आज मैं राजेन्द्र नाम के एक लड़के के बारे में लिखना चाहता हूँ, जिसे मैं पहले ही आपसे मिलवा चुका हूँ। पहले हम उसके परिवार के बारे में सकारात्मक विचार रखते थे मगर दुर्भाग्य से अब हम ऐसा नहीं सोच सकते और सिर्फ आशा ही कर सकते हैं कि हमें भविष्य में कुछ वर्ष राजेन्द्र को शिक्षित करने का अवसर मिल सकेगा।
जब सन 2010 में मैंने उसके परिवार के विषय में लिखा था तब उनका परिवार कुछ माह पहले ही वृन्दावन आया था और राजेन्द्र का पिता काम की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। न सिर्फ अपने लिए बल्कि अपने ससुर, साली, अपनी बेटी और दो बच्चों के लिए। उन्होंने बच्चों की माँ के देहांत की दिल दहला देने वाली कहानी सुनाई कि कैसे वह किडनी की बीमारी का इलाज न हो पाने के कारण चल बसी, कैसे उसके पिता के भाई ने ख़ुदकुशी कर ली थी और कैसे उन्हें अब किसी न किसी रोजगार की बेतरह आवश्यकता है।
हमने परिवार के तीन वयस्क सदस्यों को काम पर रख लिया और बच्चों को अपने स्कूल में भर्ती कर लिया और कोशिश की कि उनके परिवार की दुखद परिस्थिति में कुछ सकारात्मक परिवर्तन ला सकें। जबकि बच्चों का दादा और चाची बहुत जल्दी आश्रम छोड़ कर गाँव वापस चले गए, उसके पिता, जो रिक्शा चलाने लगा था, स्कूल के बच्चों को रोज़ घर से लेकर और वापस घर छोड़कर आता था। बहुत जल्दी पता चल गया कि जो नियमित भुगतान हम उसे करते थे वह उसके लिए पर्याप्त नहीं था। उसने ज़्यादा वेतन की मांग की और अक्सर हमसे अतिरिक्त रुपये मांगने आया करता था और बहुत जल्द हमें पता चल गया कि रुपयों की उसकी मांग पूरी करना हमारे लिए काफी महंगा पड़ेगा। फिर हमें शक भी हुआ कि वह अपनी आमदनी का बहुत बड़ा हिस्सा शराब में उड़ा देता है। फिर भी हम उसके बच्चों की मुफ्त शिक्षा में कोई व्यवधान आने नहीं देना चाहते थे।
फिर एक दिन अचानक उसकी लड़की, राजबाई ने स्कूल आना बंद कर दिया। हम उसके घर गए और पूछा कि वह स्कूल क्यों नहीं आ रही है और हमें पता चला कि वह अपने गाँव, अपनी चाची से मिलने गई है और एक-दो माह वापस नहीं आएगी। हमने समझाया कि एक-दो माह स्कूल में अनुपस्थित रहना उसकी पढ़ाई के लिए कितना बुरा हो सकता है। उसने कहा कि जितना जल्दी हो सकेगा वह उसे स्कूल भेज देगा। मगर ऐसा नहीं हुआ और बाद में पता चला कि वह वृन्दावन वापस तो आई है मगर किसी घर में नौकरानी का काम कर रही है। फिर एक साल बाद हमने सुना कि उसका विवाह हो गया है। वह 2010 में तेरह साल की थी यानी अपने विवाह के समय वह सिर्फ पंद्रह साल की थी।
जब इस विषय में आप उसके पिता से बात करते हैं तो वह इस बात पर अड़ जाता है कि वह अठारह साल की है और कुछ माह पहले ही उसका विवाह हुआ है। यहाँ तक कि वह हमें समझाने की कोशिश करता है कि उसके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था क्योंकि उसके पास इतना रुपया नहीं होता था कि उसका भरण-पोषण कर सके। जब आप उसके छोटे भाई, राजेन्द्र से पूछते हैं तो वह भी वही रटा-रटाया जवाब दे देता है: ‘विवाह के समय वह अठारह साल की थी!’ उसका जन्म-प्रमाण-पत्र बनवाया ही नहीं गया कि इस झूठ का प्रतिवाद किया जा सके।
