जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना लोग अलग अलग तरीकों से करते हैं। निश्चय ही इस बात का संबंध जीवन के प्रति उनके मूल दृष्टिकोण से और आस पास के लोगों के साथ होता है। आप देखते हैं कि अधिक मुश्किल परिस्थितियों में कुछ लोग बेहद आक्रामक हो जाते हैं। वे समस्या को और उससे उपजे संघर्ष को बनाए रखना चाहते हैं और ऐसे लोग अधिकतर क्रोध के वशीभूत परिस्थिति का ठीक तरह से जायज़ा नहीं ले पाते, उसे समझ नहीं पाते। ऐसे लोग आसानी से आक्रांत हो जाते हैं जबकि कोई उन्हें नुकसान नहीं पहुंचना चाहता। वे महसूस करते हैं जैसे उनकी तरह सारी दुनिया ही आक्रामक है और उन पर हमले कर रही है। वार्तालाप का एक साधारण वाक्य उन्हें असुरक्षित बना देने के लिए काफी होता है और वे इतने त्रस्त हो उठते हैं कि प्रतिरक्षा में वे स्वयं आक्रामक हो जाते हैं। और इस तरह एक संघर्ष की, एक युद्ध की स्थिति बन जाती है।
मैं इस तरह का व्यक्ति नहीं हूँ। वास्तव में मैं इसका उलट व्यवहार करता हूँ। यदि कुछ अच्छा और आसानी के साथ हो रहा है तो मैं प्रसन्न होता हूँ। और अगर कुछ बातें कोई परेशानी खड़ी कर रही हैं, और परिस्थिति बिगड़ती ही जा रही है तो मैं सिर्फ उससे दूरी बना लेता हूँ। मैं संघर्ष करना और लड़ाई नहीं चाहता, मैं शांति, आनंद और प्रेम के साथ जीना चाहता हूँ। लड़ाके हमेशा अगले आक्रमण से भयभीत रहते हैं और वे कभी अपने अस्त्र-शस्त्रों को अपने से अलग नहीं कर पाते।