आप अपना एक निजी विश्व रचते हैं – प्लासिएबो इफैक्ट और खुशी के लिए! 16 मार्च 2015

आज मैं हमारे जीवन के एक बहुत रोचक तथ्य के विषय में लिखना चाहता हूँ: अपनी कल्पनाओं और अपने खयालों की सहायता से हम किस तरह अपना यथार्थ गढ़ते हैं! अगर आप किसी चीज़ पर विश्वास करते हैं तो उसकी सृष्टि करना भी शुरू कर देते हैं-और इस तरह अपने विचार को वास्तविक जीवन में स्थापित कर देते हैं। इस तरह हम सब अपने-अपने अलग-अलग संसारों में निवास करते हैं।

कुछ दिन पहले हम खाना खाने के बाद मेरे पिताजी के कमरे में बैठे हुए थे और मैं पिता की गतिविधियों को बड़े गौर से देख रहा था: उन्होंने आयुर्वेदिक दवाई की एक गोली निकालकर मुँह में रखी, फिर क्लब सोड़ा की बोतल का ढक्कन खोलकर एक घूँट लिया और उसके साथ गोली गटक ली। मुझे अपनी ओर प्रश्नवाचक मुद्रा में मुँह फाड़े ताकता देखा तो कहा: "क्लब सोड़ा के साथ दवाई जल्दी असर करती है!"

मैं हँस पड़ा और मेरी देखादेखी वे भी हँसे बगैर नहीं रह सके, हालांकि अपनी इस धारणा पर दृढ़ रहते हुए कि वास्तव में कोई भी दवा सादे पानी के मुक़ाबले उस गैस युक्त, सनसनाते, बुलबुले वाले पानी के साथ लेने पर ज़्यादा बेहतर और त्वरित असर करती है।

स्वाभाविक ही, इसका बड़ा अच्छा मनोवैज्ञानिक असर होता है, प्लासिएबो (placebo) इफ़ेक्ट, जिसका निर्माण अपनी कल्पनाओं, विचार-सरणी और अपने मस्तिष्क की सहायता से आप स्वयं करते हैं! स्वाभाविक ही, आपके रोग-लक्षणों के अनुसार आपकी पीड़ा कम हो जाती है, आप अच्छा महसूस करते हैं, आपको महसूस होता है कि शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ गई है, वह अधिक सुचारू रूप से काम कर रहा है, रक्त-संचार बेहतर हुआ है या आपकी त्वचा की जलन कम हुई है। क्योंकि जिस पानी के साथ आपने दवा ली थी, उसमें सनसनाहट मौजूद थी!

मुझे इस उदाहरण से एक बात स्पष्ट समझ में आती है कि हम अपनी दुनिया के निर्माता स्वयं होते हैं। अपनी आस्थाओं और विश्वासों को अपने जीवन में लागू कर देते हैं, अपने आचरण में ढाल लेते हैं- अपनी आस्थाओं और विश्वासों को बाध्य कर देते हैं कि वह आपके दैनिक जीवन की वास्तविकता बन जाए-कम से कम खुद अपने लिए।

जहाँ आपके दावों, आपके विचारों और कल्पनाओं के प्रमाण की कोई आवश्यकता नहीं होती, ऐसे गुह्य और रहस्यमय मामलों में यह ठीक काम करता है! इसका कोई जैविक, भौतिक प्रमाण नहीं होता कि जो आप कह रहे हैं वह गलत ही है- इसलिए आप हमेशा उसे ठीक समझ सकते हैं। और अगर उसमें आप अपनी आस्था भी मिला देते हैं तो फिर वह आपके लिए यथार्थ बन जाता है, जिसमें फरिश्ते आपका मार्गदर्शन करते हैं, किसी अनिष्टकारी अज्ञात शक्ति से आपके तार जुड़ जाते हैं या आप मृत व्यक्तियों अथवा प्रेतात्माओं से बात कर सकते हैं और अंत में ईश्वर का अस्तित्व भी आपके लिए एक वास्तविकता बन जाता है।

धर्म के चारों ओर स्थित बातें भी इसी श्रेणी में आती हैं। किसी दैवी या ईश्वरीय शक्ति में आस्था, मनुष्य के लिए तथाकथित ईश्वर के बनाए नियमों के बारे में यह विश्वास कि अगर आप कोई नियम तोड़ते हैं तो पाप करते हैं और अगर आप उन नियमों पर चलते हैं तो सुरक्षित रहते हैं। कि पूजा-अर्चना आपको बचा सकती है, आपको स्वस्थ कर सकती है आपकी पीड़ा हर सकती है, आपकी सहायता कर सकती है। आदि आदि।

कल्पना, आस्था और फिर अंततः यथार्थ। आप किसी भी बात पर विश्वास कर सकते हैं और वह आपके लिए सत्य भी बन सकता है। इसमें बड़ी शक्ति है लेकिन साथ ही, यह खतरनाक भी सिद्ध हो सकता है। इन खतरों के बारे में मैं कल के ब्लॉग में लिखूँगा।

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