पिछले साल जब स्कूल के नए सत्र की शुरुआत हुई, उसके बड़े भाई, नरेंद्र ने भी स्कूल आना बंद कर दिया। तब वह चौदह साल का होगा और उसने एक चाय की दुकान में नौकरी कर ली और चाय बेचने लगा था। हमें बताया गया कि अब पढ़ाई में उसकी कोई रुचि नहीं रह गई है और जब लड़के से पूछते तो उसके मुंह से शब्द नहीं निकलते थे। परिवार में हम किसी को भी शिक्षा का महत्व समझाने में असमर्थ रहे और उन्हें शिक्षित करने के हमारे सारे प्रयास असफल होते चले गए।
इन सर्दियों की छुट्टियों में जब हम उनके घर पहुंचे तो उनके घर की हालत हमें बहुत शोचनीय प्रतीत हुई। राजेन्द्र भागता हुआ अपने पिता को जगाने चला गया-उस वक़्त सबेरे के ग्यारह बज रहे थे। उसका पिता अस्त-व्यस्त सा बाहर आया तो उसके चेहरे पर नशे की खुमारी थी और मुंह से शराब की गंध आ रही थी। वह घर पर सो रहा था और उसका बड़ा बेटा रुपया कमाने काम पर गया हुआ था और छोटा बाहर खेल-कूद में मगन था। राजेन्द्र ने उससे कहा कि जैकेट पहन लो, बेचारा कोशिश कर रहा था कि उसका पिता आगंतुक के सामने ठीक-ठाक लगे, उसे लेकर हमारे मन में कोई बुरी धारणा न पैदा हो।
अपने पिता को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की उसकी असफल चेष्टा देखकर हमारा दिल रो उठा। हमने उसके पिता से बातचीत की और हमें पता चला कि रिक्शा चलाकर उसे बहुत कम आमदनी हो पाती है। अपनी कामचोरी के लिए वह मौसम और पता नहीं क्या-क्या बहाने बनाता रहा। घर का किराया, 20 डालर, यानी लगभग 1200 रुपए बेटे के 40 डालर यानी लगभग 2400 रुपए के वेतन से अदा किया जाता है। स्पष्ट ही वह स्वयं अपनी आमदनी बढ़ाने का कोई प्रयास करने की आवश्यकता महसूस नहीं कर रहा है-उसकी शराब का खर्च निकल आए तो उसके लिए वही पर्याप्त है क्योंकि घर के दीगर खर्चों के लिए अब उसका बड़ा लड़का काफी कमा रहा है।
हम पिता से एक बार फिर यह अनुनय-विनय करने के बाद निकल आए कि बच्चों के भविष्य की उसे चिंता करनी चाहिए। हमने उसे अच्छी शिक्षा के लाभों के बारे में समझाते हुए आग्रह किया कि अपने सबसे छोटे बच्चे की पढ़ाई छुड़ाने के बारे में वह सोचे भी नहीं।
यह दुखद है मगर इन्हीं परिस्थितियों के विरुद्ध हम लगातार अपना काम जारी रखे हुए हैं: अभिभावकों का अपने बच्चों को स्कूल से निकालकर काम पर लगा देना, बाल विवाह, बाल मजदूरी, छोटी-मोटी आमदनी को सुनहरे भविष्य पर तरजीह दिया जाना। कुछ भी हो जाए, हम अपना प्रयास जारी रखेंगे और राजबाई और नरेंद्र जैसे बच्चों की नियति से निराश न होते हुए राजेन्द्र जैसे बच्चों की तरक्की पर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे और यही हमारी सफलता होगी।
वह एक छोटा बच्चा है और पढ़ने में तेज़ है। वह खुशमिजाज़ और विनीत है। बच्चों का दोष कभी नहीं होता और इसलिए हम उसके बेहतर भविष्य के लिए कुछ भी करने के लिए कटिबद्ध हैं।
अगर आप हमारे इस प्रयास में सहभागी बनाना चाहते हैं तो आप किसी एक बच्चे को प्रायोजित कर सकते हैं या बच्चों के एक दिन के भोजन का प्रबंध कर सकते हैं। शुक्रिया!