वर्ष 2005 में मेरी इच्छा के अनुरूप ही मुझे नयी नयी जगहों पर यात्रा करने का मौका मिला। एक औरत जो कि अलग-अलग सत्रों के लिये वहां आया करती थी, उसने मुझे अपने केन्द्र पर कार्यक्रम (प्रोग्राम) करने के लिये आमंत्रित किया, जिससे कि उसके शहर के लोग भी इस कार्यक्रम का लाभ ले सकें। मैं उसके केन्द्र पर तब गया, जब यशेन्दु 2005 के ग्रीष्मकाल में जर्मनी के अपने दूसरे प्रवास पर था।
उसका घर और रसोईघर दोनों ही बहुत बड़े थे। रसोईघर में तो खाना पकाने का नवीनतम सामान था और वास्तव में सारा सामान बहुत ही आधुनिक था। हालांकि वह रसोईघर शायद ही कभी उपयोग में न लाया गया हो, क्योंकि हमारी आयोजक खाना पकाती ही नहीं थी। उसका पसंदीदा भोजन रेडीमेड भोजन (तैयार भोजन) ही था और कभी-कभी वह पिसी हुयी हरी सब्जि़यों का पेस्ट ब्रेड पर मुसली के साथ मिश्रित करके खाती थी। हालांकि हरा बोतलबंद सामान स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभदायक था, लेकिन मैं और यशेन्दु ये समझ नही पा रहे थे कि वह बिना ताज़ा और गर्म भोजन पकाये कैसे रह सकती है? सुबह नाश्ते में हम सिर्फ ब्रेड और मक्खन या फिर सैंडविच ही लिया करते थे पर शाम को हमें कुछ गर्मागर्म और पका हुआ भोजन चाहिये ही था। तो जाहिर है हमने अपने लिये व उसके लिये रात में भोजन पकाने की पेशकश की।
शाम को मेरा कार्यक्रम था तो यशेन्दु को मैं सिर्फ सब्ज़ी काटने में ही मदद कर पाया। जब उस महिला ने हमारे आयोजकों से पूछा कि उन्हें मदद की जरूरत हो तो बताए, तो हमने उसे आलू दिये लेकिन उसके काम करने के तरीके से लग रहा था कि न तो उसे ठीक तरीके से आलू काटने आते हैं और न ही उन्हें छीलना आता है। उसे आलू छीलता देख हमें हंसी आ गयी फिर हम लोगों ने उससे कहा कि कोई बात नही ये काम हम खुद ही कर लेंगे। वह और मैं वैसे भी ध्यान (मेडीटेशन) के लिये निकल ही रहे थे और यशेन्दु खाना पकाने में लगा था।
पता नही आपने भारतीय भोजन किया है कि नही लेकिन आमतौर पर एक भारतीय भोजन की थाली में चावल, दाल, सब्जी, दही का रायता या सादा दही और रोटियां जरूर होती है और इस तरह का खाना पकाने में अच्छा खासा प्रयास तो करना ही पड़ता है और साथ ही बहुत से बर्तनों का इस्तेमाल भी करना होता है। जब मैं ध्यान (मेडीटेशन) के लिये गया हुआ था तो इसी बीच यशेन्दु ने उन्हीं चीजों से अपना पूरा समय लेकर बहुत अच्छा भोजन पकाया और हां! यहां तक कि रोटियां भी सेंकी।
जब हम लोग ध्यान (मेडीटेशन) से वापस आये तो हमने देखा कि रात का भोजन तैयार था और यशेन्दु अब भी रसोईघर में ही काम कर रहा था। जैसे ही उस महिला ने रसोईघर में प्रवेश किया तो वो जैसे सदमे में आ गयी, यशेन्दु ने बिना किसी की मदद के अपने दम पर सारा खाना पकाया था और पूरे रसोईघर में चारों ओर सारे बर्तन चम्मच, पतीले, डोंगे ही दिखाई दे रहे थे और साथ ही खाना पकाने के कारण छत पर धुएं की एक मोटी परत भी बन गयी थी। अब यशेन्दु तो वहां खाना पकाने गया था तो उसने रसोईघर का भी अच्छे से इस्तेमाल किया। इसमें कोई आश्चर्य या हैरान होने वाली बात नहीं है कि जब आप खाना पकाते है तो रसोईघर का गन्दा हो जाना लाज़मी है। उस महिला जिसके साथ हम रहे थे, शायद उसने खाना पकाने में कभी रसोईघर का प्रयोग ही सही ढंग से नहीं किया था और इसीलिये रसोईघर की ऐसी हालत देखकर वह चौंक गयी।
यह कोई सफाई करने वाली बात नही थी कि रसोईघर में सब गन्दा था बल्कि सफाई तो हमने जल्दी से कर ही दी थी पर बात यह थी वो रसोईघर जो कभी उपयोग में ही नही लाया गया था, उसमें गन्दगी हो गयी थी। उसके घर सुबह-सुबह साफ-सफाई करने वाली एक औरत भी आती थी अगर वह चाहती तो यह साफ-सफाई का काम उसके लिये भी रख सकती थी पर उसने ऐसा नही किया। हमने बहुत ही बढि़या भोजन किया और उसके बाद उसने हमें रसोईघर में खाना पकाने से बिल्कुल मना कर दिया। पास ही में एक बड़ा शहर था जिसके एक भारतीय रेस्तरां में अब हमें रात का भोजन करना था।
बाद में जितने भी दिनों तक हम वहां रहे, हम प्रतिदिन 60 किलोमीटर दूर एक भारतीय रेस्तरां में रात का भोजन करने जाते थे और ये सब इसलिये कि एक रसोईघर गन्दा न हो।