मैं पहले ही आपको बता चुका हूँ कि 1 जुलाई के दिन, गर्मी की छुट्टियाँ समाप्त हो गईं और बच्चे वापस स्कूल आने लगे। हमारे बच्चे भी, यानी वे बच्चे, जो आश्रम में ही रहते थे, वापस आ गए। उनके लिए भी एक तरह से यही नया साल था और वे भी उसी तैयारी से आए थे। उन बच्चों में, जो एक साल पहले यहीं रहा करते थे, आश्चर्यजनक तरीके से कुछ और बच्चे भी जुड़ गए!
पवन और उसका भाई गुड्डू पहले ही आ गए थे और दूसरे दिन प्रांशु को भी आना था। उसी दिन हमारे पास एक फोन आया। प्रांशु के पिताजी थे और पूछ रहे थे कि उनका एक रिश्तेदार, जो अपने छह साल के बेटे को हमारे यहाँ रखना चाहता है, क्या बच्चे को लेकर हमारे यहाँ आ जाए। वह साधारण गड़रिया था और आर्थिक परेशानी के चलते अपने बच्चों को पालने-पोसने में दिक्कत महसूस कर रहा था, विशेष रूप से उसकी पढ़ाई का खर्च वहन करना उसके लिए बहुत मुश्किल था।
हमारे बच्चों में दूसरा सबसे बड़ी उम्र का बच्चा, मोहित पिछले सत्र के अंत में वापस अपने परिवार के साथ रहने चला गया था इसलिए हमारे यहाँ कुछ जगह रिक्त थी और हमने उससे कहा कि हम उसके रिश्तेदार के बच्चे को रख लेंगे। इस तरह प्रांशु अकेला नहीं आया बल्कि उसके साथ उसके पिता, उसकी बहन, जो अपरा की उम्र की है और आयुष, वही छह साल का बच्चा और उसके पिता और उसकी दो बहनें भी साथ आ गए। इन दो लड़कियों का नाम राधिका और वंशिका है, जो क्रमशः ग्यारह और आठ साल की हैं।
यहाँ आकर जब ये बच्चे आपस में ही खेलने-कूदने लगे तो आप उनके खुशी और आनंदोल्लास की कल्पना कर सकते हैं! हम सभी बड़े आनंदित थे लेकिन अपरा की खुशी देखते ही बनती थी। अत्यंत नीरव और वीरान गर्मियों के बाद एक साथ इतने सारे नए दोस्तों को देख वह बहुत प्रसन्न हो गई। योजना यह थी कि लड़कियाँ यहाँ तीन दिन रहेंगी लेकिन यहाँ उन्होंने इतना मज़ा किया, आश्रम के वातावरण का भरपूर लुत्फ उठाया और आपस में और अपरा और उसके खिलौनों के साथ खेलते रहे कि बच्चों ने अपने पिता से कुछ दिन और रुकने की इच्छा व्यक्त की। वह भी इस पूरे सप्ताह तक और रुकने पर सहमत हो गए।
स्वाभाविक ही, जब स्कूल शुरू हुए, लड़कों को अपनी-अपनी कक्षाओं में जाना पड़ा और बड़ी लड़कियों ने भी उनका अनुसरण किया और स्कूल की ओर चली गईं। एक दिन रमोना से लड़कियों ने कहा कि स्कूल में और आश्रम में उन्हें बहुत अच्छा लगता है! आखिर, बड़ी वाली ने पूछा, ‘क्या हम भी यहीं, आपके साथ रह सकती हैं?’
वाकई वह आश्चर्यजनक अनुभव था! हमने आपस में बैठकर बात की और उन्हें रखने के लिए सहमत हो गए: ऐसी आकुल याचना- उन्हें मना करना संभव ही नहीं था! उनका भाई रुकने वाला था, वे भी लिखना-पढ़ना चाहती हैं- उन्हें क्यों इंकार किया जाए? हमारे पास इतनी जगह तो है और दो अतिरिक्त बच्चों के लिए भोजन की व्यवस्था भी हो जाएगी!
मैं उनके पिता के पास गया और लड़कियों ने जो हमसे कहा था, उससे कहा। स्वाभाविक ही, जब उसे पता चला कि हम उसकी लड़कियों को भी रखने के लिए तैयार हैं, तो वह खुशी से फूला न समाया! लड़कियों के भविष्य के लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती थी!
तो अब अपरा को एक बड़ी शानदार बच्चा पार्टी मिल गई है क्योंकि अब ये सब बच्चे हमारे आश्रम में हमारे साथ रहेंगे: पवन, गुड्डू, प्रांशु, राधिका, वंशिका और आयुष। अब यह सुनिश्चित हो गया है कि आश्रम अगले एक साल के लिए भी बच्चों की हँसी-खिलखिलाहट और धींगा-मस्ती से गुंजायमान रहेगा। जैसा कि ठीक इस समय है!
रमोना बच्चों के साथ खेल रही है- नीचे वाला वीडियो देखिए!