आज मैं एक ब्लॉग श्रृंखला शुरू करने जा रहा हूँ। यह पूरा सप्ताह मैं अपने स्कूल की एक लड़की, मोनिका को समर्पित करना चाहता हूँ।
ऊपर दिए गए चित्र में आप मोनिका को देख सकते हैं। बाईं तरफ वाले चित्र में उसका 4 मई 2014 से पहले का चेहरा है और दाहिनी तरफ दस दिन पुराना फ़ोटो है, उसके साथ हुई दुर्घटना के सात माह बाद का चित्र।
मोनिका जब 5 मई 2014 के दिन स्कूल नहीं आई तो हमने सोचा कि वह भी दूसरे कई बच्चों की तरह कुछ दिन पहले से ही गर्मी की छुट्टियों पर चली गई है। कुछ बच्चे हर साल यही करते हैं। उस वक़्त हम बिल्कुल नहीं जान पाए थे कि मोनिका अस्पताल में बिस्तर पर पड़ी भीषण दर्द में छटपटा रही है।
अपने घर में वह मिट्टी के तेल के स्टोव पर चाय बनाना चाहती थी, जिसकी आँच तेज़ करने के लिए उसे पम्प करना पड़ता है। या तो किसी बात से उसका ध्यान बँट गया या फिर वह किन्हीं ख्यालों में खोई हुई होगी और उसी झोंक में वह कुछ ज़्यादा और तेज़ी के साथ पम्प करती चली गई और दुर्भाग्य से तेल का फव्वारा स्टोव की लौ के साथ उसके चेहरे, हाथ और छाती तक पहुँच गया और वह इतनी बुरी तरह जल गई कि सिर्फ त्वचा ही नहीं, गहराई तक मांस भी झुलस गया।
परिवार उसे तत्काल अस्पताल ले गया मगर उन्हें पहले वृन्दावन फिर वहाँ से मथुरा, फिर आगरा और अंत में दिल्ली तक के चक्कर लगाने पड़े तब जाकर उन्हें ऐसा डॉक्टर मिल पाया, जो आग से जले इतने गंभीर ज़ख्मों को ठीक कर सकता! उस समय के बारे में, एक के बाद दूसरे अस्पताल में भर्ती होने और वहाँ से बाहर निकलने की कहानी मैं आपको कल बताऊँगा।
और अंत में वे वृन्दावन लौट आए। स्कूल का नया सत्र शुरू हो चुका था और स्वाभाविक ही शिक्षकों ने नोटिस किया कि मोनिका अनुपस्थित है, हालांकि वह अकेली अनुपस्थित लड़की नहीं थी। फिर यह कोई अनहोनी बात भी नहीं थी-कुछ बच्चे हर साल नए सत्र में दिखाई नहीं देते: या तो उनका परिवार कहीं और चला जाता है या फिर वे किसी दूसरे स्कूल में पढ़ने लगते हैं। बाद में जब मोनिका की एक सहेली ने बताया कि मोनिका के साथ दुर्घटना हो गई है तो हमारे स्कूल के प्रधानाध्यापक उसके घर गए और पता किया कि वह स्कूल क्यों नहीं आ रही है। उन्होंने मोनिका को स्कूल आने के लिए बहुत प्रोत्साहित किया और कुछ दिनों के बाद वह आने भी लगी। जब तक वह नहीं आई थी, हमें उसके साथ हुए हादसे की गम्भीरता का अंदाज़ा नहीं था!
उसे देखने के बाद हमें लगा कि उसके इलाज के लिए तुरंत हरकत में आने की आवश्यकता है। फ़ोटो में आप उसकी जलकर बदरंग हुई त्वचा तो देख सकते हैं मगर उससे आपको यह अनुमान नहीं हो पाता कि दरअसल वह अपनी गरदन तक घुमाने में असमर्थ है! नीचे दिए गए वीडियो में आप देख सकते हैं कि उसकी गरदन की गतिविधि में कितना ज़्यादा असर हुआ है! उसकी त्वचा इतनी जकड़ गई है कि वह दाएँ और बाएँ देख तो पाती है मगर देखने के लिए उसे शरीर का ऊपरी हिस्सा दाएँ-बाएँ सरकाना पड़ता है। अपनी ठुड्डी भी वह नीचे-ऊपर नहीं कर पाती। उसके हाथ की भी यही स्थिति है क्योंकि उसकी काँख की त्वचा भी जल चुकी है। सिर्फ 90 डिग्री तक ही (यानी फर्श के समान्तर) वह अपना हाथ उठा पाती है, इससे अधिक नहीं-और इतना करने में भी उसे अत्यंत पीड़ा होती है!
