क्या भारत का क़ानून धार्मिक और अमीर लोगों के लिए अलग तरह से काम करता है?-3 सितम्बर 2013

कल मैंने आपको आसाराम प्रकरण के बारे में बताया था जो पिछले दो हफ्तों से समाचारों की सुर्खियों में बना हुआ है। उस पर एक नाबालिग लड़की के साथ यौन दुराचार करने का आरोप था और 31 अगस्त की रात को ही उसकी गिरफ्तारी संभव हो पाई। मीडिया में न सिर्फ उसके एक नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध बनाने का प्रयास करने की चर्चा थी बल्कि इस बात की भी चर्चा थी कि उसके साथ इतना विशिष्ट व्यवहार क्यों किया गया। एक साधारण यौन अपराधी या बलात्कार के आरोपी को ऐसा वीआईपी ट्रीटमेंट प्राप्त हो यह आश्चर्यजनक ही था और इसलिए प्रकरण के इस पहलू पर चर्चा और ज़्यादा हुई!

अगर आप क्रमवार विचार करें तो पंद्रह अगस्त के दिन सोलह साल की वह लड़की आसाराम के साथ अकेली थी। स्वाभाविक ही उस दिन वह अपने अभिभावकों को कुछ भी बताने में झिझक रही थी। दूसरे दिन जब वे घर पहुंचे तभी उसने उन्हें अपनी आपबीती सुनाई। अभिभावक कोशिश करते रहे कि दिल्ली में आसाराम के साथ मुलाक़ात हो जाए और जब उन्हें यह मौका नहीं दिया गया तब जाकर उन्होंने 20 अगस्त, 2013 के दिन उसके खिलाफ पुलिस में रपट लिखवाई। उसके 11 दिन बाद ही आसाराम की गिरफ्तारी संभव हो पाई- ऐसा क्यों और कैसे?

स्पष्ट है कि प्रकरण को मीडिया ने तुरंत सुर्खी बना दिया और क्योंकि आसाराम प्रतिष्ठित गुरु है उसका अतापता लगाना बहुत आसान था। फिर भी पुलिस ने कार्रवाई करने में, अपने चरित्र के अनुरूप, पर्याप्त वक्त लिया। इस बीच आसाराम दावा करता रहा कि सारा प्रकरण उसके विरुद्ध एक षड्यंत्र है और मीडिया हमें बताता रहा कि पुलिस उसका बयान लेने के लिए उसके पीछे पड़ी हुई है। आसाराम एक शहर से दूसरे शहर और एक आश्रम से दूसरे आश्रम भागता रहा और पुलिस, रोज़ मीडिया में खबरें आने के बावजूद, उस तक पहुँचने से कतराती रही। क्या वे लोग पैदल चलकर उसे गिरफ्तार करना चाहते थे या और कोई बात थी जिसके कारण वे उससे मिल नहीं पा रहे थे?

स्वाभाविक ही देश में हड़कंप मच गया। मीडिया उसके पीछे पड़ा था, आसाराम के चेले और समर्थक उस पर आरोप लगाने वालों पर पिल पड़े थे और बार-बार सारे आरोपों को निराधार बता रहे थे और देश हताशा में सिर खुजा रहा था कि आखिर ऐसा आदमी मज़े में छुट्टा कैसे धूम रहा है! जब पत्रकार उन्हें ढूंढते हुए आश्रम पहुंचे तो उनके साथ मार-पीट की गई। इस लड़ाई-झगड़े में कुछ लोग गिरफ्तार भी हुए!

27 अगस्त को आखिर मीडिया ने खबर दी कि पुलिस ने आसाराम को नोटिस भेजा है "30 अगस्त तक पुलिस के सामने हाजिर हों जिससे आपका बयान लिया जा सके।" पुलिस के साथ सहयोग करने और अपनी बात उसके सामने रखने के लिए आसाराम के लिए भी समय-सीमा निश्चित की गई थी यह बात भी जैसे कोई बड़ी बात थी! लेकिन नोटिस की तामील करने के स्थान पर वह इस समय-सीमा के पूरा हो जाने का इंतज़ार करता रहा और उसके बाद भी पुलिस के सामने पेश नहीं हुआ; एसएमएस और फ़ैक्स भेजा कि वह पुलिस के सामने उपस्थित होने में असमर्थ है क्योंकि वह किसी ज़रूरी काम में ‘बहुत ज़्यादा व्यस्त’ है! उसने मांग की कि अपने कार्यक्रमों के चलते वह बहुत व्यस्त है और उसे 20 दिन का अतिरिक्त समय दिया जाए!

भला हो पुलिस का जिसे अब तक समझ में आने लगा था कि मामला कुछ ज़्यादा ही बेतुका और हास्यास्पद होता जा रहा है और आखिर 31 अगस्त की रात उन्होंने उसे गिरफ्तार कर ही लिया। अगले चौदह दिन उसका निवास स्थान एक तरह की जेल ही मानी जाएगा, भले ही वह कितना भी अपने निर्दोष होने का दावा करता रहे या पूरे प्रकरण को ही अपने विरुद्ध राजनैतिक या धार्मिक षड्यंत्र बताता रहे!

एक तरफ मुझे उस किशोरी के बयान की सत्यता पर कोई संदेह नहीं है तो दूसरी तरफ मैं पूरी तरह मानता हूँ कि इस धार्मिक देश में आसाराम की गिरफ्तारी में हुई देर के पीछे अवश्य ही कोई न कोई राजनैतिक खेल चल रहा है। अगर वह कोई सामान्य व्यक्ति होता तो उसे गिरफ्तार करने में ज़रा भी देर नहीं की जाती, दस दिन का समय नहीं दिया जाता, आने का निमंत्रण नहीं दिया जाता और न ही उसके आने का इस तरह इंतज़ार किया जाता! मगर क्यों? कानून तो सबके लिए एक जैसा होता है, ना?

शायद भारत में नहीं! स्पष्ट है कि राजनीतिक नेताओं को चीजों को एक सीमा तक तोड़ने-मरोड़ने की और उन्हें अपने हित में साधने की छूट तो होती ही है। स्वाभाविक ही लोकप्रिय ‘संत’ के विरुद्ध कार्रवाई करके उसके अनुयायियों यानी बहुसंख्यक हिंदुओं के वोट वे खोना नहीं चाहते थे।

इसके बारे में सोचना भी बहुत घृणित, गुस्सा दिलाने वाला, दुखद और निराशाजनक है, लेकिन अब भी मेरा विश्वास है कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं। यह भी कि सच अवश्य सामने आएगा और उसे अपने किए की सज़ा अवश्य मिलेगी जिससे यह बात साबित होगी कि उसके जैसे अमीर, धार्मिक और दबंग गुरु भी अपने अनुयायियों के साथ की गई ज्यादती की सज़ा अवश्य ही पाते हैं!

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