कल मैंने आपको बताया था कि कैसे चीजों को ‘पश्चिमी’ और ‘भारतीय’ खांचों में विभक्त करना मुश्किल हो गया है और आज मैं एक ऐसे तथ्य पर अपने विचार रखूँगा, जो शायद सांस्कृतिक और परंपरागत भिन्नता के कारण, पश्चिम में ज़्यादा अनुभव किया जाता है: बहुत से परिवारों में पारिवारिक जीवन लगभग नदारद होता है। अभिभावक अपना जीवन जीते हैं और बच्चे अपना अलग जीवन- वे साथ में कुछ भी नहीं करते और कहा जा सकता है कि अब वास्तव में वे एक-दूसरे को जानते भी नहीं हैं।
मुझे लगता है कि बढ़ते व्यक्तिवाद के चलते समाज में यह परिघटना देखने में आ रही है, जिसे पश्चिम में और अब भारत में भी अधिक से अधिक प्रोत्साहित भी किया जाता है। विभिन्न कारणों से परिवार के दोनों अभिभावक काम पर चले जाते हैं और बच्चे पहले विभिन्न शिक्षा संस्थानों में पढ़ने जाते हैं और जब वे पर्याप्त आयु प्राप्त कर लेते हैं तो अपनी राह आप चुन लेते हैं- दोस्तों के साथ बाहर निकल जाते हैं और अपना भला-बुरा खुद तय करते हैं।
मैं जानता हूँ कि समय के साथ ये बातें वैसे भी होने ही वाली होती हैं। बच्चे बड़े होते हैं, किशोरावस्था प्राप्त करते हैं और फिर वयस्क हो जाते हैं और उसके बाद अभिभावक बच्चों की गतिविधियों में शामिल नहीं होते। लेकिन यह दस साल की उम्र में नहीं होना चाहिए! वास्तव में अभी आप बहुत कुछ साथ मिलकर कर सकते हैं, उनकी किशोरावस्था तक भी। और मुझे लगता है कि आपको ऐसा करना चाहिए!
आप पूछेंगे कि वे सामान्य गतिविधियां क्या हो सकती हैं तो मेरे पास आपके लिए कुछ सुझाव हैं:
1. सारे परिवार के सदस्य दिन भर में एक बार भोजन साथ करें। मैं समझ सकता हूँ कि दोपहर के भोजन के वक़्त सारे सदस्य घर में नहीं हो सकते लेकिन रात का भोजन तो साथ कर सकते हैं! आपके बच्चे शिकायत करेंगे कि उन्हें टीवी देखना है मगर आप अभिभावक हैं और आपको घर के नियम तय करना है। एक बार समय निकालकर साफ-साफ़ बता दें कि सबको रात के भोजन के वक़्त टेबल पर उपस्थित होना है और आप खुद भी इस नियम कड़ाई के साथ पालन करें!
2. छुट्टियाँ मनाने साथ-साथ जाएं। जी हाँ, एक उम्र के बाद आपके बच्चे अपना खुद का कोई अलग कार्यक्रम रखना चाहेंगे लेकिन फिर भी साल में दोबारा एक बार आप परिवार के साथ, एक या दो सप्ताह का कोई न कोई कार्यक्रम अवश्य रखें जब आप सभी परिवार के सदस्य एक साथ समय गुज़ार सकें! अगर आप लम्बी दूरी का कार्यक्रम न रख सकें तो एक दिन के लिए ही कहीं साथ जाकर शिविर लगा लें या रिश्तेदारों के यहाँ हो आएँ। सौ बात की एक बात: फुरसत के समय परिवार और बच्चों के साथ मिलकर कुछ न कुछ अवश्य करें!
3. परिवार के दूसरे सदस्यों के जीवनों में भागीदारी कीजिए। एक-दूसरे के साथ बातचीत कीजिए, घर के किसी भी काम की योजना को आपस में चर्चा करने के बाद अंतिम रूप दीजिए और बच्चे जिन बातों को महत्वपूर्ण समझते हैं, उनमें शामिल होइए। अगर बच्चे किसी तैराकी प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे हैं तो उन्हें प्रोत्साहित करने उनके साथ अवश्य जाइए! स्कूल के समारोहों में उनके साथ जाइए! उन्हें भी बताइए कि आपके लिए जीवन में क्या महत्वपूर्ण है!
परिवार को पुनः जोड़ने की दिशा में ये कुछ सुझाव और विचार हैं। गलत मत समझिए: न तो मैं पुरानी पारिवारिक परम्पराओं को बचाकर रखना चाहता हूँ और न ही पुराने मूल्यों को बनाए रखना चाहता हूँ। मैं जीवन जीने के आधुनिक तौर-तरीकों के खिलाफ भी नहीं हूँ लेकिन मेरा विश्वास है कि बच्चों के लिए अकेले व्यक्ति के रूप में, एक-दूसरे से अलग रहना ठीक नहीं कहा जा सकता बल्कि उनके लिए सबके साथ रहना बहुत महत्वपूर्ण है!
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