हम सब खुश रहना चाहते है। परंतु दुर्भाग्य से कई लोग अपने दैनिक जीवन में इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। जब प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों, तो स्पष्टतया प्रत्येक व्यक्ति की व्यक्तिगत स्थिति पर इसका उत्तर निर्भर करता है। लेकिन एक जवाब जो हम अकसर सुनते हैं और जो लगभग सभी पर एक समान लागू होता है, वह यह है कि वे सभी लोग बहुत सारी और बहुत ही ऊंची अपेक्षाएं रखते हैं। मैंने भी आशा और निराशा पर बहुत कुछ लिखा और कहा है। लेकिन आपके जीवन में इसका वास्तविक अर्थ क्या है, यह जानना आव्श्यक है ।
कई लोग सोचते हैं कि उनकी अपेक्षाएं बहुत ऊंची हैं लेकिन जब वे निराशा से बचने के लिए इस समस्या का हल खोजने लगते हैं तो वे विपरीत की पराकाष्ठा पर पहुंच जाते हैं और यह सोच लेते हैं कि उन्हें अपेक्षाएं रखनी ही नहीं चाहिएं। वे किसी भी चीज़ की उम्मीद करना छोड़ देते हैं, ऊंचे लक्ष्य निर्धारित करना छोड़ देते हैं। जब कभी भी उन्हें यह महसूस होता है कि वे कुछ चाहते हैं तो वे तुरंत ही खुद समझाने लगते हैं सपने देखना व्यर्थ है। वे अपना दिमाग़ वहां से हटा लेते हैं और वापिस अपने दैनिक कामों में लग जाते हैं।
नतीज़ाः वे पहले की तुलना में अधिक व्याकुल और मायूस हो जाते हैं! अपेक्षाएं ना रखने पर भी जब खुशी नहीं मिलती तब वे स्वयं से सवाल करते हैं कि उनके जीने का आखिर अर्थ ही क्या है। अगर कुछ पाने के इच्छा ही नहीं है तो मेरी ज़िंदगी के मायने ही क्या हैं? जीवन का कोई उद्देश्य ही न हो तो मैं क्या करूं?
मेरा मानना है कि इन दोनों के बीच का भी एक रास्ता है। आप उम्मीदों के बिना एक सामान्य जीवन नहीं जी सकते। आप सामान्य जीवन की गतिविधियों से पूरी तरह विमुख होकर एकांतवास में जा सकते हैं। यदि आप स्वयं को मित्रों, परिवार और सामाजिक जीवन से अलग कर सकते हैं, यदि आप सारे काम छोड़कर केवल ध्यान में मग्न हो सकते हैं तो संभव है कि आप उस अवस्था के नज़दीक पहुंच सकते हैं। परंतु दोस्तों, परिवार और दैनिक कामकाज के बीच यह कर पाना संभव नहीं है। यदि आप ध्यान करने में समय व्यतीत करते हैं तो भी यह संभव है कि आप पूर्ण समाधि में उतरने की अपेक्षा करने लगें। हो सकता है कि ऐसा ना हो पाए। तब पुनः आप निराश और नाखुश होंगें। जहां अपेक्षाएं होती हैं, वहां निराशाओं की गुंजाइश अवश्य रहती है।
निराशा के भय को अपने ऊपर हावी न होने दें। इस भय की वजह से अपने लिए उच्चतम लक्ष्य निर्धारित करने से पीछे न हटें। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप स्वयं अपने विकास का रास्ता अवरुद्ध कर रहे हैं। आपका विकास नहीं होगा तो ज़िंदगी में कोई मुकाम हासिल करने की आशा ही समाप्त हो जाएगी।
अपनी अपेक्षाओं को घटाकर शून्य पर लाने की ग़लती कदापि न करें। बल्कि इसके बजाए उनसे उचित तरीके से निपटना सीखें। बेशक़ आप समय – समय पर यह जांच कर सकते हैं कि आपकी अपेक्षाएं जायज़ हैं या नहीं। और यदि वे जायज़ हैं और उन्हें पूरा कर पाने की ज़रा सी भी संभावना आप देखते हैं, तो ज़रूर आगे बढ़ें। जी-जान लगाकर कोशिश करें। यदि फिर भी निराशा हाथ लगती है तो भी छोटी-छोटी निराशाओं से घबराएं नहीं, ये तो आपको और अधिक मज़बूत बनाती हैं और आपके विकास में मदद करती हैं।
एक बार प्रयास करने पर यदि असफलता हाथ लगती है तो आप दोबारा प्रयास कर सकते हैं। इस बार आपका यह प्रयास अधिक विश्वास से भरपूर और सटीक होगा क्योंकि अब आपके पास एक प्रयास का अनुभव जो है। केवल इसी रास्ते पर चलकर आप अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। यदि आप किसी भी दिशा में पूरी शिद्दत से प्रयास करते हैं तो कुछ न कुछ नतीजा अवश्य निकलेगा। चाहे मंज़िल तक न पहुंच पाएं हों लेकिन फिर भी एक कदम तो आपने आगे बढ़ाया है। जितना आगे बढ़ते जाएंगें, उतना ही आपके अनुभवों में वृद्धि होती जाएगी।
यदि आशाएं, सपने और उम्मीदें नहीं होंगी तो ज़िंदगी थम सी जाएगी। जीवन नीरस हो जाएगा, आप कहीं के भी नहीं रहेंगें और सबसे बड़ी बात, आप खुश नहीं रह पाएंगें। नहीं, आप अपने जीवन के साथ ऐसा नहीं कर सकते। सपने देखें, अपेक्षाएं रखें, कल्पना की उड़ान भरें और साथ ही अपने सपनों को साकार करने के लिए दिमाग और हाथ-पैरों का इस्तेमाल करें।