परिवार के भरण-पोषण के लिए नलसाज़ी (प्लंबिंग) के अनियमित काम का सहारा – 6 मार्च 2015

शहर:
वृन्दावन
देश:
भारत

आज मैं हमारे स्कूल के एक और बच्चे से आपका परिचय करवाना चाहता हूँ, जिसका नाम शिवम है और जिसकी उम्र सात साल है। शिक्षिकाएँ बताती हैं कि वह एक शर्मीला लड़का है। लेकिन जब वह हमें अपने घर ले जा रहा था तो कतई ऐसा नहीं लगा!

हम दरवाजे से प्रवेश करते हैं और किंचित आश्चर्य में पड़ जाते हैं: दरवाजा दीवारों से घिरे एक अच्छे-खासे, विस्तृत बगीचे में खुलता है, जिसके चारों ओर कुछ कमरे बने हैं, जहाँ, हमें लगा, कम से कम पाँच परिवार रहते होंगे। परंतु वहाँ बहुत थोड़े से बच्चे खेल रहे थे और सिर्फ दो वयस्क दिखाई दे रहे थे, एक पुरुष और एक महिला।

हमें बताया गया कि महिला शिवम की माँ है और पुरुष उसका चाचा। खेल रहे दो बच्चे उसके छोटे भाई हैं और बाकी सब पड़ोसी बच्चे हैं, जो खेलने के लिए आए हैं। शिवम का अकेला परिवार बगीचे वाले इतने बड़े घर में रह रहा है।

लेकिन यह उनकी मिल्कियत नहीं है, वे किराए से रह रहे हैं- और उसे साफ-सुथरा रखना उनकी ज़िम्मेदारी है। इस संपत्ति और मकान के मालिक के साथ यह उनका सौदा है: 1000 रुपए यानी लगभग 16 डॉलर प्रतिमाह पर सात कमरों में से दो कमरे वे इस्तेमाल करते हैं और लॉन, दोनों कमरे और आने-जाने के रास्ते को स्वच्छ-साफ रखते हैं और इसके अलावा संपत्ति की देखभाल भी करते हैं। बचे हुए पाँच कमरे हमेशा बंद रहते हैं।

इन तीन भाइयों का पिता नलसाज़ यानी प्लंबर है। उसके पास कोई नियमित काम नहीं है और अक्सर वह भवन-निर्माण करने वाले किसी ठेकेदार के साथ काम करता है। स्वाभाविक ही, ठंड के मौसम में भवन-निर्माण के काम में तेज़ी होती है और उसके पास भी भरपूर काम होता है-लेकिन दूसरे मौसमों में उसे काम ढूँढ़ना पड़ता है और बड़ी कोशिशों के बाद ही कोई काम मिल पाता है और अक्सर कोशिशें व्यर्थ सिद्ध होती हैं।

इसीलिए शिवम की माँ कहती है, ‘हम मज़े में हैं’ मगर फिर अपने तीन और चार साल के बच्चों की तरफ इस तरह देखती है जैसे अपनी कही बात पर उसे शक हो, बच्चों के भविष्य में ‘मज़े’ के अलावा पता नहीं और क्या लिखा हुआ है! उसका पति जो ढाई सौ रुपए यानी लगभग चार डॉलर रोजाना कमाता है वह मकान-किराए, भोजन-पानी और बच्चों के कपड़े-लत्तों की व्यवस्था के लिए ही मुश्किल से पर्याप्त होता है-निश्चय ही इतनी कमाई बीमारी आदि के आकस्मिक खर्चे और बच्चों की स्कूल-फीस और किताब-कापियों के खर्चे वहन नहीं कर सकती।

और यहीं पर हमारा स्कूल उनके लिए वरदान सिद्ध होता है: शिवम ने हमारे यहाँ पढ़ाई करना शुरू कर ही दिया है और जल्द ही उसके दोनों भाई भी उसके साथ स्कूल आने लगेंगे!

ऐसे परिवारों को सहायता पहुँचाने की हमारी परियोजना में आप भी मददगार हो सकते हैं! किसी एक बच्चे को या बच्चों के एक दिन के भोजन को प्रायोजित करें!

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