कल्पना करें, कैसा लगता होगा जब अपने ही दावे गलत साबित हो जाएँ और मिथ्या गर्व टूट जाएँ! मैं भी आजकल अक्सर कुछ ऐसा ही महसूस करता हूँ.
माँ तो मेरी रही नहीं परन्तु मेरे बाप और भाइयों ने केवल मुझसे किनारा ही नहीं कर लिया बल्कि गैर कानूनी रूप से मेरा और मेरी बच्ची का हक़ भी छीन लिया। मुझे धोखा दिया केवल पैसे और प्रॉपर्टी के लिए. भारत में भ्रष्टाचार की वजह से ये संभव हो सका.
जब तक जरुरत थी तब तक मैं बेटा और भाई था और जब जरुरत ख़तम हो गई तो मैं कुछ भी न रहा.
अच्छा हुआ जो कि मेरी माँ ये दिन देखने से पहले ही चली गई नहीं तो आज उसे बहुत कष्ट होता।
पिछले आठ महीनों में पहली बार यहाँ फेसबुक पर कुछ लिख रहा हूँ. आपने जब ये पोस्ट शेयर करी तो रहा नहीं गया क्यों कि मेरी अपनी ही लिखी बातें असत्य साबित हो चुकीं हैं.
जिस परिवार के लिए मैंने अपने जीवन के चालीस साल लगा दिए. केवल अपने भाइयों को ही नहीं बल्कि बाप को भी बच्चों की तरह पाला और आँख मूँद कर विश्वास और प्रेम किया उन्होंने मौका लगते ही मेरी पीठ में छुरा घोंपा। पैसे और प्रॉपर्टी के लिए बाप बाप न रहा और भाई भाई न रहा. दोस्तों ये कहानी है लालच, कदाचार और ब्लैकमेल की.
मैंने अपना सब कुछ खोया, बाप और भाइयों पर जो विश्वास था वो भी खो दिया परन्तु उनके लिए मेरे दिल में जो प्रेम है वो आज भी बरकरार है. खून के सम्बन्धों को लालच की हवस ने सफ़ेद कर दिया परन्तु मेरा कोई दिन ऐसा नहीं बीतता जबकि इन्हें याद करके आँखों में पानी नहीं आता हो. जब कभी सपने में अपने परिवार को देखता हूँ तो वही पुराने प्रेम और विश्वास के दिन ही दिखाई देते हैं. कमाल की बात यही है कि सपने में कभी कोई समस्या नहीं दिखाई देती, परन्तु जैसे ही सपना टूटता है और आँख खुलती है तब समझ में आता है कि अरे ये तो सपना था पर अब असलियत बिलकुल बदल चुकी है.
मैंने अपने जीवन में कभी अपने सिद्धांतों से समझौता न किया है और न ही करूँगा। अपने और अपनी बच्ची के हक़ की लड़ाई मरते दम तक लड़ुँगा।
यहाँ एक बात और भी मैं जोड़ना चाहुंगा कि मैंने जर्मनी स्थित हमारी चैरिटी संस्था से भी इस्तीफ़ा दे दिया था क्यों कि वहाँ बच्चों के लिए भेजे जाने वाले दान के पैसे का दुरूपयोग हो रहा था. मेरा कोई कंट्रोल नहीं रहा मुझे चैरिटी की कोई रिपोर्ट नहीं मिल रही थी इसलिए मैं कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था उस दान के पैसे की जो पूरी दुनिया से मेरे सहृदय मित्र बच्चों के नाम पर पैसा भेजते थे. इसके उलट मेरे कुछ दानदाता दोस्त जब यहाँ से हमारे वृन्दावन के आश्रम में गए तो उन्होंने जो खबर दी वह चौंकाने वाली थी. उन्होंने बताया कि कैसे उनका दिया हुआ दान का पैसा आश्रम में शराब, जुआ और अय्याशियों में खर्च हो रहा है.
दोस्तों मैंने सार्वजनिक रूप यह सब लिखने का निर्णय इसलिए किया क्यों कि भारत में अब कोई भी ऐसा नहीं रहा जिसे मैं अपना कह सकूँ। मुझे बहुत प्यार मिला है यहाँ आपका और अब मुझे आपका नैतिक सहयोग चाहिए।
मैं पिछले साल सितम्बर में तीन दिन के लिए मैं भारत आया था परन्तु क्या आप विश्वास करोगे कि, मैं अपने उस घर में नहीं जा पाया जिसे मैंने खुद अपने हाथों से बनाया था और जहाँ आप सबको बुलाया करता था. तभी से मैं फेसबुक दूर हो गया था. हाँलाँकि ये पारिवारिक मानसिक तनाव पिछले पाँच सालों से चल रहा है परन्तु मैं चुप रहा. परन्तु कभी ये सोचा नहीं नहीं था कि पैसों का लालच मेरे बाप और भाइयों को इतना नीचे गिरा देगा.
अपने बाप और भाइयों के लिए तो मैं यही कहुंगा कि मैं पछता रहूं सब कुछ तुम्हें सौंप कर और तुम्हारे ऊपर प्रेम और विश्वास करके परन्तु तुम पछताओगे मेरे से विश्वासघात करके।