सोचने की दिशा में परिवर्तन करना होगा और आप देखेंगे कि चीज़े तुरंत, उसी समय से ठीक होना शुरू हो गई हैं!
अपने अंदर गहरे जड़ जमाए बैठे मूल-तत्वों को और उन अनुभूतियों को दरकिनार करना वास्तव में बहुत मुश्किल होता है। हालाँकि यह संभव है! लेकिन आपको इसी से शुरुआत करने की ज़रूरत नहीं है-निश्चित ही चीजों को देखने के तरीके को बदलने के काम को आप अपनी वर्तमान परिस्थितियों के मुताबिक़ क्रमशः, धीरे-धीरे शुरू कर सकते हैं! जब आपके विचार नकारात्मक दिशा में गमन करने लगें तो उन पर लगाम लगाने का प्रयास कीजिए और अपने आपको बताइए कि यह सिर्फ इसलिए है कि इस समय आपका ग्रहण-बोध नकारात्मक है! आप भी अलग तरह से सोच सकते हैं! सोचने का एक अलग तरीका निर्मित करने भर की ज़रूरत है!
मुझे लगता है कि यह महत्वपूर्ण है-क्योंकि यह आपको एक पूर्णतया नई सकारात्मकता से भर देगा, आपको शान्ति और सुकून का अनुभव होगा। दरअसल वह आपको अधिक खुशनुमा जीवन की ओर अग्रसर होने में मदद करेगा!
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