गुरुओं से धोखा खाए हुए लोगों की, आसाराम प्रकरण में प्रताड़ित लड़की के पिता की, परिस्थिति का जायजा लेने के बाद मैं चाहता हूँ कि आसाराम के उन शिष्यों पर भी नज़र दौड़ा ली जाए जो आसाराम की अनैतिक और गैरकानूनी कारगुजारियों में पूरी सक्रियता के साथ हिस्सा लेते रहे थे और आज भी यही मान रहे हैं कि उनके गुरु ने कुछ भी गलत नहीं किया है और यह सब उसके खिलाफ षड्यंत्र का हिस्सा भर है।
ये लोग इस प्रकरण के चलते बहुत उत्तेजित हो गए हैं और सारी भावनाओं में गुस्सा सबसे ऊपर है-लेकिन जब कि छला गया शिष्य गुरु पर नाराज़ है, इनका गुस्सा प्रताड़ित, उसके परिवार, मीडिया और हर ऐसे व्यक्ति पर टूट रहा है जो उनके गुरु, आसाराम के विरुद्ध कुछ भी कहने का साहस कर रहा है। वे अपने मालिक को खुश करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं और वे हर ऐसे व्यक्ति से घृणा करते हैं जो उसे अप्रसन्न करने वाला कोई काम करता है।
आसाराम के निकटस्थ सहायकों का उदाहरण लें: मीडिया ने विस्तार से बताया कि आयोजनों के दौरान जिनमें स्कूल के बच्चे उपस्थित रहा करते थे, आसाराम ठीक उन लड़कियों पर फूल बरसाता था या उन पर प्रकाश की किरण फेंकता था जो उसकी आँखों को मोहक लग रही होती हैं। सहायक समझ जाते थे कि आसाराम इन लड़कियों को पाना चाहता है और वे उन्हें किसी न किसी बहाने, जैसे किसी लड़की के लिए आवश्यक ‘विशेष कर्मकांड’ के बहाने, उस तक पहुंचा देते थे। वे अपने कार्य के औचित्य या अनौचित्य के विषय में सोचने की आवश्यकता ही नहीं समझते थे। अपने गुरु को खुश करने की इच्छा को उन्होंने सारे नैतिक मूल्यों और स्वयं की सोच और समझ से ऊपर रखा हुआ था। उनका गुरु यह चाहता है इसलिए यह उचित है और उन्हें यह करना ही है।
दुर्भाग्य से यह हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा है जिसने बहुत से लोगों को मुश्किल में डाल रखा है क्योंकि वे अपनी ज़िम्मेदारी को बिलकुल विस्मृत कर देते हैं और जघन्य से जघन्य अपराध करते समय भी अपने गुरु का अनुसरण करते हैं।
इस तरह जब आसाराम ने राजनीतिज्ञों पर षड्यंत्र करने का आरोप लगाते हुए बयान दिया, जब उसने कहा कि इसाई उन पर आक्रमण करके दरअसल हिन्दू धर्म पर आघात करने का प्रयास कर रहे हैं, जब उसने मीडिया को तोड़-फोड़ की धमकी दी, उसके सभी अंधभक्त भेंड-बकरियों की तरह उसके पीछे चल दिये और एक स्वर में वही राग अलापने लगे। उन्होंने ‘षड्यंत्र’ का प्रतिवाद करना शुरू कर दिया और अभी भी सार्वजनिक स्थलों पर उनके प्रदर्शन जारी हैं। वे पीड़िता के परिवार वालों को धमकी देने लगे और उन्हें रिश्वत देकर खरीदने की कोशिश भी की। उन्होंने अपने गुरु को कहते हुए सुना कि उसके अनुयायी हिंसा नहीं करेंगे इसकी जमानत वह नहीं दे सकता और वे आसाराम के आश्रम के सामने संवाददाताओं के साथ हाथापाई और हिंसा पर उतर आए। कई टीवी चैनलों ने दिखाया कि कैसे उसके ये अंधभक्त कैमरामैन और रेपोर्टरों के साथ उलझ गए और उन्हें शोर मचाकर और मार-पीटकर भगा दिया!
इन शिष्यों को उनके गुरु द्वारा हिंसा करने के लिए सिर्फ इसलिए भड़काया गया क्योंकि उनका इस बात पर कट्टर विश्वास है कि उनका गुरु ठीक है और हर वह व्यक्ति जो इसके विपरीत सोचता है, पागल है, मूर्ख है और उन्हें और उनके गुरु को हानि पहुंचाना चाहता है।
समस्या यह है कि ऐसे लोगों तक पहुंचना और उन्हें समझा पाना बहुत मुश्किल है! उनके दिमाग पूरी तरह अपने गुरु पर केन्द्रित होते हैं और जब आप एक शब्द भी उनके गुरु के विरुद्ध कहते हैं, वे महसूस करते हैं कि उन पर आक्रमण हुआ है और वे पलटकर वार करते हैं।
क्या उनके विचारों में परिवर्तन लाने का कोई उपाय है? अपने गुरु के प्रति उनका नज़रिया बदलने की तब तक कोई संभावना मुझे नज़र नहीं आती जब तक स्वयं उन पर कोई हादसा नहीं गुज़रता। वे उसके लिए कुछ भी करने के लिए उद्यत हैं-यहाँ तक कि वह उनका अपमान करे या गाली-गलौज करे, मारे-पीटे वे यही समझते हैं कि गुरु ठीक ही कर रहा है। उनकी अंधभक्ति तभी दूर होगी जब कोई बड़ी चोट उन्हें लगे और वे हिल उठें, उनके दिमाग के चारों ओर बनी मजबूत दीवारें ढह जाएँ, कोई दरार उसमें पड़ जाए, जहां से कोई तार्किक और समझदारी की बात उनके दिमाग में प्रवेश कर सके।
जब तक यह घटित नहीं होता तब तक वे अपने गुरु के पीछे, जिज्ञासा और विचार विहीन, गुरु के वचनों या कर्मों पर बिना कोई सवाल किए, अंधी भेंड़ों की तरह चलते चले जाएंगे।