आम तौर पर मैं अपने ब्लॉग में राजनीति पर नहीं लिखता। उसके लिए मैं सोशल मीडिया का उपयोग करता हूँ लेकिन क्योंकि भारत में सामाजिक परिस्थितियाँ तेज़ी के साथ बिगड़ती जा रही हैं और अब यह विषय लगातार अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींचा रहा है, अगर आप इजाज़त दें तो आज मैं भी अपना खेद और प्रतिरोध दर्ज कराना चाहूँगा।
हाल ही में भारत में हुई एक घटना दुनिया भर के बड़े समाचार-पत्रों की मुख्य खबर बनी। संभव है, आपने भी इसके विषय में सुना हो। एक गाँव के हिन्दू मंदिर में वहाँ के पुजारी ने भारत की सत्ताधारी पार्टी के एक नेता के बेटे ने उससे जो कहा था, जस की तस उसकी घोषणा कर दी। वास्तव में वह महज एक अफवाह थी कि गाँव के एक मुस्लिम परिवार ने गाय का मांस खाया है। यह सुनते ही भीड़ जुट गई और उसने उस परिवार के घर की दिशा में कूच कर दिया, परिवार के पिता और उसके बेटे को घर से बाहर निकालकर उस पर ईटों से हमला किया। हमला इतना जोरदार था कि पिता की मृत्यु हो गई और बेटे को घायल अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जो इस बुरी तरह से घायल हुआ है कि उसकी जान जा सकती है। फिलहाल वह मौत से संघर्ष कर रहा है। जाँच से पता चला है कि उन्होंने गाय का मांस नहीं बल्कि बकरे का मांस खाया था-लेकिन इससे बच्चों का पिता और उनकी माँ का पति वापस नहीं आ सकते!
यह घटना स्वयं में बेहद घृणास्पद थी और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने ठीक ही उसे अपने पृष्ठों में प्रमुखता से जगह दी लेकिन उससे भी भयावह सत्ताधारी पार्टी के दूसरे सदस्यों की प्रतिक्रिया रही! अफवाह फैलाने वाले बीजेपी के नेता के बेटे तथा कुछ और लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। लेकिन उनकी पार्टी के नेता उस लड़के के व्यवहार को नज़रअंदाज़ करते हुए तरह-तरह के बहाने बना रहे हैं। उनका कहना है कि वे सब भोले-भाले बच्चे हैं, और उत्साह में यह सब कर बैठे हैं! वे हत्या के आरोप में हुई उनकी गिरफ़्तारी का विरोध कर रहे हैं!
लेकिन साथ ही वे उनके इस कृत्य पर खुले आम यह कहकर मुहर भी लगा रहे हैं कि जो भी गाय का मांस खाए, उसे यही सज़ा मिलनी चाहिए! हमारे देश की सत्ताधारी पार्टी के एक लोकसभा सदस्य ने कहा कि गाय हमारी माँ है और अगर आपने हमारी माँ की हत्या की है तो आपकी हत्या भी जायज़ है! ये लोग सिर्फ गाय का मांस खाने पर किसी की भी हत्या करने पर उतारू हैं!
निश्चित ही ये सभी राजनैतिक नेता पाखंडी हैं! देश के सबसे महंगे रेस्तराँ गाय का मांस बेचते हैं, देश के कई प्रांतों में, वहाँ की स्थानीय जनता के लिए गाय का मांस एक सामान्य भोजन है। इन सब तथ्यों से उन्हें कोई परेशानी नहीं है! लेकिन वे सामान्य, धार्मिक हिंदुओं की गाय के प्रति अत्यंत संवेदनशील भावनाओं का उपयोग जानबूझकर हिंसा फैलाने में कर रहे हैं, जिससे देश की जनता का ध्रुवीकरण हो जाए, वे दो गुटों में विभक्त हो जाएँ और इन नेताओं को अधिक से अधिक वोट मिल सकें!
जी हाँ, यह एक बहुत बड़ी साजिश है। एक और बीजेपी नेता ने प्रांतीय चुनावों से पहले कहा था, ‘अगर दंगे होते हैं तो हम चुनाव जीत जाएँगे’ और अतीत में यह बात सत्य सिद्ध हो चुकी है! राजनैतिक नेता विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच, विशेष रूप से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच, हिंसक प्रतिक्रिया को प्रोत्साहित करते हैं और इस तरह उन्हें अलग-अलग गुटों में विभक्त कर देते हैं और इस तरह देश के टुकड़े-टुकड़े कर देना चाहते हैं। इन दंगों में, निश्चित ही बहुत से लोग मारे जाएँगे। और अंत में उन्हें अधिकांश हिन्दू वोट प्राप्त होंगे और बहुमत मिल जाएगा। जो लोग अभी कुछ साल पहले तक दंगों के आरोपी थे, आज संसद और विधानसभाओं में बैठे हैं! धर्म और जाति के आधार पर वोट प्राप्त करने और चुनाव जीतने की यह बड़ी आसान सी रणनीति है!
जो थोड़ी बहुत कसर रह गई थी, वह प्रधानमंत्री की चुप्पी ने पूरी कर दी है। उनकी पार्टी विकास का मुद्दा जनता के सामने रखती है लेकिन वह एक प्रहसन से अधिक कुछ भी नहीं है-विकास सिर्फ अमीरों का हो रहा है और वे दिन-ब-दिन और अमीर होते जा रहे हैं जब कि सामान्य गरीब जनता की आर्थिक स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ा है! अगर वे धार्मिक हिन्दू नहीं हैं तो उनकी हालत खराब ही हुई है, बल्कि वे संकट में हैं। दुर्भाग्य से दक्षिणपंथी पार्टी की सरकार होने के कारण अतिवादी और अतिराष्ट्रवादी हिन्दू सत्ता में आ गए हैं और न सिर्फ बहुत शक्तिशाली हो गए हैं बल्कि उन्हें इसके लिए पूरा राजनैतिक समर्थन भी मिलता है कि उन लोगों के विरुद्ध हिंसा भड़का सकें, जिनकी आस्थाएँ अलग हैं और जो उनके अनुसार नहीं सोचते।
इसी कारण जाने-माने तर्कवादियों, नास्तिक लेखकों की हत्या की जा चुकी है और धार्मिक चरमपंथियों ने बाकायदा एक सूची बना रखी है, जिसके अनुसार वे एक के बाद एक बुद्धिजीवियों, तर्कवादियों, धर्मविरोधियों या नास्तिकों को निशाना बनाने का विचार रखते हैं।
इस समय हमारा देश अत्यंत नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है और इसीलिए मैं आज यह ब्लॉग लिख रहा हूँ कि इस बहुत संवेदनशील समय की एक झलक आपको दे सकूँ। कल मैंने आपको बताया था कि कैसे एक छोटा सा प्रयास भी मददगार साबित हो सकता है और बहुत से प्रख्यात लेखकों का भी यही विचार है। उन्होंने इसके इस आतंकवाद के प्रतिरोध में सरकार को अपने पुरस्कार वापस कर दिए हैं। हमें यह साबित करना होगा कि हम ऐसा भारत नहीं चाहते। यह एक खुला, सांस्कृतिक विविधतापूर्ण, सबको साथ लेकर चलने वाला और सबके विचारों का सम्मान करने वाला भारत नहीं है, जिसका दावा करते हम नहीं थकते!