भारत में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस – चीन से चटाइयां और योग के शक्तिशाली व्यापारियों को धनलाभ – 21 जून 2015

आज फिर इतवार है: 21 जून, जिसे इस साल पहली बार ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में भी मनाया जा रहा है। यह मेरी आँखों से कैसे ओझल हो सकता था- क्योंकि भारत में आज के कार्यक्रम और समारोह कई दिनों से टीवी समाचारों के केंद्र में थे और उसे स्वास्थ्य जागरूकता के प्रसार के स्थान पर मीडिया का बहुत बड़ा तमाशा, दिखावे का पाखंडी समारोह और सरकारी प्रचार तंत्र में बदल दिया गया। क्यों और कैसे? अभी बताता हूँ।

भारत सरकार ने आज के दिन को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ घोषित करवाने के प्रयास किए थे और बहुत से दूसरे देशों की सहमति प्राप्त हो जाने के बाद आखिर संयुक्त राष्ट्र संघ ने सूचना जारी कर दी कि भविष्य में 21 जून का दिन इसी नाम से जाना जाएगा। विश्व के किसी भी भाग में अगर आप किसी सामान्य व्यक्ति से भी पूछें कि योग की शुरुआत कहाँ हुई तो वह भारत का ही नाम लेगा क्योंकि यह बात सभी जानते हैं। और योग के लाभों को कौन नकारेगा? मैं तो निश्चित ही नहीं, लेकिन भारत सरकार द्वारा मनाए जा रहे समारोह में पर्दे के पीछे कुछ ऐसी बातें चल रही हैं जो दर्शाती हैं कि इस धूमधाम का मकसद सिर्फ योग-भावना का उत्साह नहीं है, कुछ और भी है।

इस आयोजन और उसके प्रचार पर आज के दिन के लिए भारत सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। स्वाभाविक ही, सबसे बड़ा आयोजन दिल्ली में हुआ, जहाँ राजपथ पर-जहाँ अक्सर औपचारिक सरकारी कार्यक्रम होते रहते हैं- प्रधान मंत्री, नरेंद्र मोदी ने आज प्रातः 35000 लोगों के साथ योग किया। इस आँकड़े पर गौर कीजिए-गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में भारत का नाम दर्ज कराने के लिए इतना बड़ा तमाशा किया गया था, जैसे दुनिया को भारत की देन यही है!

सरकार ने भारत भर में 651 केंद्र शुरू किए, जहाँ एक साथ, एक ही समय में योग समारोह आयोजित किए गए। एक घंटे का यह योग समारोह सफलता पूर्वक सम्पन्न हो सके, इसके लिए हर केंद्र को 1 लाख रुपए अर्थात् 1500 यू एस डॉलर प्राप्त हुए। इसे बड़े पैमाने पर किया गया एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है लेकिन तब तक ही जब तक आपको पता नहीं चलता कि इन 651 में से 191 केंद्रों को चलाने का ठेका रामदेव को और 69 का श्री श्री रविशंकर को दिया गया है, जो, दोनों ही, दूर दूर तक योगी नहीं हैं बल्कि योग के बड़े व्यापारी हैं और उनका करोड़ों डॉलर का विस्तृत व्यवसाय है!

पिछले चुनावों में सत्ताधारी पार्टी को जिताने के लिए रामदेव ने बहुत काम किया था। स्पष्ट ही, इसे उसकी सेवाओं का मेहनताना कहा जाना चाहिए। उसके इसी काम की वे कीमत चुका रहे हैं-और यह सौदा बड़े काम का है क्योंकि अपने तरह-तरह के उत्पादों के साथ रामदेव अब मीडिया में छाया हुआ है।

फिर सरकार को अचानक होश आया कि इतने सारे सहभागियों के लिए चटाइयों की ज़रूरत होगी और चीन से आयात करने के सिवा उन्हें कोई बेहतर विकल्प नहीं सूझा! मोदी, जो दुनिया को यह समझाने में लगे हुए हैं कि भारत एक बढ़िया निर्माता है और दुनिया भर में घूम-घूमकर ‘मेक इन इंडिया’ का प्रचार-अभियान चला रहे हैं, अब यह व्यापार एक दूसरे देश की झोली में डालने के लिए तैयार हो गए! क्या चटाइयाँ भारत में तैयार नहीं की जा सकती थीं? या पूरी तरह परंपरागत तरीके से स्थानीय दस्तकारों से घास-फूस की चटाइयाँ ही बनवा लेते! कल्पना कीजिए, कितने गरीब कारीगरों को इस समारोह के चलते रोज़गार मिल जाता!

मेरा इशारा अब आप समझ गए होंगे! स्वाभाविक ही, मैं योग के विरुद्ध नहीं हूँ और न ही इसके विरुद्ध हूँ कि वैश्विक पैमाने पर किसी दिन को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया जाए। लेकिन प्रश्न दूसरा है। उसी संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में घोषित किया है कि भारत में दुनिया के सबसे ज़्यादा संख्या में भूखे लोग बसते हैं। उन्नीस करोड़ चालीस लाख लोग लोग रोज़ भूखे पेट सोने को मजबूर हैं। देश के 48% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। और सरकार करोड़ों रुपया गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में प्रवेश की चमक-दमक के ग्लेमर पर खर्च कर रही है!

देश के मजदूरों को साल में एक दिन के योग की ज़रुरत नहीं है। वे खेतों और निर्माण-स्थलों में कड़ी मेहनत करके पर्याप्त व्यायाम कर लेते हैं और मुश्किल से इतना कमा पाते हैं कि बच्चों को खिला सकें! योग उन्हें क्या देगा? और उन्हें रोज़गार मुहैया करवाने की जगह आप अपने यहाँ के रोजगार और अपना पैसा चीन भेज देते हैं।

निश्चित ही, पतंजलि अगर जीवित होते और यह ड्रामेबाज़ी देखते तो अविश्वास से दीवार पर सिर फोड़ लेते!

खैर, मैंने तो रोज की तरह आज भी योग किया- और मैं सलाह दूंगा कि आप भी यही करें। योग एक जीवन पद्धति है। उसे अपने दैनिक जीवन में उतारिए। साल में एक दिन का योग पर्याप्त नहीं है और उसे सिर्फ कुछ व्यायामों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। जीवन के हर एक पल में जीना सीखिए, भविष्य की अनावश्यक चिंता मत कीजिए और न ही पिछली बातों पर पछतावा कीजिए। खुद पर नज़र रखिए और अपने विचारों, शब्दों और कामों के प्रति हर वक़्त जागरूक रहिए। जब भी संभव हो, दूसरों की मदद करने की कोशिश कीजिए- जैसे किसी ज़रूरतमन्द को काम देकर- न कि दूसरों से सम्मान या मान्यता प्राप्त करने के लिए पैसे बरबाद कीजिए- जैसे विश्व रेकॉर्ड बनाने के लिए…

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