पिछले हफ्ते आपने पढ़ा कि कैसे मैंने अपनी आस्ट्रेलियन आयोजक का साथ छोडने का निर्णय लिया था क्योंकि वह मेरे काम को भी अपने काम की तरह विज्ञापित कर रही थी, जिसमें ‘तंत्र’ लेबल के अलावा पश्चिम में ‘तंत्र’ शब्द के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ी यौन संबंधी बातें भी संयुक्त थीं। मैंने उसके साथ काम न करने का निर्णय तो कर लिया लेकिन इस बात ने मुझे भावनात्मक रूप से परेशान कर दिया। उस देश में, जहां मैं सिर्फ दूसरी बार आया हूँ और जहां मैं किसी को ठीक तरह से जानता भी नहीं, आखिर मैं कहाँ जाऊंगा?
उस शाम उसे किसी ग्राहक से बात करते हुए सुनकर मैं बहुत परेशान हो गया। मैंने रात को में भारत फोन लगाया कि अपने परिवार से पूरी स्थिति के बारे में चर्चा कर सकूँ। मुझे याद है कि अपनी हालत के बारे में सोचकर मैं रो पड़ा और अपने छोटे भाई से कहा कि मैं किसी भी हालत में जल्द से जल्द यहाँ से निकलना चाहता हूँ। मैं यहाँ काम नहीं कर सकता, यह मेरे लिए ठीक जगह नहीं हैं, मेरे आयोजक ठीक लोग नहीं हैं और ग्राहक ऐसे हैं जिनकी अपेक्षाएँ मैं किसी भी हालत में पूरी नहीं कर पाऊँगा!!
परिवार से बात करके मुझे कुछ अच्छा लगा और मेरे छोटे भाइयों ने मुझे कुछ विवेकपूर्ण सलाह भी दी: मेरे पास पहले ही गोल्ड कोस्ट के लिए विमान में आरक्षण था, जहां एक हफ्ते के भीतर मुझे अपना अगला कार्यक्रम प्रस्तुत करना था। मतलब, अगर मैं इस महिला के तंत्र-केंद्र को छोड़ भी दूँ तो भी मुझे अगले चार दिन यहीं बिताने थे। अगर मैं वहाँ किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं भी जानता था कि उसके यहाँ रह सकूँ तो इतने समय के लिए मैं किसी होटल में रह सकता था और यूं ही समय व्यतीत कर सकता था।
पिछली यात्रा के दौरान परिचित मेरा कोई मित्र उस इलाके में नहीं रहता था क्योंकि पिछली बार मैंने बिल्कुल अलग इलाके में अपने कार्यक्रम किए थे लेकिन एक महिला थी, जिससे मेरा नेट पर संदेशों के आदान-प्रदान भर का परिचय था और जो करीब ही कहीं रहती थी। तो मैंने उस महिला को, जिससे मेरा कुछ ईमेल संदेश का भर परिचय था, फोन लगाया और उससे कहा कि इस परेशानी में मेरी कुछ मदद करे। मैंने पूरा प्रकरण उसे नहीं बताया, सिर्फ इतना कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है और यह जगह छोडना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है और यह भी कि क्या वह यहाँ आकर मुझे ले जा सकती है जिससे मैं कुछ दिन उसके यहाँ व्यतीत कर सकूँ?
आप मेरी खुशी की कल्पना कर सकते हैं, जब उसने कहा, "जी हाँ, बिल्कुल! परेशान न हों, मैं डेढ़ घंटे की दूरी पर हूँ और कल मैं आऊँगी और आपको ले चलूँगी! मेरा घर छोटा सा है और मेरे दो बच्चे हैं लेकिन आप जब तक चाहें मेरे यहाँ रुक सकते हैं!" मैंने उसे दिल की गहराइयों से धन्यवाद कहा और बताया कि मुझे सिर्फ चार दिन ही रहना है।
यह इंतज़ाम करके मैं एक बार फिर कमरे से बाहर निकला तो देखा कि मेरी आयोजक अभी जग रही है। मैंने उसे बताया कि मैं आयोजित कार्यशाला और सत्र नहीं कर पाऊँगा और कल ही वहाँ से चला जाऊंगा।
मैंने उसे शांतिपूर्वक समझाने की कोशिश की कि हमारे आचार-विचार मेल नहीं खाते। मैं नहीं चाहता कि वह पूरे आस्ट्रेलिया के लिए मेरी आयोजक बने और उसके काम करने के तरीके से मैं कोई सामंजस्य नहीं बिठा पाऊँगा। इसके अलावा मैं ‘तांत्रिक’ कार्यशाला और व्यक्तिगत सत्र के साथ कोई भी संबंध नहीं रखना चाहता और इस तरह का काम करना मेरे लिए संभव नहीं है।
दूसरे दिन मेरी वह ईमेल फ्रेंड आई और मैंने अपनी आयोजक से गुड-बाई कहा और जाकर कार में बैठ गया। किसी जगह को छोड़ते हुए इतना अच्छा मुझे कभी नहीं लगा था! रास्ते में मैंने पूरी आपबीती उस महिला मित्र को सुनाई और बताया कि क्यों मुझे इतनी हड़बड़ी में उसकी मदद की ज़रूरत पड़ी।
जी हाँ, मैं इस भूतपूर्व पोल-डांसर को, जो चोला बदलकर ‘तांत्रिक योगी’ बन गई थी, जीवन में कभी भूल नहीं पाऊँगा। मैंने यह सीख पाई कि अपने आयोजकों का चुनाव करने से पहले मुझे उनके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करनी चाहिए और कुछ अधिक सतर्क रहना चाहिए। उम्मीद है, भविष्य में ऐसी अप्रिय स्थितियों से मैं अपने आपको दूर रख सकूँगा!
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