होली सिर्फ मौज-मस्ती ही बनी रहे – पश्चिमी पर्यटकों पर कोई विकृत प्रभाव न छोड़े- 16 मार्च 2014
जब मैं 2006 में होली मनाने घर वापस आया तब यहाँ सिर्फ मैं और मेरा परिवार ही नहीं थे, जो होली मनाने की तैयारी कर रहे थे। हमारे यहाँ कई पश्चिमी मेहमान आए हुए थे, जो मौज-मस्ती से भरे इस महत्वपूर्ण त्योहार का इंतज़ार कर रहे थे और मित्रों के साथ रंगों के पागलपन में सराबोर होने के लिए बेताब हो रहे थे। उन्होंने बहुत मौज-मस्ती की मगर दुर्भाग्य से उस दिन एक ऐसी घटना भी हो गई, जो किसी तरह भी इस निर्बाध आनंद और खुशी के मौके के अनुरूप नहीं थी।
सीधे शब्दों में कहें तो यह आपके और आपके रवैये पर निर्भर है कि आप होली का मज़ा ले सकते हैं या नहीं। आप अव्यवस्था, कोलाहल और अफरा-तफरी को कितना पसंद करते हैं। अपने चारों ओर निर्मित होते हड़बोंग को आप कितना सहन कर सकते हैं? कितना आप अपने आप पर हंस सकते हैं?
होली के दिन हर तरफ लोग एक दूसरे पर रंग-गुलाल फेंकते नज़र आते हैं और वृन्दावन में तो हफ्ते भर पहले से ही ऐसी हालत हो जाती है कि आप कहीं भी निकल जाइए, बिना रंगे वापस नहीं लौट सकते। लोग एक दूसरे को मूर्ख बनाने की तरकीबें खोजते रहते हैं और उल्लास और नटखटपन की उत्तेजना में एक से एक बढ़कर अनर्गल, अजीबोगरीब और बेतुकी हरकतें करते रहते हैं। इस प्रक्रिया में आप खुद भी गीले हो सकते हैं, रंगे जा सकते हैं, फूलों में सराबोर हो सकते हैं और अगर किसी जाल में फंस गए तो पूरी तरह चुगद भी नज़र आ सकते हैं। आसपास का सारा माहौल ही रंगों में तरबतर होता है और आपको वह गंदा और प्रदूषित भी लग सकता है।
कुछ लोग इसका भरपूर आनंद उठाते हैं मगर औरों को यह हुड़दंग का अतिरेक लगता है। कुछ लोग इस उल्लास में डूब जाते हैं और कह उठते हैं कि यह उनके जीवन का सर्वोत्तम अनुभव है। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो खुद दूर बैठे दूसरों को होली खेलते, रंगों में सराबोर होते देखते रहना पसंद करते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसी जगहों पर मौजूद रहना भी गवारा नहीं करते, जहां यह सब चल रहा होता है-उनके लिए यह लगभग असहनीय होता है।
सामान्य भारतीय होली के समय इसी मूड में होते हैं। लेकिन मैं यह भी मानता हूँ कि कई बार वे उन सीमाओं को लांघ जाते हैं, जिन्हें त्योहार के पागलपन के बावजूद अक्षत बनाए रखना आवश्यक है। सन 2006 में ऐसी ही एक घटना हुई थी।
हमारे मेहमानों का एक समूह, जिसमें तीन पश्चिमी महिलाएं थीं, होली के दौरान बाज़ार गईं। वे मंदिर देखना चाहती थीं और साथ ही शहर के अंदरूनी इलाकों की होली का अनुभव प्राप्त करना चाहती थीं। वैसे भी भारतीयों को पश्चिमी लोग बहुत सम्मोहक और दिलचस्प नज़र आते हैं। होली के दौरान कुछ मर्द सोचते हैं कि उन्हें कुछ भी करने की आज़ादी है और इन्हीं अनुभवों को लेकर हमारी ये महिलाएं वापस आश्रम लौटीं: अचंभित और दुखी। वे महिलाएं कुछ लोगों के घृणित आचरण का निशाना बनी थीं और भीड़ में कुछ लोगों ने अनुचित ढंग से कई बार उन्हें छूने की कोशिश की थी।
यही वह स्थिति है, जब आनंद का अंत हो जाता है और यह दुखद है कि ऐसा अक्सर होता रहता है।
भारत में महिलाओं की इज्ज़त का सवाल फिर सामने आ जाता है। यहाँ आने वाले पश्चिमी लोगों के मन में भारत की छवि और धूमिल हो जाती है। वे वापस जाएंगे और पुनः भारत के संदर्भ में इन अशोभनीय बातों का ज़िक्र करेंगे-कुछ अच्छी बातों के साथ करेंगे मगर ये बातें उनके मन में कटु स्मृतियों की तरह हमेशा के लिए घर कर जाएंगी।
इसलिए हम सिर्फ आश्रम के सुरक्षित वातावरण में, आश्रम में रहने वाले परिवारों और उनके बच्चों के साथ ही होली खेलते हैं, जिससे हमारे मित्र वास्तविक, उल्लासमय होली का आनंद उठा सकें!
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