मोनिका ने उसके साथ हुई सारी घटना की जानकारी देते हुए बताया कि उसकी आँखों और त्वचा में आज भी दर्द होता है। दर्द कुछ कम हो इसके लिए वह रोज़ नियमित रूप से नारियल का तेल लगाती है। हमने चर्चा के लिए उसकी माँ को स्कूल बुलाया और उसके परिवार के रहन-सहन और आर्थिक स्थिति का जायज़ा लेने उसके घर भी गए। उनकी हालत देखकर हम स्तब्ध रह गए और मैंने बिना किसी का नाम लिए उसकी माँ पर एक ब्लॉग लिखा। हमने तुरन्त दिल्ली के नज़दीक के एक अस्पताल में वहाँ के प्लास्टिक सर्जन के साथ अपॉइंटमेंट लिया। पिछले कई माह से वह किसी डॉक्टर के पास नहीं गई थी क्योंकि न तो उसकी माँ के पास उसे दिल्ली ले जाने लायक पैसे थे और न ही उसकी माँ इतने दिन तक काम छोड़ सकती थी। इसके अलावा, उसे डॉक्टर के पास ले जाने वाला कोई दूसरा उपलब्ध नहीं था।
पिछले सप्ताह, बुधवार के दिन हम मोनिका को अस्पताल ले गए, आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुड़गाँव। हमने यह अस्पताल क्यों चुना, यह मैं आपको कल बताऊँगा। मोनिका के लिए क्या किया जा सकता है, तीन प्लास्टिक सर्जनों की एक टीम से चर्चा करके हमने पता किया कि मोनिका के इलाज के संबंध में क्या किया जा सकता है।
उसके शरीर की कार्यक्षमता पुनर्स्थापित करने के लिए मोनिका पर अब पाँच सर्जरीज़ या शल्यचिकित्साएँ की जानी आवश्यक हैं। दोनों आँखों के लिए एक, क्योंकि अभी वह आँखों की पलकें झपकाने पर भी आँखें पूरी तरह बंद नहीं होतीं, जिसके चलते आँखें सूखती हैं और उसे तकलीफ होती है। एक उसकी गरदन पर, जिससे वह उसे फिर से हिला-डुला सके। एक और, उसके मुँह पर, जिसे वह अभी पूरा खोल नहीं पाती और बहुत छोटे-छोटे कौर ही ले पाती है। और अंत में उसकी बाँह पर एक, जिससे वह आसानी के साथ, स्वतंत्रतापूर्वक अपना हाथ चला सके। डॉक्टरों ने बताया कि इन सब कामों के लिए वे उसकी जाँघ से त्वचा निकालकर आवश्यक स्थानों पर प्रतिरोपित करेंगे। इतना हो जाने के बाद ही वे चेहरे, छाती और बाहों के जले हिस्सों पर लेसर चिकित्सा शुरू करेंगे।
यह एक बड़ी लंबी प्रक्रिया होगी। डॉक्टरों ने बताया कि कुछ सर्जरियाँ एक साथ भी की जा सकती हैं और तब सिर्फ तीन सर्जरियाँ ही करनी पड़ेंगी। लेकिन इसके बाद भी दो सर्जरियों के बीच कम से कम चार से पाँच माह का अंतराल रखना ज़रूरी है, जिससे वह पूरी तरह स्वस्थ हो सके! इतना ही नहीं, जब वह बड़ी होगी, तब अगले पाँच से दस साल बाद उसे पुनः यही सर्जरियाँ करवानी होंगी क्योंकि जली हुई त्वचा शरीर के विकास के साथ उसी अनुपात में फिर कभी विकसित नहीं हो पाएँगी! इन सर्जरियों के बिना भविष्य में उसके कुछ अंगों के सामान्य परिचालन की संभावना नहीं रहेगी। इस पृष्ठ पर आप डॉक्टरों द्वारा प्रस्तावित मोनिका पर की जाने वाली सर्जरियों के विभिन्न चरणों का और उन पर होने वाले अनुमानित व्यय का विवरण देख सकते हैं।
जैसे ही हमने स्कूल में मोनिका को देखा, हमने सोच लिया था कि हम उसकी मदद करेंगे। दरअसल इसका निर्णय पहले ही लिया जा चुका है, अब तो हम सिर्फ उसके क्रियान्वयन के विभिन्न पहलुओं पर बारीकी से विचार कर रहे हैं कि किस तरह उसकी मदद की जाए।
हमने मोनिका की मदद करने का निर्णय कर लिया है-और आप भी हमारे इस काम में हाथ बँटा सकते हैं! हम चाहते हैं कि उसकी पहली सर्जरी के लिए जल्द से जल्द पर्याप्त रकम जमा हो जाए! आपका चंदा या दान इस मामले में बहुत मददगार साबित हो सकता है!
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