आज मैं एक विज्ञापन के बारे में संक्षेप में लिखना चाहता हूँ, जिसने मुझे एक बार फिर यह बताया कि बच्चों के प्रति लोगों का रवैया कितना विकृत है। कई बार लगता है जैसे उनके बच्चे उन पर बोझ हों!
दरअसल ये विचार मेरे दिमाग में तब आए जब मेरी पत्नी ने मुझे एक विज्ञापन दिखाया। उसने अपने फेसबुक न्यूज़फीड पर यह विज्ञापन कई बार देखा था लेकिन उसका शीर्षक ही उसे पसंद नहीं आया था लिहाजा बहुत दिनों तक उसने उस पर क्लिक नहीं किया था। शीर्षक था: कभी सोचा- “अपने बच्चे द्वारा टीवी के सामने बिताए जा रहे समय को कैसे कम किया जाए?” क्योंकि अपरा टीवी नहीं देखती और यू ट्यूब पर वही वीडियो देखती है जिन्हें हम उसके लिए चुनकर दिखाते हैं, इसलिए हमारे लिए उस विज्ञापन का कोई खास महत्व नहीं था। लेकिन एक दिन यूँ ही उत्सुकतावश उसने उस प्रचार-वीडियो को देखा।
अपने आप में विचार अच्छा था: एक कंपनी है, जो हर माह कुछ शिल्प कला के उपकरण, पेंट और कुछ किताबों से भरा डिब्बा आपके घर भेजती है। एक अनोखा व्यावसायिक विचार, जो बच्चों के साथ उनके अभिभावकों को भी कुछ रचनात्मक करने की प्रेरणा दे सकता है। यह उत्पाद मेरी नज़र में कतई बुरा नहीं था। लेकिन समस्या थी तो उसके विज्ञापन के साथ!
वह एक कार्टून वीडियो था और उसमें एक माँ और पिता टीवी पर टकटकी लगाए अपने बच्चे की ओर परेशान से देख रहे हैं और नीचे लिखा है- ‘आप हमेशा से चाहते थे कि आपका बच्चा टीवी से दूर हो जाए…..’ और जब माँ कहती है- ‘तुम उसे टीवी के सामने से हटाओ और उसके साथ खेलो?’ तो पिता बहाना करके भागने की कोशिश करता है- ‘मैं व्यस्त हूँ, उसके साथ खेलने का मेरे पास समय नहीं है!’ और माँ परेशान सी गंभीर सोच में डूबी हुई कहती है- ‘व्यस्त तो मैं भी हूँ।’ उसके बाद कुछ वैज्ञानिक आंकड़े देते हुए प्रमाणित किया गया है कि टीवी देखना बच्चों के लिए क्यों बुरा है और अंत में इस समस्या का समाधान है: वही डिब्बा- और फिर आप देखते हैं कि पिता खर्राटे लेता हुआ सो रहा है और संतुष्ट माँ आनंद विभोर सी खेल में व्यस्त बच्चे को देख रही है।
तो उनकी समस्या यह नहीं है कि बच्चे टीवी देख रहे हैं बल्कि यह है कि माता-पिता अपने लिए समय कैसे निकालें! वे जानते हैं कि टीवी बच्चे के लिए ठीक नहीं है पर हाय, उनके पास बच्चे के साथ खेलने का समय नहीं है! और यह रहा समस्या के इलाज का अचूक नुस्खा: खिलौनों से भरा यह डिब्बा खरीदिए, जो बच्चे को व्यस्त रखेगा और फिर आपके पास समय ही समय है!
जी नहीं, परवरिश का यह तरीका ठीक नहीं है! अगर आपका कोई बच्चा है तो उसके प्रति आपकी कुछ ज़िम्मेदारी भी है! यह आप अच्छी तरह जानते हैं-अन्यथा यह पढ़कर या वीडियो क्लिप देखकर आप परेशानी महसूस नहीं करते कि 3 से 7 साल तक की उम्र बच्चे के मानसिक विकास के लिए निर्णायक होती है, कि मस्तिष्क का 80% विकास 5 साल की उम्र तक हो जाता है-और वह उसके सक्रिय व्यवहार से ही संभव होता है, कि जो बच्चे बहुत ज़्यादा टीवी देखते हैं, उनमें मोटापे की संभावना अधिक होती है! यह सब आप अच्छी तरह जानते हैं और आपको बुरा लगता है जब आप अपने बच्चे के दैनिक क्रियाकलापों पर गौर करते हैं, उसकी दिनचर्या पर नज़र दौड़ाते हैं। इसलिए अपने आप में बदलाव लाएँ!
मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि आपको भी अपने काम के लिए या सोचने-विचारने के लिए समय नहीं मिलना चाहिए! यह नहीं कह रहा हूँ कि दिन का हर पल आप अपने बच्चे के साथ ही बिताएँ! लेकिन अगर आप हर माह वह वह शिल्प सिखाने वाला डिब्बा खरीदने का मन बना चुके हैं तो कृपा करके कुछ समय निकालिए, बच्चे के साथ बैठिए और उन उपकरणों का बच्चे के साथ मिलकर इस्तेमाल कीजिए। उसके ज़रिए न सिर्फ उसके समय का सदुपयोग हो सके या उसके मस्तिष्क का बेहतर विकास हो सके बल्कि वह आपके परस्पर सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने का जरिया भी बने! अगर उसके साथ कोई प्यार करने वाला व्यक्ति हो, कोई अपना व्यक्ति सशरीर मौजूद हो तो आपका बच्चा बहुत कुछ अतिरिक्त भी सीख सकता है!
यह दुख की बात है कि ऐसे विज्ञापन तैयार किए जा रहे हैं और यह भी कि वास्तव में वे लोगों के घरों तक भी पहुँच रहे हैं! मैं जानता हूँ कि आप अपने बच्चों से प्रेम करते हैं-तो फिर आलसी मत बनिए-उठिए और उनके साथ खेलिए! यह मत कहिए कि आप बहुत व्यस्त रहते हैं और बच्चे के साथ खेलने का नंबर बाद में कभी आएगा-उसके सबसे सुनहरे वर्ष इतनी तेज़ी के साथ बीत जाएँगे कि आपको पता भी नहीं चलेगा!