डबलिन में होने वाले जिस भव्य कार्यक्रम की योजना हम पिछले छह माह से बना रहे थे वह आखिर सन 2005 की गर्मियों में हम कर पाए। मेरे आयरिश मेजबान उसमें विशाल संख्या में लोगों के शामिल होने की अपेक्षा कर रहे थे इसलिए बड़े पैमाने पर तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू कर दी गई थीं। कार्यक्रम के लिए संगीतज्ञों को लेकर आना मेरे ज़िम्मे था और मैंने संगीतज्ञों के अलावा कुछ योग शिक्षकों को भी अपनी सहायता के लिए शामिल कर लिया था। योग संबंधी एक कार्यक्रम भी पूरे आयोजन का हिस्सा था। लेकिन मुझे इसमें बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
मैं संगीतज्ञों के समूह को पहले से ही जानता था क्योंकि वे मेरे साथ भारत में भी मेरे कार्यक्रमों के दौरान साथ रहते और सफर किया करते थे। यही लोग थे जिन्हें मैं आयरलैंड में भी आमंत्रित करना चाहता था। वे छह या सात संगीतज्ञों का समूह थे और उनमें बाँसुरी-वादक, सितार-वादक, तबला-वादक सारंगी-वादक, जो एक वायलिन जैसा भारतीय वाद्य बजाते थे, के अलावा कुछ सहवाद्य बजाने वाले भी थे। इन सबके अलावा एक गायक भी थे।
कहना न होगा कि इन सब को आयरलैंड आने के लिए वीजा की आवश्यकता थी और मैंने आयोजकों को इसकी जानकारी दे दी थी। मैंने पूछताछ की और उन्हें बताया कि ठीक किन-किन दस्तावेज़ों की ज़रूरत होगी। सारे कागजात तैयार किए गए और उन्हें भारत भेजा गया। फिर मैंने अपने संगीतज्ञों को बताया कि उन्हें क्या कार्यवाही करनी है और उन्होंने आवेदन प्रस्तुत करने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
कार्यक्रम का दिन नजदीक आ रहा था और कार्यक्रम वाले दिन को अब सिर्फ एक हफ्ता रह गया था। तब भारत से एक फोन आया जिसे सुनकर हम स्तब्ध रह गए:दूतावास ने उन सबके वीजा आवेदन रद्द कर दिये थे। संगीतज्ञ आयरलैंड की यात्रा नहीं कर सकते थे। अब मैं क्या करूँ, यह प्रश्न उपस्थित हो गया था।
यही राहत थी कि उन सबकी टिकटें मैंने नहीं खरीदी थीं। जीवन यही है, कई बार चीज़ें आपकी योजनाओं के अनुसार नहीं होतीं और आपको वैकल्पिक इंतज़ाम करने पड़ते हैं। यही मैंने किया। कुछ देर यह सोचने के बाद कि क्या करना चाहिए, मैंने तय किया कि संगीतज्ञों की ज़रूरत तो हर हाल में होगी क्योंकि वह बहुत बड़ा आयोजन था जिसमें सारा दिन कार्यशालाएँ चलनी थीं। हर व्याख्यान के बाद सहभागियों को थोड़े अवकाश की आवश्यकता होगी और फिर संगीत वैसे भी पूरे कार्यक्रम को हल्का-फुल्का बनाने में मदद कर सकता था।इसके अलावा ध्यान-योग की कार्यशाला में भी लोगों की विश्रांति के लिए वह आवश्यक था। विकल्प के रूप में एक गायक मुझे इंग्लैंड में ही मिल गईं जिनसे मैं लगभग छह माह पहले ही, लंदन में कदम रखते ही थोड़े समय के लिए मिला था। वैसे भी वे आने वाली थीं मगर अब हमारे पास संगीतज्ञ के नाम पर एक मात्र गायक उपलब्ध था। तो अब मुझे किसी तरह वाद्य बजा सकने वाले, और संभव हो तो भारतीय वाद्य बजाने वाले संगीतज्ञों की खोज करनी थी। फिर उनके पास वक़्त भी होना चाहिए था और अगले हफ्ते आयरलैंड आने की आवश्यक अनुमति भी।
मैंने कुछ मित्रों को फोन करना शुरू किया। एम्स्टर्डम के एक डच तबला-वादक, जो पहले भी मेरे एक कार्यक्रम में बजा चुके थे, आने के लिए तुरंत तैयार हो गए। वे बहुत खुश हुए कि उन्हें बजाने का मौका मिलेगा और उन्होंने कुछ अन्य वाद्य बजाने वाले मित्रों के सहयोग का आश्वासन भी दिया। कुछ देर बाद ही उनका फोन आया कि उसके एक जर्मन मित्र बाँसुरी बजाते हैं और आने के लिए तैयार हैं! इस तरह हमारे पास गाने-बजाने वालों का एक छोटा सा ही मगर पर्याप्त समूह उपलब्ध हो गया। काश, मुझे एक तार-वाद्य बजाने वाला भी मिल सकता, मैं सोच रहा था!
मैं आयरलैंड पहुँच गया और वहाँ भी लोगों के कानों में यह बात डाल दी कि मुझे अभी एक और संगीतज्ञ की आवश्यकता है। आखिर जब तकनीकी लोगों का दल मुझसे मिलने आया और उनमें से एक ने बताया कि उसके एक मित्र सितार बजाते हैं तो मैं समझ गया कि मेरा काम हो गया!
कार्यक्रम बेहद रोमांचक रहा और वहाँ के अखबारों ने उसे पर्याप्त जगह दी। इसके अलावा उन्होंने हमारे संगीतज्ञों को हुई वीजा समस्या को भी अपने अखबार के जरिये उठाया। उन्होंने कुछ मज़ाकिया टिप्पणियाँ भी कीं मगर मैं प्रसन्न था-मेरे पास एक शानदार संगीत समूह था और उन्होंने शानदार कार्यक्रम प्रस्तुत किया था!