स्वाभाविक ही आसाराम के सारे शिष्य ऐसे नहीं होते जो उसके एक इशारे पर कोई भी अपराध करने के लिए बेझिझक तैयार हो जाएँ। इन भक्तों की भीड़ में बहुत से ऐसे भी होते हैं जिन्हें कई शंकाएँ होती हैं, लेकिन वे आँख बंद किए रहते हैं और अपने विश्वास को किसी तरह थामे रहते हैं। क्यों? चलिए, देखते हैं ऐसे लोगों के दिमागों में क्या चल रहा होता है और उनके जज़्बात क्या कहते हैं।
आसाराम के खिलाफ अब न सिर्फ यौन दुराचार का आरोप है बल्कि धीरे-धीरे उसकी और भी कई कारस्तानियाँ उजागर हो रहीं हैं जिनमें वह ऐसे ही और कई बिल्कुल दूसरी तरह के अपराधों में लिप्त पाया गया है। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि देश भर में स्थित उसके आश्रम या तो आंशिक रूप से या पूरी तरह से हड़पी गई ज़मीनों पर निर्मित किए गए हैं। ये जमीनें वास्तव में सरकारी जमीनें हैं और बेचने के लिए नहीं थीं मगर कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने रिश्वत लेकर गैरकानूनी रूप से हो रहे आश्रम-निर्माण को जान बूझकर नज़रअंदाज़ किया और देखते देखते सरकारी जमीनें आसाराम के इन आश्रमों का हिस्सा बनती चली गईं। अब तो हर कोई इस समस्या की तरफ उंगली उठा रहा है, मगर आसाराम के जेल जाने से पहले वे सब कहाँ थे?
मगर क्या आरोप है यह कोई मानी नहीं रखता। आसाराम के ये भक्त बाहर कुछ नहीं कहते और हो सकता है कि पूछने पर कह दें कि उनके गुरु ने कुछ भी गलत नहीं किया है, मगर भीतर ही भीतर उनके मन में अपनी ही कही बात पर शक बना रहता है! वे देख रहे होते हैं, पढ़ते हैं, समाचार सुनते हैं और अगर वे वाकई ईमानदार हैं तो मानते भी हैं कि उनके गुरु ने वाकई ऐसा अपराध किया है।
फिर भी वे उस दिशा में इसके आगे सोचने की ज़रूरत नहीं समझते। कारण समझ में आता है: कई सालों से वे इस गुरु के साथ हैं और उसके बारे में उनके मन में कोमल भावनाएँ विकसित हो गई हैं, उस पर उन्होंने बहुत सा रुपया और समय खर्च किया है। गुरु के प्रति उनके समर्पण पर टीका-टिप्पणी करने वाले मित्रों और रिश्तेदारों के सामने उन्होंने दृढ़ता के साथ गुरु का पक्ष लिया है। अगर वे उसकी गलती स्वीकार कर लेते हैं तो उन्हें यह भी मानना होगा कि पिछले कई वर्षों से वे स्वयं गलत रास्ते पर थे! यह स्वीकार करना बहुत मुश्किल है!
ऐसे भक्त एक ऐसे व्यक्ति के प्रति, जो भगवान जैसा या उससे भी ऊपर है, अपने अंधविश्वास को बनाए रखना चाहते हैं। स्वाभाविक ही, उनके लिए वह कभी गलती न करने वाला और अपतनशील है और वे उसके द्वारा किए गए किसी भी दुर्व्यवहार को या अपराध को झूठा साबित करने के लिए कोई भी कुतर्क प्रस्तुत करने पर आमादा रहते हैं! बाद में वे यही कुतर्क खुद अपने आपको शांत रखने में और अपनी शंकाओं का शमन करने में इस्तेमाल करते हैं। इसके बावजूद इस बारे में उन्हें कभी भी पूरी तरह चैन नहीं मिल पाता और वे कोशिश करते हैं कि सार्वजनिक रूप से इस विषय पर किसी विवाद में न उलझें।
वे अपने कान बंद कर लेते हैं, गलतफहमी में रहे आते हैं और तूफान के थमने का इंतज़ार करते हुए समय गुज़ारते हैं, इस आशा में कि कुछ समय बाद गाड़ी पटरी पर आ जाएगी और जैसा अब तक चल रहा था फिर चल पड़ेगा।
ऐसे भक्तों के लिए मेरी सलाह है कि डरिए नहीं और जो कुछ आप भीतर ही भीतर पहले से जानते हैं उसके लिए अपनी आँखें और कान खुले रखिए। आपका गुरु भगवान नहीं है, वैसे ही जैसे आप भगवान नहीं हैं! यह समझने का साहस दिखाइए कि आपकी ही तरह वह भी एक सामान्य मनुष्य है और यह भी कि उसने, शायद अपनी प्रसिद्धि और धन के बल पर ऐसे काम किए हैं जो न सिर्फ नैतिक रूप से गलत हैं बल्कि गैरकानूनी भी हैं।
इस बात का एहसास करें कि ऐसे व्यक्ति की आपको कोई आवश्यकता नहीं है। अपने आसपास के लोगों से सलाह और मदद लें मगर किसी भी हालत में अपना सर्वस्व किसी पर भी निछावर न करें। अपनी ज़िम्मेदारी स्वयं वहन करें और तब आप महसूस करेंगे कि जीवन में आए इस परिवर्तन ने आपको कितना मजबूत बना दिया है!