आज मैं आपको हमारे स्कूल में पढ़ रहे एक विद्यार्थी, संजू से मिलवाना चाहता हूँ। संजू बारह साल का है और पिछले दस साल से वृन्दावन में निवास कर रहा है। उसे कोई दूसरा घर याद ही नहीं है और यह इलाका, जहां वह रह रहा है, उसे बहुत भाता है क्योंकि उसके कई मित्र भी इसी इलाके में, आसपास ही, रहते हैं। यहाँ एक ही बात उसे खलती है: हर साल बारिश के मौसम में अपने माँ-बाप को परेशान देखना और इस सवाल का सामना करना: "क्या इस साल बाढ़ में घर बचा रहेगा या नहीं?"
संजू के पिता रिक्शा चलाते हैं। उन्होंने हमेशा ऐसे ही काम किए हैं जिसमें रोज़ अनिश्चित कमाई ही हो पाती है और इसलिए वह शहर दर शहर भटकते फिरते हैं। अपने गाँव में उनका एक घर है-पर वहाँ काम नहीं है, जिससे वह कुछ कमा सकें और अपने परिवार का लालन-पालन कर सकें। उनकी पत्नी कलकत्ता की है मगर उसकी एक बहन वृन्दावन में रहती है और इसी कारण वह अपने दो साल के बेटे, संजू और एक माह की उसकी बहन को लेकर वृन्दावन आ गए थे। आते ही फिर एक बच्चा हो गया और उन्होंने तय किया कि अगर आर्थिक दृष्टि से संभव हुआ तो आगे वृन्दावन में ही बस जाएंगे। उन्होंने एक मकान खरीदा और खुश थे कि रहने को एक घर तो हुआ। फिर मानसून आया और बारिश का पानी न सिर्फ छत से टपकने लगा बल्कि दरवाजा तोड़कर घर के भीतर भी चला आया।
हर साल परिवार की यही हालत होती है। पानी से बचने के लिए उन्हें घर में जगह-जगह बाल्टियाँ या दूसरे बर्तन रखने पड़ते हैं जिससे उनके, दो कमरों के छोटे से, घर में पानी न भरे। लेकिन जब बारिश का पानी सड़कों और गलियों में बहना शुरू करता है तो उसे घर में आने से रोकने का कोई उपाय वे नहीं कर पाते। पूरा इलाका बाढ़-प्रवण है क्योंकि घर यमुना नदी के बहुत किनारे पर बना हुआ है।
सन 2010 की पिछली बाढ़ के दौरान उन पर जैसे अक्षरशः आसमान ही फट पड़ा था: उनका घर छत तक पानी में डूब गया था। जब पानी का स्तर ऊपर जा रहा था तब उसका आवेग इतना अधिक था कि घर की दीवारे उसे बरदाश्त नहीं कर पाईं। दीवारों में दरारें पड़ गईं और लगता था कि घर ही पानी में बह जाएगा। उस साल हमने भी वृन्दावन और उसके आसपास के इलाके में बहुत सा चैरिटी का काम किया था। हमने स्वास्थ्य-केंद्र स्थापित किए थे, भोजन की व्यवस्था की थी, जहां हम स्वयं बारिश में तबाह लोगों के लिए भोजन पकाते थे। यहाँ तक कि जिनका संपर्क दुनिया से कट गया था, उन पीड़ितों के पास हम नावों की सहायता से पहुंचे और भोजन वितरित किया। उस समय संजू और उसकी माँ ने हमें अपना घर दिखाया था: वह ऐसा नज़र आता था जैसे जल्द ही बाढ़ में बह जाएगा। आप सन 2010 की बाढ़ का वह दृश्य नीचे दिये गए वीडियो में देख सकते हैं।
अपने दूसरे बच्चों को लेकर संजू की माँ को अपने रिश्तेदारों के घर आश्रय लेना पड़ा और संजू, कुछ दूसरे पीड़ित बच्चों के साथ, हमारे यहाँ, आश्रम में, रहने आ गया। यहाँ आने के कारण, बाढ़ के बावजूद उनकी पढ़ाई में कोई व्यवधान उपस्थित नहीं हुआ और वह नियमित रूप से स्कूल की पढ़ाई जारी रख सका। अपने जैसे ही दूसरे गरीब लोगों की तरह संजू के पिताजी को भी छत पर सोना पड़ा, जिससे उनका थोड़ा बहुत, जो भी सामान बचा रह गया था, उसे चोरों से बचाया जा सके।
किसी तरह आश्चर्य ही था कि, कुदरत की कृपादृष्टि ही थी कि बाढ़ दीवारों को बहाकर नहीं ले जा सकी। धीरे-धीरे पानी का स्तर नीचे आया और परिवार खुश था कि उनका घर जहां था, वहीं मौजूद है। घर में जगह-जगह दरारें पड़ गई थी और वहाँ नमी के मारे सांस लेना दूभर था। परिवार के पास घर की मरम्मत के लिए धन नहीं था। पैसे की कमी के चलते दीवारों को जोड़ना और दरारों को भरना भी संभव नहीं था। अगली बार जब नदी में बाढ़ आएगी, तब क्या हालत होगी? क्या हालत होगी, जब किसी दिन तूफान और पानी का बहाव इतना तेज़ होगा कमजोर दीवारे बाढ़ में बह जाएंगी? वे जानते हैं कि वे खतरे में हैं, किसी भी दिन दीवारें उन पर गिर सकती हैं लेकिन उनके पास कोई चारा नहीं है। जो पैसा वे कमाते हैं वह बाल-बच्चों और अपने लिए भोजन और कपड़े-लत्तों के इंतज़ाम में ही खर्च हो जाता है।
कम से कम उन्हें अपने बच्चों की पढ़ाई की चिंता नहीं करनी पड़ती। संजू पहले से हमारे स्कूल में पढ़ता है और उन्होंने अपने दूसरे बच्चों को भी अगले साल से हमारे स्कूल में भेजने का वादा किया है। इस तरह बच्चों को गरमागरम भोजन भी मिल जाएगा और वे स्कूल में रहकर कुछ न कुछ सीख सकेंगे और अपने परिवार का भविष्य कुछ उज्ज्वल बनाने में अपना योगदान कर सकेंगे!