सन 2006 की सर्दियों में जर्मनी वापस आकर मैं और यशेंदु उसी तरह काम करने लगे जैसे अपनी बहन की मृत्यु से पहले किया करते थे। एक के बाद दूसरी जगह यात्रा करते हुए, एकाध हफ्ता हर जगह रुककर अपनी कार्यशालाएँ और व्यक्तिगत-सत्र आयोजित करते हुए। जीवन में जब कोई दुखद हादसा होता है तब भी आपको अपना काम तो उसी तरह करते रहना पड़ता है लेकिन ऐसे हादसे आपका जीवन बदलकर रख देते हैं-और आप रोज़मर्रा के काम करते हुए भी इस परिवर्तन को महसूस करते हैं।
हम अपने भारतीय बाँसुरी-वादक के साथ यूरोप के कई शहरों और कस्बों में घूमे। हम बेहद दुखी थे लेकिन ऐसी मानसिक अवस्था में भी लोगों से मिलते, अपनी कार्यशालाएँ आयोजित करते, उनके साथ मुस्कुराते और आपसी अनुभव साझा करते। जब आप अपने मस्तिष्क को अपने दुःख से इतर किसी दूसरी बात में व्यस्त कर देते हैं तो दुःख के बारे में न सोचना आसान हो जाता है, उसी दुःख में हर वक़्त लिप्त न रहना आसान हो जाता है और सामान्य रूप से सोचना, बातचीत करना, प्रतिक्रिया व्यक्त करना संभव हो पाता है। लेकिन अपने व्यक्तिगत सत्रों के दौरान मुझे बहन की याद बार-बार आती रही।
मेरे पास लोग अपनी समस्याएँ लेकर आते हैं और अक्सर वे मानसिक समस्याएँ होती हैं। तो उस बार, जब एक महिला मेरे पास आई और बताया कि उसके पति का देहांत हो गया है तो मुझे अपनी बहन की याद कैसे न आती? मैंने उससे अपना दुःख भी साझा किया। कुछ देर हम यूँ ही मौन बैठे हुए अपने-अपने गुज़र चुके प्रियजन को महसूस करते रहे और फिर उसके बगैर दैनिक जीवन में होने वाले अनुभवों और एहसासात को साझा किया। अंत में मैंने उससे कहा कि हमें अपना जीवन जीते रहना होगा और हमने एक-दूसरे की आँखों में देखा और महसूस किया कि हम ऐसा ही करेंगे।
फिर एक बार एक और महिला आई और बताया कि उसके भाई के साथ उसका झगड़ा हुआ है। इतनी बुरी तरह लड़ाई हुई है कि उसने अपने भाई के साथ सारे सम्बन्ध तोड़ लिए है। भरी आँखों से उसने कहा कि वह उससे प्रेम तो करती है मगर भविष्य में कभी भी उसका मुँह नहीं देखना चाहती। लगता था, वह परस्पर विरोधी भावनाओं के बीच उलझ गई है, किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई है। यह सोचकर मैं खुश हुए बगैर नहीं रह सका कि मेरे और मेरी बहन के बीच कभी भी इस तरह झगड़ा नहीं हुआ। मैंने उसे इस सचाई का एहसास कराने की कोशिश की कि जीवन बहुत छोटा हो सकता है। जब वह उसे प्रेम करती है तो हमेशा इस बात को याद रखे और इस झगड़े को अपने सम्बन्ध का आखरी पड़ाव न बनने दे। एक छोटी सी लड़ाई पर सम्बन्ध समाप्त न करे- कल क्या होगा, आप नहीं जानते!
मैं उन मित्रों के साथ, जो उसे भी जानते थे, कई बार बैठकर रोता रहा। हम उसे याद करते रहे और मुझे चाहने वालों ने एक बार फिर मुझे ढाढ़स बंधाया।
वास्तव में जीवन अपनी गति से आगे बढ़ता रहा और साथ ही परा हर वक़्त मेरे साथ बनी रही और एक दिन भी ऐसा नहीं गुज़रा जब मैंने उसे याद न किया हो या उसके बारे में न सोचा हो।
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