आभार यूरोप! शरणार्थियों की मदद करने का बहुत बहुत शुक्रिया – 1 सितंबर 2015

कल से मैंने इस विषय पर लिखना शुरू किया था, जो बहुत महत्वपूर्ण भी है और मेरे मन को विचलित करने वाला भी: यूरोप में शरणार्थियों की हालत खराब है। तकलीफदेह लंबी यात्रा में वे भयानक अनुभवों से गुज़रते हुए यहाँ तक पहुँचे हैं और पहुँचने के बाद और नई जगह अस्थाई आवास हेतु पंजीकरण करा लेने के बाद भी कई बार उन्हें बेहद खराब परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है और स्थानीय लोगों की घृणा और उनके क्रोध का सामना करना पड़ा है। लेकिन इस दुखद कहानी का एक दूसरा पक्ष भी है: हज़ारों, लाखों लोग सहायता के लिए भी आगे आए हैं! मैं तहेदिल से उन सभी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ और साथ ही अपने सभी यूरोपीय साथियों और पाठकों से गुज़ारिश करना चाहता हूँ कि उन बेघरबार लोगों की मदद का अपना काम जारी रखें और यदि यह काम आपने शुरू न किया हो तो तुरंत आगे बढ़कर इस महती कार्य में हाथ बँटाएँ!

स्वाभाविक ही घृणा करने वाले, जातिवादी और नव-नाज़ीवादी और दक्षिणपंथी भी बहुत से लोग होंगे। हम समाचारों में उनके चेहरे देख सकते हैं। लेकिन कम से कम जर्मन समाचारों में हम उससे भी अधिक स्पष्टता के साथ, ज़्यादातर, और ज़्यादा संख्या में उन लोगों को देख सकते हैं जो उनके विपरीत विचार रखते हैं:वे शरणार्थियों का स्वागत करते हैं और निःस्वार्थ भाव से उनकी हर संभव मदद करते हैं। और ऐसे लोग सिर्फ जर्मनी में ही नहीं हैं, अपने मन में करुणा और प्रेम लिए ऐसे शानदार लोग सारे यूरोप में मौजूद नज़र आते हैं!

ऐसे लोग भी हैं जो रेलवे स्टेशनों पर शरणार्थियों के स्वागत के लिए खड़े रहते हैं। जब थके-हारे युवा, लुटे-पिटे वृद्ध और सताई हुई महिलाएँ बसों में लदे-फँदे उनके शहर पहुँचते हैं तो वे फूलों और 'वेलकम' के साइन बोर्ड उठाकर उनकी ओर लहराते हैं कि निराश होने की ज़रूरत नहीं है और न ही भयभीत होने की – हम लोग यहाँ आपको सहारा देने, आपकी मदद के लिए हाजिर हैं।

यूरोप के शहरों में, कस्बों, देहातों में अनगिनत स्वयंसेवक आगे आए हैं, जो अपना बहुमूल्य समय, अपना श्रम और पैसा चैरिटी संगठनों को खुले हाथों अर्पित कर रहे हैं। वे शरणार्थियों को भोजन, कपडे-लत्ते, बच्चों को खिलौने इत्यादि वितरित कर रहे हैं, अस्थाई आवासों की सुचारू व्यवस्था में लगे हुए हैं।

कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मदद करना चाहते हैं मगर समय नहीं निकाल पाते; लेकिन वे भी किसी न किसी तरह शरणार्थियों के लिए पुराने कपड़े, आवश्यक वस्तुएँ और उनके पास उपलब्ध हर वह अतिरिक्त वस्तु, जो शरणार्थियों के किसी काम आ सकती हैं, भेजने की व्यवस्था कर रहे हैं।

कुछ परिवारों ने और दंपतियों और अकेले रहने वालों ने शरणार्थियों को अपने घरों में रहने की जगह दी है, बिलकुल मुफ्त और एक तरह से प्रस्ताव रखा है कि जल्द से जल्द वे अपने गम भुलाकर इस नए समाज में घुल-मिल जाएँ।

कुछ स्वयंसेवियों ने अपने देश की भाषाएँ सिखाने की कक्षाएँ शुरू की हैं, जिससे उन्हें भविष्य में वहाँ रहने में कोई दिक्कत न हो। वहाँ वे नए देश में आवश्यक व्यावहारिक कौशल सिखाने की व्यवस्था कर रहे हैं, वे मरीज शरणार्थियों को डॉक्टरों के पास ले जाते हैं या उन कार्यालयों में, जहाँ से शरणार्थियों को अस्थाई निवास संबंधी विभिन्न दस्तावेज़ प्राप्त करने हैं।

और ऐसे भी बहुत से शानदार लोग हैं, जो शरणार्थियों के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं-उनके स्वागत में सभाएँ आयोजित की जा रही हैं, परिचय-समारोह हो रहे हैं, जिससे वे विभिन्न संगठनों के स्वयंसेवियों से मिल-जुल सकें, भविष्य में किसी सहायता के लिए उनसे संपर्क कर सकें। बच्चों को खेल के मैदानों में खेलने की सुविधा मुहैया कराई जा रही है, बगीचों और झीलों की सैर कराई जा रही है। इसी तरह के बहुत से मेल-जोल के कार्यक्रमों के ज़रिए शरणार्थियों के ज़ख़्मों पर मरहम रखने का भरसक प्रयास किया जा रहा है।

आप देख रहे होंगे कि शरणार्थियों के कल्याण के लिए बहुत सारे काम किए जा रहे हैं। उन छोटे-छोटे मगर महत्वपूर्ण कामों की लंबी सूची बनाई जा सकती है, जिन्हें ये शानदार लोग अंजाम दे रहे हैं। यह देखकर वास्तव में आश्चर्य होता है।

हालांकि मैं कभी भी शरणार्थी नहीं रहा, कभी ऐसी आपातकालीन स्थिति नहीं झेली, कभी इस तरह संकट में नहीं पड़ा लेकिन जर्मनी और यूरोप को मैंने नजदीक से देखा है और पाया है कि वहाँ के लोग दोस्ताना गर्मजोशी और खुले दिल से मेहमानों का स्वागत करते हैं। यह देखकर संतोष और खुशी से मन भर आता है। इससे मेरी इस आस्था को बल मिलता है कि दुनिया में घृणा का जहर फैलाने वालों की तुलना में करुणा और प्यार बाँटने वालों की संख्या कई गुना अधिक है।

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