पिछले हफ्ते मैंने आसाराम के बारे में और उसके द्वारा किए गए यौन दुराचार के बारे में बहुत सी बातें आपको बताई थीं, जिसके लिए अब वह गिरफ्तार भी हो गया है। जब कि लगातार अधिकाधिक विस्तृत सूचनाएँ प्राप्त हो रही हैं, मैं चाहूँगा कि उन लोगों की मानसिक हालत का भी जायजा ले लिया जाए जो इन घटनाओं से किसी न किसी तरह प्रभावित हुए हैं; क्योंकि, वैसे भी, यह कोई इकलौता, इस प्रकार का प्रकरण नहीं है। यह रोज़-बरोज होता रहता है, गुरु और शिष्य बदल जाते हैं, किस्सा वही रहता है और कभी न कभी भक्त को पता चल ही जाता है कि उसके गुरु वैसे धार्मिक और पवित्र नहीं हैं जैसा कि उन्होंने इतने दिनों से समझ रखा था। सबसे पहले धोखा खाए हुए शिष्यों और भक्तों की भावनाओं और उनकी परिस्थिति पर नज़र दौड़ा लें।
आसाराम के प्रकरण में यह व्यक्ति उस 16 वर्षीय पीड़िता के पिता हैं। सालों से उन्होंने अपना जीवन, अपना प्रेम, अपना बहुमूल्य समय, अपनी भक्ति और बहुत सारा धन अपने इस गुरु को समर्पित किया हुआ था। उन्होंने अपने बच्चों को उसके स्कूल में पढ़ने भेजा, यह सोचकर कि उनके बच्चे अच्छी से अच्छी शिक्षा वहाँ पाएंगे-जबकि यह शिक्षा भी कोई सस्ती शिक्षा नहीं थी! लेकिन उन्होंने सब कुछ खुशी-खुशी किया क्योंकि वह जानते थे कि इससे उनके प्रिय गुरु की उसके पवित्र काम में मदद होगी।
और उसके बाद यह सिला! उनके विश्वास की ऐसी धज्जियां उड़ीं कि कोई बाप इससे अधिक बुरा कुछ सोच ही नहीं सकता! क्या आप पूरी तरह ध्वस्त भावनाओं की कल्पना कर सकते हैं? किसी पर समर्पित सालों की बरबादी की कल्पना या समर्पण के साथ अपने आप आ जाने वाली बेबसी की? और यह सब उस व्यक्ति के लिए जिसने, उनकी लड़की के अनुसार उसके साथ यौन संबंध स्थापित करने का प्रयास किया और हत्या तक करने की धमकी दे डाली? पूरी तरह निर्भ्रांत, भग्न-हृदय और साथ ही इतना क्रोधित, जितना ज़िंदगी में कभी हुआ न हो!
जो वे अधिक से अधिक कर सकते थे, उन्होंने किया: पुलिस में अपराध की रपट लिखवाई। दुर्भाग्य से पुलिस, या कहें, भारतीय राजनीति ने उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दिया। उसने आसाराम को वीआईपी माना और लगभग दो हफ्ते उसे गिरफ्तार ही नहीं किया!
इस दौरान, उन्हें आसाराम के चेलों की तरफ से धमकियाँ मिलती रहीं। आखिर उन्हें प्रयास करके अपने फोन को पुलिस की निगरानी में रखना पड़ा। कुछ दूसरे चेलों ने उन्हें रिश्वत का लालच दिखलाया, खरीदने की कोशिश की कि वह अपने आरोप वापस ले ले। आसाराम की एक करीबी महिला जो उसकी बेटी कहलाती है और उसके परिवार के दूसरे सदस्य व्यक्तिगत रूप से उनके घर आए और आसाराम के लिए उनके पैरों पर गिरकर माफ़ी की भीख मांगी।
लेकिन वे टस से मस नहीं हुए-और क्यों और कैसे हों? उन्होंने बताया कि "मैंने आसाराम को इतना रुपया दिया लेकिन उसने मेरी ऐसी चीज़ छीन ली है जिसे वापस पाना असंभव है! ऐसे अपराध के लिए मैं क्या मांगूँ जिससे मुझे उसका प्रतिदान मिल सके? और फिर मुझे भयभीत क्यों होना चाहिए, जबकि पहले ही मैं इतना अपमान झेल चुका हूँ?"
नहीं, वे एक बार भी ढीले नहीं पड़े। इसके विपरीत, जब ऐसा लग रहा था कि पुलिस सम्मन की समय सीमा गुज़र जाने के बाद भी आसाराम पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है, वे यह कहते हुए भूख हड़ताल पर बैठ गए कि वे तब तक भोजन नहीं करेंगे जब तक पुलिस आसाराम को गिरफ्तार नहीं कर लेती, जैसा कि कानूनन उसे करना ही चाहिए।
मेरा मानना है कि उन्होंने पूरी तरह उचित कदम उठाया: बहुत से दूसरे पिताओं के विपरीत, इस प्रकरण को जनता के सामने लाकर शायद वे बहुत सी लड़कियों को बचा रहे हैं। इसके अलावा बहुत से अंधों की आँखों पर पड़ा पर्दा भी इससे हट सकेगा!
और मैं उन्हें यह सलाह दूँगा कि जब भी आपको छ्ले जाने का गम सताए कि इस कुपात्र पर इतना समय, धन, ऊर्जा और प्रेम अर्पित करने के बाद मुझे क्या मिला, तो आप यही सोचिए कि एक बार आंखे खुलने के बाद कि क्या सही है और क्या गलत, आपने कार्रवाई की और आपके इस कदम से कई दूसरे लोग ऐसी निराशाजनक स्थितियों का सामना करने से बच सकेंगे।
अफसोस मत कीजिए, जो भी हुआ उसे स्वीकार कीजिए और उसे लेकर बेहतर भविष्य के विश्वास के साथ आगे बढ़ें! दूसरों की मदद करें, उन्हें अपने पास आने दें और उनको बार बार अपनी कहानी बयान करें जिससे कई और लोगों की आँखें खुल सकें और वे आपसे सीख लेकर ऐसे संत-महात्माओं के चंगुल से आज़ाद हो सकें और उन्हें ऐसी समस्याओं का सामना न करना पड़े!